क्या सरकार जबरन कर सकती है आपकी जमीन अधिग्रहण, जान लें अपने अधिकार

हमारे देश के संविधान और अधिग्रहण कानूनों के अनुसार, सरकार को जनहित के लिए जमीन अधिग्रहण करने का अधिकार है।  भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013, इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

 

The Chopal, jamin adhigrhan ka adhikar : भारत में औद्योगिक विकास, आधारभूत संरचना और सार्वजनिक हित की परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण एक नियमित प्रक्रिया है, जो अक्सर चर्चा और विवाद का केंद्र बनती है। यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि सरकार किसी व्यक्ति की निजी भूमि किस प्रकार ले सकती है, क्या इसके लिए मालिक की सहमति आवश्यक है, और इसकी कानूनी प्रक्रिया क्या निर्धारित है?

हमारे देश के संविधान और अधिग्रहण कानून के अंतर्गत, सरकार को लोकहित में भूमि लेने का कानूनी हक है। सरकार 'राइट टू फेयर कॉम्पेसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रीहैबिलिटेशन एंड रीसेटलमेंट एक्ट 2013' के प्रावधानों के तहत भूमि का अधिग्रहण करती है।

इसे सामान्यतः LARR Act, 2013 के नाम से जाना जाता है। यह कानून यह भी सुनिश्चित करता है कि जब किसी को जमीन दी जाती है, तो उसके मालिक को उचित भुगतान दिया जाए।  यह कानून बनाने का मुख्य लक्ष्य अधिग्रहण प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना है और जबरन अधिग्रहण को रोकना है।  केंद्र या राज्य सरकारें कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में 'राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956' के तहत भी अधिग्रहण कर सकती हैं, लेकिन LARR Act, 2013 इस विषय में मुख्य विधान है।

क्या सहमति के बिना भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है?

भारत में, "भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013" (LARR Act, 2013) के अनुसार, सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण की संभावना परिस्थिति पर निर्भर करती है:

सामुदायिक लक्ष्य के लिए:  यदि सरकार द्वारा भूमि पूरी तरह से सार्वजनिक उद्देश्यों (जैसे रक्षा, सड़क, रेलवे, अस्पताल आदि) के लिए अधिग्रहण की जा रही है, तो प्रभावित परिवारों की सहमति की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (Social Impact Assessment - SIA) और उचित मुआवजा प्रदान करना अनिवार्य है।

 निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाएं: यदि भूमि का अधिग्रहण निजी कंपनियों या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है, तो 70-80% प्रभावित परिवारों की सहमति आवश्यक है (यह आवश्यकता परियोजना के प्रकार पर निर्भर करती है)। बिना सहमति के अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है।

 आपातकालीन स्थिति: कुछ विशेष मामलों में, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा या आपातकालीन स्थितियाँ (जैसे प्राकृतिक आपदा के लिए तत्काल आधारभूत संरचना का निर्माण), सरकार LARR Act, 2013 की धारा 40 के तहत सहमति के बिना अधिग्रहण कर सकती है, परन्तु यह सीमित और असाधारण परिस्थितियों में ही संभव है, और मुआवजा तथा पुनर्वास के नियम लागू रहते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का मत क्या है?

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘सुख दत्त रात्रा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य’ (2022) के मामले में स्पष्ट रूप से कहा था कि उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना निजी मौलिक मानवाधिकारों और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भूमि अधिग्रहण है।  न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उचित मुआवजा देना और कानूनी प्रक्रिया का विधिवत पालन करना आवश्यक है।

 भूमि अधिग्रहण के लिए कितनी राशि मिलती है?

 भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (LARR Act, 2013) भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का दो गुना और शहरी क्षेत्रों में एक गुना होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास, वैकल्पिक भूमि या नौकरी प्रदान करने का भी प्रावधान है।