Sarso: सरसों और तेल की कीमतों में हो सकता है इजाफा, दिवाली पर किसानों को मिलेगा फायदा, जानिए क्यों
Mustard Price : एमएसपी के पार पहुंचा सरसों का दाम, कर्नाटक में थोक भाव 8330 रुपये क्विंटल हुआ। देश की प्रमुख मंडियों में सरसों की आवक में भारी गिरावट। उधर, इंडोनेशिया और मेलेशिया ने पाम ऑयल के रेट में इजाफा करके चिंता और बढ़ा दी है। तो क्या अब दिवाली पर लोगों को महंगा सरसों का तेल खरीदना पड़ेगा?
Mustard Oil Price : खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने और इंडोनेशिया में पॉम ऑयल के भाव में वृद्धि का असर घरेलू बाजार में दिखाई देने लगा है। केंद्र सरकार के इस फैसले की वजह से तिलहन फसलों में अहम स्थान रखने वाले सरसों का थोक दाम इसके लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के पार पहुंच गया है। सरसों का एमएसपी 5,650 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि 14 से 21 अक्टूबर तक ओपन मार्केट में इसका थोक भाव 6020। 74 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने से आयात में कमी आती है। नतीजा यह होता है कि घरेलू बाजार में किसानों को तिलहन फसलों का अच्छा दाम मिलना शुरू हो जाता है। दिवाली तक सरसों के दाम में तेजी का रुख कायम रह सकता है। इसे दिवाली तक सरसों के तेल के दाम में इजाफा हो सकता है। पहले ही सिर्फ एक महीने में ही सरसों के तेल के दाम में 9 से 15 रुपये किलो तक की वृद्धि हो चुकी है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष यानी 2023 की इसी अवधि के दौरान देश में सरसों का थोक दाम 5323। 06 रुपये प्रति क्विंटल ही था। पिछले साल के मुकाबले इस साल 13। 11 फीसदी दाम बढ़ गया है। बहरहाल, 14 से 21 अक्टूबर के बीच देश में सबसे महंगा सरसों कर्नाटक में बिका। यहां थोक दाम 8330। 4 रुपये प्रति क्विंटल रहा। जबकि देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक राजस्थान में दाम 6099। 76 रुपये रहा। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में थोक भाव 6047। 59 क्विंटल दर्ज किया गया। दाम बढ़ना किसानों के लिए अच्छा है, लेकिन इससे उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ गई है।
दाम बढ़ने की वजह क्या है?
सरसों का दाम एमएसपी के पार पहुंचने की वजह क्या है? अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है कि इसकी अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों वजह है। इंडोनेशिया और मेलेशिया ने पाम ऑयल के रेट में इजाफा कर दिया है। दूसरी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने इंपोर्ट ड्यूटी में 20 फीसदी का इजाफा कर दिया है। किसानों को उम्मीद है कि अभी दाम और बढ़ेगा इसलिए वो सरसों अपने पास रोक रहे हैं। आवक में कमी के कारण भी दाम में तेजी का रुख कायम है। खाद्य तेलों के हम बड़े आयातक हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय कारणों से यहां के बाजार पर बहुत तेजी से असर पड़ता है।
किसानों की क्या है रणनीति?
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 14 से 21 अक्टूबर के बीच देश की प्रमुख मंडियों में सरसों की आवक सिर्फ 29,252 टन ही रही है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 47,601 टन थी। यानी आवक में रिकॉर्ड 39 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। यह ट्रेंड बता रहा है कि किसान और अच्छे दाम का इंतजार कर रहे हैं।
देश का लगभग 48 फीसदी सरसों पैदा करने वाले राजस्थान में इसी अवधि के दौरान सिर्फ 12,098 टन आवक रही। पिछले साल की इसी अवधि के दौरान यह 22,043 टन थी। यानी राजस्थान में आवक 45 फीसदी कम है। इसका असर बाजार पर पड़ना तय है।
कितना है सरसों के तेल का दाम?
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 22 अक्टूबर को देश में सरसों के तेल का अधिकतम दाम 209, औसत भाव 164। 23, न्यूनतम 124 रुपये प्रति किलो रहा। जबकि ठीक एक महीने 22 सितंबर को अधिकतम दाम 200, औसत भाव 150। 02 और न्यूनतम दाम 110 रुपये किलो ही था। इंपोर्ट ड्यूटी में इजाफे और अंतरराष्ट्रीय मार्केट की बदलती चाल से भारत में सरसों का दाम एक बार फिर रिकॉर्ड बना सकता है।
कितनी है इंपोर्ट ड्यूटी
केंद्र सरकार ने सितंबर के दूसरे सप्ताह में खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी, क्योंकि प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन का दाम एमएसपी से करीब 25 फीसदी तक कम हो गया था। यह मुद्दा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सरकार के लिए सिरदर्द बनता उससे पहले ही इंपोर्ट ड्यूटी में वृद्धि कर दी गई, ताकि सोयाबीन का दाम बढ़ जाए। महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है।
केंद्र ने कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत मूल इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी है। इसकी वजह से तीनों तेलों पर कुल आयात शुल्क 5। 50 प्रतिशत से बढ़कर 27। 5 प्रतिशत हो गया है। जबकि रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सोया तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल के आयात पर 13। 75 आयात शुल्क के मुकाबले अब 35। 75 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी लग रही है।