घर पर जुगाड़ लगाकर बनाई मशीन, अब हर महीने कर रहे 50000 रुपए की कमाई

आज हम ऐसे इंसान की कहानी बताने वाले हैं, जिसने बिजनेस के शुरुआती दिनों में बड़ा नुकसान होने पर भी हार नहीं मानी। आज हम तेलंगाना में सिद्धिपेट जिले के रंगधमपल्ली इलाके में रहने वाले मल्लेशम की कहानी बताने वाले है। 

 

The Chopal, Success Story : आज हम आपको तेलंगाना के सिद्धिपेट जिले के रंगधमपल्ली इलाके के रहने वाले एक शख्स की कहानी बताने वाले हैं। यहां पर एक शख्स ने अपने दो बेटों के साथ मिलकर योजना बनाई कि छोटा-मोटा बिजनेस शुरू किया जाए।  बिजनेस की योजना बनाने के बाद तय किया गया कि पत्तों से प्लेट बनाने की मशीन लगाई जाएगी। अब इसके लिए जरूरत थी एक मशीन की। शख्स ने अपने दोनों बेटों को तमिलनाडु भेजा और 3.6 लाख रुपये में मशीन घर आ गई। काम शुरू हुआ, लेकिन अभी कुछ ही दिन बीते थे कि उनकी मशीन खराब हो गई। कच्चा माल खरीदा जा चुका था, लेकिन मशीन के खराब होने की वजह से सब कुछ ठप्प पड़ गया। 

लेकिन सेक्स कहां हर करने वाला था और अपने दोनों बेटों की मदद से खुद की मशीन तैयार कर ली। काम फिर से शुरू हुआ और उन्हें धड़ाधड़ ऑर्डर मिलने लगे। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ये कहानी है सिद्धिपेट जिले के मल्लेशम की, जिनकी कामयाबी के चर्चे आज दूर-दूर तक हैं। मल्लेशम ने मुश्किल हालातों के सामने हार नहीं मानी, बल्कि भारी संकट के बीच से ही मंजिल तक पहुंचने का रास्ता निकाल लिया। आज उनका पूरा परिवार पत्तों से प्लेट, गिलास और कप बनाने के काम में जुटा है।

कोविड का मुश्किल दौर आया काम 

मल्लेशम के दोनों बेटे इंजीनियर हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान मल्लेशम ने वो दौर देखा, जब ज्यादातर आईटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। इनमें कुछ लोग ऐसे भी थे, जो दोबारा नौकरी पर वापस नहीं गए। मल्लेशम का आइडिया इसी मुश्किल हालात से लड़ने के लिए था। हालांकि, जब बिजनेस के लिए खरीदी गई मशीन कुछ दिन बाद ही खराब हो गई, तो उन्हें भारी झटका लगा। मशीन की कीमत 3.6 लाख रुपये थी और मल्लेशम इस स्थिति में नहीं थे कि वो फिर से नई मशीन खरीद सकें।

बेटों की मदद से बनाई मशीन 

मल्लेशम के सामने एक दूसरी मुसीबत ये भी थी कि वो कच्चे माल के तौर पर बड़ी मात्रा में ओडिशा से मोडुका के पत्ते और आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से अड्डा और कमल के पत्ते खरीद चुके थे। इस वजह से वो ज्यादा इंतजार भी नहीं कर सकते थे। ऐसे में मल्लेशम ने फैसला लिया कि वो खुद की मशीन तैयार करेंगे। थोड़े दिनों की मशक्कत के बाद उन्होंने अपने दोनों इंजीनियर बेटों की मदद से एक मशीन बना ली। इस मशीन की लागत नई मशीन से करीब 1 लाख रुपये कम आई। मशीन तैयार होते ही मल्लेशम का काम फिर से चल पड़ा।

कई जिलों में होती है सप्लाई 

मल्लेशम कहते हैं कि अपने बेटों के साथ मिलकर वो पत्तों से प्लेट, ग्लास और दूसरी चीजें बना रहे हैं। दुकानों सहित समारोह स्थलों से उनके सामान के लिए काफी डिमांड आ रही है। फिलहाल मल्लेशम अपने घर से ही इस काम को संभाल रहे हैं। लेकिन, जल्द ही उनकी योजना इसे बड़े स्तर पर करने की है। हाल ही में आंध्र प्रदेश के विजयनगरम से उन्हें 10 हजार प्लेटों का ऑर्डर मिला था, जिसे उन्होंने तय समय में पूरा कर भेज दिया। इसके अलावा सिद्धिपेट, हुस्नाबाद, करीमनगर, संगारेड्डी और सदाशिवपेट में भी उनकी प्लेटों की सप्लाई हो रही है।

बचे हुए कचरे का उपयोग 

अपना काम आगे बढ़ाने के साथ-साथ मल्लेशम दूसरे लोगों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। हाल ही में उन्हें खम्मम जिले से मशीन बनाने का भी ऑर्डर मिला। मल्लेशम ने वहां जाकर अपने क्लाइंट के लिए मशीन तैयार की। वो बताते हैं कि पत्तों से प्लेट और दूसरी चीजें बनाने के बाद बचे हुए कचरे का इस्तेमाल मवेशियों के लिए चारे और खेतों में खाद के तौर पर किया जाता है। मल्लेशम को इस बिजनेस से हर महीने लगभग 50 हजार रुपये की कमाई हो जाती है। उनके बड़े बेटे प्रमोद और छोटे बेटे प्रदीप भी इस पारिवारिक व्यवसाय में उनका हाथ बंटा रहे हैं।