गेहूं और आटे के भाव में आएगी भारी गिरावट, सरकार ने बनाया मास्टर प्लान
Wheat Stock Limit : भारतीय बाजारों में गेहूं और आटे की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से एक बार फिर गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने का प्लान बनाया जा रहा है। अब होलसेल का काम करने वाले स्टॉकिस्ट या ट्रेड 2000 टन से अधिक गेहूं नहीं रख सकेंगे। इसके लिए पहले 3000 टन की सीमा तय की गई थी।
नई दिल्ली: बाजार में गेहूं और आटे की बढ़ रही कीमतों ने सरकार की नींद उड़ा कर रख दी है। सरकार ने एक बार फिर गेहूं को लेकर स्टॉक लिमिटतैयार की है। क्योंकि एक बार फिर गेहूं के स्टॉक में कमी देखने को मिल रही है। केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के विभाग ने गेहूं की स्टॉक लिमिट की समीक्षा कर रहे है। व्यापारी और होलसेलर को सिर्फ 2000 टन गेहूं का स्टॉक रखने की लिमिट तय की गई है।
पहली बार लिमिट इस महीने में लगी लिमिट
केंद्र सरकार ने जून के चौथे हफ्ते में गेहूं पर पहली बार स्टॉक लिमिट लगाई थी। गेहूं की जमाखोरी को रोका गया था। सरकार ने थोक, खुदरा, व्हीट प्रोसेसर्स और बड़ी चेन के खुदरा गेहूं विक्रेताओं पर 2000 टन गेहूं की सीमा निर्धारित की थी।
लिमिट में किया बदलाव
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका उद्देश्य गेहूं की कीमतों में स्थिरता लाना था। साथ ही गेहूं की जमाखोरी को रोका गया है। उनका कहना था कि अब एक थोक विक्रेता या ट्रेडर केवल 2,000 टन गेहूं भंडारण कर सकते हैं। तीन हजार टन पहले की सीमा थी। पहले की तरह, खुदरा विक्रेता 10 टन गेहूं अपने गोदाम में रख सकते हैं। अब बड़ी चेन के खुदरा विक्रेता हर आउटलेट पर केवल दसवीं टन गेहूं रख सकते हैं। अब उनके डिपो में गेहूं की सीमा 10 गुना कम कर दी गई है, जो पहले 3,000 टन तक थी। गेहूं
हर शुक्रवार को खुलासा करना होगा
केंद्रीय सरकार ने कहा कि अब हर शुक्रवार को किसी भी विक्रेता या प्रोसेसर के पास गेहूं का स्टॉक होगा। गेहूं स्टॉक लिमिट (https://evegoils) सरकारी पोर्टल बनाया गया है।आपको इसे nic.in/wsp/login पर जाकर करना होगा।
गेहूं के निर्यात पर है प्रतिबंध?
गेहूं के निर्यात पर फिलहाल कोई प्रतिबंध नहीं है, मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा। Government चाहता है कि गेहूं की कीमतें स्थिर रहे। उल्लेखनीय है कि आटा और गेहूं सहित इससे तैयार होने वाले सभी आवश्यक वस्तुओं की खुले बाजार में कीमतें बढ़ रही हैं। वर्तमान में, कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जबकि कुछ और राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सरकार जनता की नाराज़गी भुगतान नहीं करना चाहती।