धान में ये रोग आने पर ना करें यूरिया का छिड़काव, कर सकता है उत्पादन को प्रभावित

Urea In Paddy Crop : धान की फसल को कई तरह के रोग लगते हैं, जो उत्पादन को बहुत कमजोर करते हैं। इन रोगों से किसानों की पैदावार कम होती है, धान की गुणवत्ता खराब होती है और उनका पैसा बर्बाद होता है। रोगग्रस्त धान के दाने हल्के, छोटे और खराब होते हैं। इस रोग की जानकारी नियामतपुर विज्ञान केंद्र के रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन वर्मा देने वाले हैं।
 

Paddy Cultivation : धान की फसल को कई तरह के रोग लगते हैं, जो उत्पादन को बहुत कमजोर करते हैं। इन रोगों से किसानों की पैदावार कम होती है, धान की गुणवत्ता खराब होती है और उनका पैसा बर्बाद होता है। रोगग्रस्त धान के दाने हल्के, छोटे और खराब होते हैं। कई रोग बीज से फैलते हैं, जो अगली फसल पर भी असर डालते हैं। इस रोग की जानकारी नियामतपुर विज्ञान केंद्र के रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन वर्मा देने वाले हैं।

इस रोग के लक्षण

पादप सुरक्षा रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन वर्मा, कृषि विज्ञान केंद्र, नियामतपुर, ने बताया कि बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट भी एक खतरनाक बीमारी है। जो केवल धान की फसल पर अपना असर डालता है। यह एक जीवाणु से होता है, जो पत्तियों को संक्रमित करता है और अंततः पूरे पौधे को खराब करता है। वायरस के संपर्क में आने से पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे धब्बे बनते हैं, जो बाद में पीले हो जाते हैं। धब्बे बड़े होते हैं और किनारों से पत्तियां सूखने लगती हैं। संक्रमित पौधे कमजोर होते हैं और धान का उत्पादन घटता है।

इस मौसम में फैलता है, यह रोग

डॉ. नूतन वर्मा ने कहा कि खेत में ज्यादा दिनों तक पानी का रुकना इस बीमारी को बढ़ने में मदद करता है। यह रोग गर्म और नम मौसम में तेजी से फैलता है। संक्रमित हुए पौधों का उत्पादन कम होता है। संक्रमित दान खराब होते हैं। इसलिए दान की बुवाई करने से पहले इसके बीज का उपचार अच्छे प्रकार से कर लें। इसी के साथ, खेत की सफाई पर खास ध्यान दें।

प्रतिवर्ष फसल चक्र को बदलना होगा

उन्होंने कहा कि धान की फसल काटने के पश्चात खेत की सफाई अच्छे प्रकार से करें। हर साल फसलों को बदलकर लगाएं और फसल चक्र का पालन करें। फसल रोग होने पर खेत का पानी निकाल दें। ताकि संक्रमित खेत का पानी स्वस्थ फसल में न जाए।

यूरिया को छोड़कर इस दवाई का करें, इस्तेमाल

डॉ. नूतन वर्मा ने कहा कि फसल के बैक्टीरिया लीफ ब्लाइट के संपर्क में आने के बाद यूरिया का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर यह बीमारी दिन-प्रतिदिन ज्यादा बढ़ती जाती है। इसकी रोकथाम के लिए 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को 250 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में छिड़क दें, जब फसल में लक्षण दिखाई देंगे।