Wheat MSP: केंद्र सरकार के गेहूँ रेटों को काबू करने के तरीकों से किसानों की चिंता बढ़ी, पढ़ें मंडी भाव पर विशेष रिपोर्ट 

 

The Chopal, नई दिल्ली: गेहूं देश की प्रमुख रबी पैदावार भी है और न सिर्फ उपभोक्ता, बल्कि किसान और सरकार- हर किसी के लिए गेहूं का उत्पादन, उसकी कीमत और उससे जुड़ी मौसम की खबरें बेहद जरूरी होती हैं। वर्ष 2021-22 के दौरान गेहूँ के घरेलू उत्पादन में कमी, यूक्रेन-रूस की लड़ाई और कुछ अन्य बुनियादी कारणों ने गेहूं की कीमतों को 3000 रुपये प्रति क्विंटल के पार तक पहुंचा दिया और यह स्थिति महीनों तक देश में बनी रही।

अमूमन 2000 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे तक बिकने वाले गेहूं की कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के कई साइड इफेक्ट भी हुए, जिनमें दो सबसे प्रमुख हैं – किसानों को शानदार लाभ भी हुआ और 2022-23 में देश में बुवाई का रकबा रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया, और दूसरा सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से खरीद के लिए पर्याप्त गेहूं भी मंडियों में नहीं मिला।

आम तौर पर यह बहुत अच्छी स्थिति होनी चाहिए कि सरकार को किसानों से कुछ न खरीदना पड़े। MSP का मतलब ही यह है कि भाव उसके ऊपर तक हों, किसान फसल बाजार में बेचे और यदि किसी कारणवश भाव MSP से नीचे तक भी आ जाए, तो सरकार को मदद के तौर पर किसानों से फसल खरीदना भी पड़े। लेकिन, गेहूं के मामले में कहानी कुछ अलग भी है।

लेकिन पिछले साल गेहूं के रेट को नियंत्रित करने के लिए किए गए सरकारी प्रयासों को देखें, तो समझ में आता है कि मुफ्त अनाज बांटने की सरकारी स्कीमों और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के नाम पर हमारे देश की सरकारें किसानों का गला कैसे घोंटती हैं। बीते साल पहली बार गेहूं की फसल के फंडामेंटल कारणों से जब भाव ऊपर तक जाना शुरू हुआ, तो पहले तो सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा  दी और जब फिर भी कीमतें बढ़ना भी रुकी नहीं, तो भारतीय खाद्य निगम (FCI) के अपना स्टॉक बेचना शुरू किया। पहली बार गेहूं के किसानों को अच्छी कीमत मिल रही थी, लेकिन सरकारी प्रयासों से गेहूं आखिरकार लगभग 1000 रुपये प्रति क्विंटल नीचे तक आ चुका है।

सरकार की मुश्किल अलग है। सरकार को मुफ्त अनाज बांटने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसानों से गेहूं की खरीद करनी होती है। बफर नियमों के अनुसार FCI के भंडार में हर साल 1 अप्रैल तक कम से कम 74 लाख टन और 1 जुलाई तक कम से कम 275 लाख टन तक गेहूं होना चाहिए। लेकिन पिछले साल 2021-22 के दौरान गेहूं के दाम MSP से बहुत ऊपर होने के कारण सरकार द्वारा लक्ष्य किए गए 433 लाख टन की तुलना में मात्र 188 लाख टन गेहूं की खरीद की जा सकी जो लक्ष्य का 56.6% तक था।

नतीजतन अभी हालात यह है कि FCI के गोदामों में 126 लाख टन तक गेहूं बचा है जिसके 1 अप्रैल तक 95 लाख टन हो जाने की संभावना है। यह 2017 के बाद से इस समय तक FCI का सबसे कम भंडार भी है। सरकारी खरीद अमूमन अप्रैल से शुरू होती है और लगभग 4 महीनों तक चलती है। चालू सीजन के लिए सरकार ने गेहूं का MSP 2125 रुपये प्रति क्विंटल तक रखा है, लेकिन मध्य प्रदेश और गुजरात का जल्दी बुवाई वाला गेहूं जो अभी मंडियों में आने भी लगा है, उसकी कीमत 2200-2300 रुपये प्रति क्विंटल तक चल रही है। FCI और अन्य एजेंसियां 2023-24 सीजन में 300 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य लेकर चल रही हैं।

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ऐसे में सरकार की चिंता यह है कि यदि दाम MSP से ऊपर बने रहे, तो किसान उसके पास गेहूं लेकर भी क्यों आएगा। इसलिए सरकार लगातार गेहूं की कीमतों को नीचे लाने की कोशिश कर रही है और यही किसानों के लिए सबसे बुरी खबर भी है। गेहूं की फसल अभी खेतों में खड़ी है और अब तक के अनुमान के अनुसार एक बार फिर रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावना है।

लेकिन कुछ विशेषज्ञ यह चिंता जता रहे हैं कि अगले 3-4 हफ्तों में, जब गेहूं की कटाई का समय होगा, उस समय तक तापमान के औसत से ज्यादा बढ़ने की स्थिति में फाइनल आउटपुट पर बुरा असर हो सकता है। चालू क्रॉप ईयर 2022-23 में सरकार का अनुमान है कि गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 1121.8 लाख टन तक पहुंच सकता है, जो कि 2020-21 में 1095.9 लाख टन तक पहुंचने के बाद पिछले सीजन 2021-22 में 1068.4 लाख टन तक फिसल गया था। मार्च मध्य तक मध्य प्रदेश में गेहूं की कटाई शुरू भी होती है, और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह अप्रैल में शुरू होती है।

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सरकार की पूरी कोशिश है कि फसल के मंडियों में पहुंचने से पहले कीमतें MSP से नीचे आ जाएं ताकि वह गेहूं खरीद का अपना लक्ष्य भी पूरा कर सके। इसके लिए हाल ही में FCI ने खुले बाजार में बेचने के लिए 15 मार्च तक होने वाली ई-नीलामी में गेहूं का रिजर्व प्राइस प्रति क्विंटल 200 रुपये कम कर 2150 रुपये कर दिया है। फरवरी में जहां FCI ने 18 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बेचा है, वहीं 15 मार्च तक होने वाली दो नीलामियों में 6-7 लाख टन गेहूं और बेचा जाएगा। जनवरी में गेहूं के दाम में साल दर साल आधार पर 25% की तेज वृद्धि दिखी थी, जिसके कारण इस महीने खाद्य महंगाई दर 4.19% से बढ़कर 5.94% तक पहुंच गई थी।

इन्हीं कारणों से सरकार हर संभव कोशिश कर रही है कि गेहूं के दाम नीचे आएं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसके लिए किसानों के पेट पर लात मारना जरूरी है। हर बार उपभोक्ताओं को बचाने के लिए किसानों की बलि ही क्यों ली जानी चाहिए? यदि सचमुच सरकार उपभोक्ताओं को महंगाई से बचाना चाहती है, गरीबों को मुफ्त अनाज देकर उनकी मदद करना चाहती है, तो किसानों के लिए भी सरकार को वास्तविक हमदर्दी जरूर दिखानी चाहिए।

गेहूं के दाम गिराने की जगह सरकार खुले बाजार से गेहूं की खरीद करे ताकि किसानों को अधिकतम कीमत भी मिले। MSP का मतलब मिनिमम सपोर्ट प्राइस भी है, लेकिन सरकार इसे मैक्सिमम सेलिंग प्राइस बनाना चाहती है और किसी भी तरह कीमत को MSP के नीचे रखने का प्रयास किया जा रहा है, जो किसानों के लिए नुकसानदेह भी है।