Kapas: कपास में फूल आने के बाद करें ये जरुरी काम, उत्पादन मिलेगा ज्यादा
Cotton Production : भारत एक कृषि प्रधान देश है खरीफ सीजन की फसल कपास उत्पादन में दुनिया भर में 68 स्थान पर आता है। इस समय देश के कपास बिजाई वाले सभी राज्यों में फसल फूल आने की चरम सीमा पर है। ऐसे में यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं होगी तो कपास के पैदावार में गिरावट आने की संभावना हो जाती है। चलिए जानते हैं एक्सपर्ट द्वारा इसका समाधान।
Cotton Cultivation : भारत सफेद सोना (कपास) उत्पादन में दुनिया भर में 68 वा स्थान रखता है। हालांकि पिछले साल हरियाणा, पंजाब सहित देश के कई राज्यों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप देखने को मिला था। जिसके डर से इस सीजन कपास की खेती का रकबा कम हो गया है। इस वर्ष कपास का रकबा पिछले साल की तुलना में 11 लाख हेक्टेयर कम दर्ज किया गया है। इन आंकड़ों के हिसाब से कपास के भाव में तेजी आने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसे में कपास की खेती करने वाले किसानो को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई सलाह पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप पिछले कई सालों से देखने को मिल रहा है। यह एक ऐसा कीट है जो कपास की फसल में प्रारंभिक अवस्था से लेकर चुगाई करने तक रहता है। इसके बचे पौधे के पत्तों के नीचे का रस चूसते हैं। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाए तो फसल नष्ट होने के कारण उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
उत्पादन अच्छा लेने के लिए खाद संरक्षण, समय पर सिंचाई तथा रोगों के रोकथाम पर विशेष ध्यान देना जरूरी होता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक जरूर से ज्यादा बारिश होने के कारण पौधे की सामान्य ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है तो उत्पादन पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में पौधे के ऊंचाई वाले सभी भागों को कैंची के माध्यम से कटाई कर देनी चाहिए। ऐसा करने पर कीटनाशक छिड़काव भी आसानी से होगा।
फूल आने पर क्या डालना चाहिए
किसानों को कपास में फूल आने के समय विदाई के बाद नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा दें, जो प्रति एकड़ 1/2 बैग होती है। यूरिया डालने से पहले खेत में नमी होना जरूरी है, परंतु फसल में पानी खड़ा नहीं होना चाहिए। यदि फूल आते समय खेत में नमी नहीं होगी तो फल झड़ जाएगा तथा पैदावार में कमी आ जाएगी। एक तिहाई टिंडे खेलने के बाद फसल को आखरी बार पानी दे, इसके बाद खेत में पानी नहीं खड़ा होने दे।
नुकसानदायक होता या हरा तेला
कपास की फसल में आने वाला यह रोग पौधों के लिए काफी घातक होता है। इस किट के शिशु तथा प्राढ दोनों ही कपास को काफी नुकसान पंहुचाते है। इनका रंग हरा होने की वजह से इन्हें हरा तेला के नाम से जाना जाता है। यह पत्तियों की निचली सतह पर अपने अंडे देते हैं जिसमें से शिशु निकालकर पत्तों पर आक्रमण करते हैं। इसके बाद पत्ते की किनारी बिल्ली पढ़ने लगती है और नीचे की तरफ मुड़ जाती है। इसके बाद पत्तियों का रंग पीला वह लाल होकर नीचे गिर जाती है। तथा इसके प्रकोप से कालिया में फूल जमीन पर गिरने लगते हैं जिस वजह से उत्पादन का भी प्रभावित होता है। हरा तेला इन दो महीनो में फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है।
कैसे करें रोकथाम
अगर अगस्त-सितंबर महीने में कपास के खेत में सफेद मक्खी का प्रकोप हो जाए तो एक्सपर्ट के मुताबिक कीट को नष्ट करने के लिए मेटासिस्टाक्स 25EC तथा 1 लीटर नीम युक्त कीटनाशक या फिर 300 मिली डाइमेथोएट 30 EC 250 लीटर पानी में मिलाकर जब तक किट नष्ट ना हो तब तक बार-बार प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।