Black Rice Farming: काले धान की खेती से यूपी के किसान हुए मालामाल, मिल रही बम्पर पैदावार

तुमने सफेद चावल खाए और देखा होगा। लेकिन बीमारी होने पर डॉक्टर चावल खाने से बचने को कहते हैं। वहीं, एक ऐसा चावल जो कई इलाकों में चर्चा का काफी ज्यादा विषय बना हुआ है।
 

The Chopal - तुमने सफेद चावल खाए और देखा होगा। लेकिन बीमारी होने पर डॉक्टर चावल खाने से बचने को कहते हैं। वहीं, एक ऐसा चावल जो कई इलाकों में चर्चा का काफी ज्यादा विषय बना हुआ है। इटावा जिले की जसवन्तनगर तहसील के ग्राम सिरहौल में रहने वाले अरविंद प्रताप सिंह परिहार ने काले चावल का उत्पादन किया है, जो इस इलाके में काफी ज्यादा चर्चा का विषय बन गया है। यह काला चावल काफी ज्यादा औषधीय भी है। यह एंटीऑक्सीडेंट, मल्टीविटामिन, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, कैल्शियम और बहुत कुछ है। यह काला चावल भी कई बहुत गंभीर बीमारियों में मदद भी करता है। विशेष रूप से, अरविन्द प्रताप इसे बिना खाद और चारागाह की मदद से उगा रहे हैं। इसका पैदावार  गोबर और गोमूत्र से होता है। डॉक्टर ने अरविंद प्रताप को स्वांस की बीमारी होने पर चावल खाने से मना कर दिया।

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ऐसे में वह खाने-पीने के बारे में यूट्यूब पर देख रहे थे। काला चावल के लाभों का पता चला। जो गंभीर बीमारी के दौरान भी खाया जा सकता है। तब से, उन्होंने निर्णय लिया और ऑनलाइन काले चावल के बीज खरीदने लगे और स्थानीय गोबर और गोमूत्र से इसे बनाने लगे।

बीघा जमीन पर काले की चावल की फसल शुरू की गई

आपको बता दे की यह पहले आधा बीघा में उगाया गया था, फिर इसका प्रयोग किया और फिर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मुफ्त में दे दिया। इसके बाद वे इस चावल से काफी लाभ उठाए। 2.5 एकड़ जमीन में इसी काले चावल को उगाया। उन्होंने अपने यहां एक बीघा में काले गेहूं का भी उत्पादन किया। जो अपने भोजन में इस्तेमाल किया और अपने दोस्तों को भी बताया। काले चावल और गेहूं की पैदावार के बाद इलाके में चर्चा होने लगी है, लेकिन आपको बता दें कि अरविंद प्रताप सिंह पूरी खेती प्राकृतिक रूप से करते हैं। जिसमें स्थानीय गोबर और गोमूत्र का ही उपयोग होता है। पारंपरिक खेती के कारण अरविंद प्रताप को धन की कमी हुई। लेकिन जब से उत्पादन और प्राकृतिक खेती के नवीनतम तरीके शुरू हुए हैं। हम कम जगह पर भी अच्छा उत्पादन कर पा रहे हैं और आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है।

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1500 किसानों को प्राकृतिक खेती का ज्ञान दिया गया है

उन्नत किसान अरविन्द प्रताप सिंह हैं। उन्हें कृषि विभाग के अनुसंधान केंद्रों से प्रशिक्षण मिलने के बाद यह जागरूकता हुई। उन्होंने गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक फसल उत्पादन करना सीख लिया। उन्हें अपने गांव में एक "गाय आधारित प्राकृतिक कृषि फार्म" बनाया गया है। Natural Mission ने नेचुरल फार्मिंग ट्रेनिंग सेंटर खोला है। यह किसानों को निशुल्क ट्रेनिंग देते हैं और उनके यहां गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खाद बनाना सिखाते हैं। यह प्राकृतिक खेती करना अब तक लगभग 2500 से ज्यादा किसानों को कुशल भी गया है। और खास तौर पर काले गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ा रहे हैं।

2000 किसानों को शिक्षित करने का लक्ष्य

अब दो हजार किसानों को फिर से ट्रेनिंग देने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। काले चावल का उत्पादन सबसे अधिक असम और मणिपुर में होता है। कलावती और चाखाऊ नामक दो प्रकार के काले चावल हैं। इस किस्म का चावल आम तौर पर सबसे महंगा है, जिसकी कीमत 250 रुपए प्रति किलोग्राम से 400 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है। यह आसपास के क्षेत्र में आम तौर पर नहीं बिकता है, लेकिन ऑनलाइन इसकी कीमत बहुत अधिक है। विकासशील किसान अरविंद ने भी इस चावल की ऑनलाइन बिक्री की योजना बनाई है। ट्रेनिंग में किसानों को बताया गया है कि वे अपनी खेती के साथ-साथ ऑनलाइन बिक्री को भी बढ़ावा देने और इसके तौर तरीकों को भी शामिल करते हैं।

जैविक खाद 

कृषि विभाग के उप निदेशक एन. सिंह ने बताया कि चीन में कुलीन वर्ग इस काले चावल का पैदावार करता भी था। इस चावल में उच्च फाइबर है। एंटीऑक्सीडेंट के लाभों में से एक है कि वे शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालते हैं। यह चीन से मणिपुर, मेघालय और असम की ओर चला गया है। इसकी गुणवत्ता अविश्वसनीय है। यह पूर्वांचल के कुछ जिलों से निर्यात किया जाता है और वन नेशन वन उत्पादों में काला चावल भी शामिल है। इटावा भी इस काले चावल का उत्पादन करता है। उत्पादन प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने के बाद ही इसकी गुणवत्ता बरकरार रहती है और शरीर को अच्छी तरह से लाभ देती है। प्राकृतिक खेती में खाद गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड और पेड़ के नीचे की मिट्टी से बनाया जाता है।