UP के इस शहर में जमीन घोटाले को लेकर 12 अफसरों पर गिरी गाज, होगी विजिलेंस जांच
UP News : गाजियाबाद की सिद्धार्थ विहार योजना में 350 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले में कई अफसरों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया है। मुख्यमंत्री ने एसआईटी को जांच कर रिपोर्ट दी है।
UP News : गाजियाबाद के सेक्टर-8 में सिद्धार्थ विहार योजना में 350 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले में लगभग एक दर्जन अधिकारी और कर्मचारी दोषी ठहराए गए हैं। मुख्यमंत्री ने एसआईटी को जांच कर रिपोर्ट दी है। अब आवास विकास परिषद के कर्मचारियों और अफसरों के खिलाफ विजिलेंस जांच की सिफारिश की गई है। शासन के स्तर पर आईएएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
आवास विकास परिषद ने गाजियाबाद के सिद्धार्थ विहार योजना के सेक्टर-8 में एक बड़े बिल्डर को 12.047 एकड़ जमीन बिना किसी धन के दिए ही दी थी। जमीन मिलने के बाद, बिल्डर ने इस पर जमीन बनाकर इसे बेच दिया। इस जमीन घोटाले में आवास विकास विभाग के अफसरों के अलावा शासन के कई महत्वपूर्ण अधिकारी भी शामिल थे। इन अफसरों ने बोर्ड से प्रस्ताव पारित कर बिल्डर को जमीन दी थी। बिल्डर ने जमीन पर लगभग 300 फ्लैट बनाकर बेचे।
ये पढ़ें - UP रोडवेज ने दी खुशखबरी, अयोध्या जाने वालों को मिलेगा बड़ा फायदा
मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा के आदेश पर पहले वहां के कमिश्नर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इसकी जांच की थी। शासन ने उनकी रिपोर्ट मिलने के बाद एसआईटी से जांच कराई। साथ ही एसआईटी जांच ने घोटाले की पुष्टि की है। इसमें लगभग 350 करोड़ रुपये का घोटाला बताया गया है। एसआईटी रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू की है। आवास विकास परिषद के सूत्रों ने बताया कि मामले में परिषद के पांच अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ विजलेंस जांच की सिफारिश की गई है। हर किसी से विवरण मांगा गया है।
इनके खिलाफ विजिलेंस जांच होगी
आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद ने विजिलेंस जांच की सिफारिश की है कि आवास विकास परिषद के पूर्व उप आवास आयुक्त एसबी सिंह, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बैजनाथ प्रसाद, प्रशासनिक अधिकारी साधु शरण तिवारी, सहायक रामचंद्र कश्यप और पूर्व सहायक अभियंता राधेलाल गुप्ता। रामचंद्र कश्यप इसमें से मर चुका है। शेष अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं।
जमीन बिल्डर को देने में मदद करने का आरोप
घोटाले की फाइलों पर आवास विकास परिषद के तत्कालीन तीन आवास आयुक्तों के भी हस्ताक्षर हैं। इन अधिकारियों ने अपनी तैनाती के दौरान इसकी फाइल को मजबूत किया। बिल्डर को जमीन देने की व्यवस्था की गई। इसका नाम भी संयुक्त आवास आयुक्त स्तर का अधिकारी है। लेकिन कहा जा रहा है कि एक CLCA का नाम भी शामिल है। इसमें सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का महत्वपूर्ण योगदान था।
फ्लैट बिक्री पर लगाई रोक
इस जमीन पर बिल्डर ने बहुत महंगी अपार्टमेंट की पेशकश की। करोड़ों रुपये में प्रत्येक फ्लैट बेचा। बिल्डर ने सभी फ्लैट बेचकर भाग गया, इसलिए 12 सितंबर 2022 को आवास विकास परिषद ने बिल्डर की इस योजना में फ्लैटों की बिक्री पर रोक लगा दी। माना जाता है कि इन अफसरों ने फाइल को बोर्ड से पास कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इन सभी के खिलाफ कार्रवाई सरकारी स्तर पर ही होनी चाहिए।
ये पढे - स्वराज लेकर आया सस्ता ट्रैक्टर लॉन्च, छोटे किसानों के लिए बजट का सौदा