Property Dispute : प्रोपर्टी विवाद होने पर लगती है कौन सी धारा, जानिए क्या कहता है कानून
Land dispute :परिवार की संपत्ति के विवाद के मामले आम तौर पर सामने आते रहते हैं। अलग-अलग बहसों के अनुसार इसमें अलग-अलग भाग लगाए जाते हैं। भूमि विवाद अक्सर दो पक्षों के बीच होता है, लेकिन इसके समाधान के लिए कई विशेष कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। किसी भी विवाद को जल्दी और सही तरीके से सुलझाने में ये धारा सहायक हैं। आइये देखें कि कानून में क्या प्रावधान हैं और प्रोपर्टी विवाद में कौन-कौन सी धाराएं लागू होती हैं।

The Chopal, Land dispute : जमीन से जुड़े मामले अक्सर कोर्ट में आते रहते हैं, जहां कोर्ट अलग-अलग धारा के अनुसार किए गए कानूनी प्रावधानों के तहत मामलों का निपटारा करती है। प्रोपोर्टी विवादों को लेकर कई कानून बनाए गए हैं। ऐसे प्रोपर्टी विवादों में अक्सर दो या इससे अधिक पक्षों के बीच कई धाराएं होती हैं। साथ ही, प्रोपर्टी मामलों को सुलझाने के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके बारे में जानना महत्वपूर्ण है।
जमीन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम
क्योंकि वे इस तरह के मामलों के कानूनी पहलुओं से अनजान हैं, लोगों को अक्सर जमीन से जुड़ी समस्याएं परेशान करती हैं। ऐसे विवादों में सही मार्गदर्शन पाने के लिए व्यक्ति को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए। अपराध और नागरिक दोनों प्रकार के मामले इस तरह के विवादों को सुलझा सकते हैं। यदि आप सही जानकारी और समझदारी रखते हैं, तो इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
धारा 406:
कभी-कभी कुछ लोग दूसरों के साथ बनाए गए अच्छे संबंधों को बदनाम करते हैं। वे विश्वास का फायदा उठाकर किसी की संपत्ति या अन्य वस्तुओं पर अनधिकृत कब्जा करते हैं। धारा 406 के तहत कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार इस स्थिति में व्यक्ति को है। वह संबंधित अधिकारी से संपर्क कर सकता है और उचित न्याय की मांग कर सकता है। ऐसे मामलों में, जब कोई विश्वास खो देता है, यह कानूनी प्रक्रिया उपयोगी होती है।
धारा 467:
भ्रष्ट और फर्जी कागजातों के माध्यम से किसी व्यक्ति की संपत्ति को कब्जा करना गंभीर अपराध है। इसमें किसी को धोखा देकर उसकी संपत्ति पर अधिकार प्राप्त करना शामिल है। इस तरह के मामले बढ़ गए हैं और ये संज्ञेय अपराध हैं। ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति धारा 467 का उपयोग कर सकता है। इन मामलों को उच्च स्तर के न्यायाधीश सुनते हैं। क्योंकि यह कानून के खिलाफ है, इस अपराध को सुलह या समझौते से हल नहीं किया जा सकता।
धारा 420:
यह कानूनी प्रावधान धोखाधड़ी या झूठे कामों से जुड़ा है। इसमें किसी भी प्रकार का संपत्ति या जमीन के विवाद शामिल हो सकता है, जहां कोई व्यक्ति किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है। यदि ऐसा कुछ होता है, तो कोई व्यक्ति धारा 420 के इस प्रावधान के तहत शिकायत दर्ज करवा सकता है, जिसका उद्देश्य है कि दोषी को कानूनी सजा मिल सके और उसे अपने प्रोपर्टी अधिकारों, या संपत्ति अधिकारों, के तहत न्याय मिल सके।
इस मामले का निपटारा सिविल कोर्ट में होता है—
न्यायिक प्रक्रिया भूमि विवादों को हल करती है। यह प्रक्रिया महंगी हो सकती है, लेकिन यह समय लेती है। इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है अगर कोई अवैध रूप से किसी की संपत्ति पर अधिकार कर लिया है। इन प्रकार के मामलों में फैसला सिविल अदालत में होता है। यहां न्याय की प्रक्रिया होती है और लोगों को उनके अधिकारों का पालन सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है।
स्पेसिफिक रिलीफ अधिनियम—
1963 में भारत में संपत्ति संबंधी विवादों को हल करने के लिए स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट (Specific Relief Act) बनाया गया था. इसका उद्देश्य शीघ्र न्याय प्रदान करना था। जबरदस्ती अधिकार प्राप्त करने या किसी व्यक्ति की संपत्ति पर अवैध कब्जा करने की स्थिति में, इस कानून की महत्वपूर्ण धारा-6 लागू होती है।
धारा (भागों में संपत्ति विवाद) पीड़ित व्यक्ति को जल्दी और आसानी से न्याय दिलाने का प्रयास करती है। यद्यपि, इसके कुछ नियम और शर्तें जानना आवश्यक हैं ताकि इसका सही उपयोग किया जा सके और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट, 1963 की धारा-6 के कुछ महत्वपूर्ण विषयों में से कुछ
1। इस प्रावधान के अनुसार, अदालत द्वारा जो भी निर्णय या आदेश (court decisions on property) दिए जाते हैं, वे अंतिम होते हैं। इस पर पुनर्विचार या अपील की अनुमति नहीं है। ताकि फैसले के बाद कोई और कानूनी विवाद न हो, इसका उद्देश्य न्याय प्रक्रिया को तेज और स्थिर बनाना है।
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2। यह प्रावधान उन परिस्थितियों में लागू होता है जब किसी व्यक्ति की ज़मीन से उसका अधिकार (कानूनतः संपत्ति का अधिकार) त्वरित रूप से छीन लिया जाता है। अगर शिकायत छह महीने से पहले की जाती है, तो मामला सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत हल किया जाएगा। इस तरह के मामलों में समय बहुत महत्वपूर्ण है और देर से कानूनी मदद नहीं मिलती है।
3। इस नियम के अनुसार, कोई शिकायत सरकारी संस्थाओं या अधिकारियों के खिलाफ नहीं की जा सकती। यह खासकर उन हालात में लागू होता है, जहां राज्य शामिल है।
4। इस नियम के तहत ज़मीन के मालिक, किराएदार या पट्टेदार सभी अपनी संपत्ति से संबंधित मामले कोर्ट में दायर कर सकते हैं, जिसे दंड संबंधी संपत्ति विवाद कहते हैं। यह सभी को अधिकार देता है।