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गेहू की इस किस्म से मिलेगा 78 क्विंटल, जनिए बुवाई से बिजाई तक की पूरी जानकारी

'करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332' गेहूं की नई किस्म, जो अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित की गई है, किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है। एचडी 2967 की औसत उपज 31.3% है और एचडी 3086 की औसत उपज 12% है। जानिए विस्तार से 
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गेहू की इस किस्म से मिलेगा 78 क्विंटल, जनिए बुवाई से बिजाई तक की पूरी जानकारी 

The Chopal, Wheat Best Variety : किसान खरीफ की फसल कटने के साथ ही रबी सीजन की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच, किसानों की आय को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने लगातार बेहतर और नई किस्मों की खोज की है। करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332 नामक एक नई गेहूं की किस्म भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने विकसित की है। यह किस्म अधिक उत्पादन देती है। इस किस्म का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 78 क्विंटल बताया जाता है। यह नई किस्म किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इससे खाद्यान्न उत्पादन और आय दोनों बढ़ेगी। 

'करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332' गेहूं की नई किस्म, जो अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित की गई है, किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है। एचडी 2967 की औसत उपज 31.3% है और एचडी 3086 की औसत उपज 12% है। इसमें 83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है।

इस किस्म की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं: 

97 सेमी की औसत ऊंचाई, 46 ग्राम प्रति हजार दाने का वजन, विभिन्न मिट्टी और जलवायु में अच्छा उत्पादन, अधिक उर्वरकों और वृद्धि नियंत्रकों के अनुकूल, 101 दिन में बाली निकलना और 156 दिन में पककर तैयार होना। इसके अलावा, यह किस्म पीला रतुआ और भूरा रतुआ जैसे बीमारियों से बच जाती है और करनाल बंट रोग के प्रति सबसे अधिक प्रतिरोधी है। इस प्रजाति में उच्च प्रोटीन और आयरन होता है, जो इसे पोषण से भरपूर बनाता है।  यह किस्म प्रति एकड़ औसत 31.32 क्विंटल और अधिकतम 33.20 क्विंटल उपज दे सकती है। यह खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगा और किसानों की आय भी बढ़ेगी।

देश के किस राज्य में इस किस्म की खेती की जाती है?भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने एक नई गेहूं की किस्म करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332 को उत्तर पश्चिमी भारत के सिंचित मैदानी क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए अनुशंसित किया है। केंद्रीय उपसमिति ने 2021 में इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर), उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के लिए निर्धारित किया था। उत्तर पश्चिमी भारत के किसानों के लिए यह किस्म एक नई उम्मीद है क्योंकि यह क्षेत्र में गेहूं उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। लाइव चावल भाव देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

बताया जा रहा है कि 20 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच डीबीडब्ल्यू 332 गेहूं की बुवाई कर की जा सकती हैं, जिससे अधिक उपज मिलेगी। इस किस्म को प्रति हेक्टेयर लगभग सौ किलोग्राम बीज चाहिए। बुवाई करते समय कतारों में 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। गेहूं को कंडुवा रोग से बचाने के लिए बीज को वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5% और थीरम 37.5%) से बचाना चाहिए। बीज उपचार के लिए प्रति किलोग्राम बीज दो से तीन ग्राम वीटावैक्स का उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रकार को आम तौर पर पांच से छह सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार हर 20 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है।

करण आदित्य DBW 332 गेहूं की किस्म के लिए उर्वरक का उपयोग करते समय मिट्टी परीक्षण के परिणामों को ध्यान में रखना बहुत महत्वपूर्ण है। इस किस्म को उच्च उर्वरकता वाली भूमि में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर चाहिए। इन उर्वरकों को बुवाई के समय पूरी मात्रा में फास्फोरस और पोटाश और नाइट्रोजन मिलाकर देना सही है। पहली और दूसरी सिंचाई के दौरान दो बराबर भागों में नाइट्रोजन दिया जाना चाहिए। किस्म की पूरी क्षमता को पूरा करने के लिए 15 टन देसी खाद प्रति हेक्टेयर और 150 प्रतिशत NPK और वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।