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Property Rights in 2025 : ससुराल और पति की प्रोपर्टी में बहु का कितना होता है अधिकार, क्या कहता है कानून

Property rights : पुरुषों और महिलाओं दोनों को कानून में संपत्ति पर अधिकार दिए गए हैं। अधिकांश लोग इस बात से अनजान होते हैं कि उनका पति या ससुराल की संपत्ति पर कितना हक है, खासकर जब बात संपत्ति पर महिलाओं के अधिकार की है। बता दें कि शादी करने से ही एक महिला को अपने पति और ससुराल की संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलता। महिला के हक को लेकर ससुराल और पति की संपत्ति में कानून क्या कहता है? आइये जानते हैं।

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Property Rights in 2025 : ससुराल और पति की प्रोपर्टी में बहु का कितना होता है अधिकार, क्या कहता है कानून 

The Chopal, Property rights : ज्यादातर महिलाओं को लगता है कि शादी के बाद उन्हें ससुराल की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा, अर्थात पिता-पुत्र की संपत्ति में हिस्सा. हालांकि, यह कानून पर निर्भर करता है।

महिला को पति की संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए कानूनी रास्ते से गुजरना पड़ता है, जो सिर्फ पति की संपत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि ससुर की संपत्ति में भी अधिकार है। इस तरह के मामले अक्सर अदालत में एक लंबी प्रक्रिया का कारण बनते हैं। जब संपत्ति का बंटवारा होता है, तो अक्सर जटिलताएं होती हैं, जिन्हें हल करने के लिए अदालतों का सहारा लिया जाता है।

ससुराल की संपत्ति पर महिला का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 (धारा 8 of Hindu Succession Act) के अनुसार, एक महिला को अपनी ससुराल की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है, जब तक कि वह विधवा नहीं हो जाए। शादी के बाद एक महिला ससुराल में पूरे परिवार की देखरेख करती है, लेकिन संपत्ति कानून में एक महिला को अपने पति या ससुराल की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता। वह अपने पति की संपत्ति और ससुराल पर कुछ अधिकार पा सकती है अगर उनका निधन हो जाता है।

इस प्रकार संपत्ति का अधिकार निर्धारित किया जाता है:

भारत में संपत्ति के अधिकारों को निर्धारित करने में तीन मुख्य कानूनों का महत्व है। पहला है भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, दूसरा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और तीसरा मुस्लिम पर्सनल लॉ। इन कानूनों के तहत संपत्ति पर किसका अधिकार है। इन नियमों को देखकर स्पष्ट है कि सिर्फ शादी करने से एक महिला को अपने पति या ससुराल की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं मिलता है। इसके बजाय, परिस्थितियां और कानूनी प्रावधान उसके अधिकारों को निर्धारित करते हैं।

यह प्रावधान संपत्ति में महिलाओं के हक को लेकर है—

जब तक किसी महिला का पति जीवित रहता है, तब तक पत्नी को पति की स्वअर्जित संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। हालाँकि, अगर पति की मृत्यु के बाद उनकी कोई वसीयत बनाई गई हो, तो उसी वसीयत के अनुसार संपत्ति का अधिकार निर्धारित होगा। यानी, पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति की संपत्ति पर अधिकार मिल सकता है, लेकिन यह उस पर निर्भर करेगा कि पति ने क्या लिखा है। यदि वसीयत नहीं लिखी जाती, तो पत्नी का अधिकार अलग तरह से तय होता है, जिसमें संतान भी शामिल होता है।  

पत्नी भरण-पोषण के लिए धन मांग सकती है:

एक महिला को कानूनी रूप से अपने पति से केवल भोजन का अधिकार है, खासकर जब वे अलग हो जाएं। हालाँकि, इस दौरान शादीशुदा महिलाओं को पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिल सकता। इसका अर्थ यह है कि, भले ही पति और पत्नी अलग हों, महिला को पति से सिर्फ भोजन के पैसे लेने का अधिकार होता है, लेकिन पति की संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं होता।  

ससुराल की संपत्ति का अधिकार कब मिलता है—

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 भी कहती है कि एक महिला को अपने ससुराल या पति के परिवार की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। हालाँकि, विधवा पत्नी को पति की मौत पर ससुराल की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है। पति की संपत्ति इस हिस्से को निर्धारित करती है। 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुपद खंडप्पा बनाम हीराबाई मामले पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जो साझा संपत्ति के बारे में बहुत कुछ बताता था। महिला अधिकारों को लेकर कई कारणों से यह निर्णय महत्वपूर्ण था।

सुप्रीम कोर्ट के वकील की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने इस मामले पर कहा कि शादी के बाद महिलाएं अक्सर सोचती हैं कि उन्हें अपने पति और ससुराल की पूरी संपत्ति पर अधिकार मिलता है (पति की संपत्ति पर पत्नी का कितना अधिकार) लेकिन ऐसा कानूनी रूप से नहीं होता। सिर्फ शादी करने से किसी महिला को पति या ससुराल की संपत्ति में कोई स्वामित्व नहीं मिलता जब तक उसे उस संपत्ति का हिस्सा नहीं बनाया जाता। 

उसके बाद भी महिला को पूरी तरह से उस संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलता है। उन्होंने बच्चों, प्रथम और द्वितीय श्रेणी के हकदारों को भी देखा है। यह भी देखा जाता है कि ससुराल में उक्त संपत्ति स्वअर्जित है या पैतृक (ancestral) संपत्ति है, और इसे लेकर कोई वसीयत लिखी गई है या नहीं। उसके बाद ही महिला का अधिकार निर्धारित होता है।