UP के प्रयागराज का गुदड़ी बाजार, कबाड़ में मिल जाता है लाखों का समान 

प्रयागराज के चौक इलाके में घंटाघर के पास एक अनोखी बाजार स्थित है, जिसे "कबाड़ बाजार" या "गुदड़ी बाजार" के नाम से जाना जाता है। यह बाजार 150 साल से भी पुराना है। यहां लोहे के पुराने से पुराने पार्ट्स भी मिलते हैं। 

 

UP News: यूपी में प्रयागराज के चौक इलाके में एक अनोखी बाजार स्थित है, जिसे "कबाड़ बाजार" या "गुदड़ी बाजार" के नाम से जाना जाता है। यह बाजार 150 साल से भी पुराना है और यहां पुराने पार्ट्स मिलते हैं।

प्रयागराज के चौक इलाके में घंटाघर के पास एक अनोखी बाजार स्थित है, जिसे "कबाड़ बाजार" या "गुदड़ी बाजार" के नाम से जाना जाता है। यह बाजार 150 साल से भी पुराना है। यहां लोहे के पुराने से पुराने पार्ट्स भी मिलते हैं। 

जो पार्ट्स कहीं और नहीं मिलते हैं, वे यहां आसानी से उपलब्ध होते हैं इसलिए यह बाजार लोगों के लिए उपयुक्त है। हालांकि, वक्त के साथ कुछ दुकानों में लोहे के पुराने और नए पार्ट्स भी बिकने लगे हैं, पर इसकी प्रसिद्धि पुराने पार्ट्स के लिए ही बनी हुई है।

घंटाघर की तंग गली में यह बाजार स्थित है, जिसे किसी वाहन से पहुंचा नहीं जा सकता। आपको यहां पैदल ही जाना पड़ेगा। इस बाजार में तकरीबन 50 दुकानें हैं। इनमें से एक दुकानदार मोहम्मद इदरीश हैं, जिनके परदादा ने यहां कबाड़ की दुकान खोली थी। 

आज भी इदरीश लोहे के सामानों का ही व्यापार कर रहे हैं। बाजार में पुराने कपड़े की खपरैल वाली एक 100 साल पुरानी दुकान भी है। इस दुकान में लोग खरीदा-फरोख्त करते हैं और वाहन मेकैनिकों को भी बेचा जाता है। शहर के सभी हिस्से के मेकैनिक यहां पुराने कपड़े खरीदने आते हैं।

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पुराने पार्ट्स के कारोबारी विजय पांडेय के अनुसार, पहले यहां की दुकानें रेलवे के कबाड़ से पटी रहती थीं। रेलवे के लोहे कबाड़ होने के बावजूद भी उनकी मूल्यवानी होती थी। इसलिए, इस कबाड़ लोहे को खरीदने के लिए लोग आसपास के जिलों से इस बाजार में आते थे। 

घंटाघर की तरह, इस कबाड़ बाजार में भी काफी भीड़ होती थी। यहां से खरीदे गए लोहे से फावड़ा, हथौड़ा और खेती में उपयोग होने वाले सामान बनाए जाते थे। अब रेलवे के कबाड़ नहीं आते हैं, और इसलिए यहां पर पुरानी मशीनों के नट-बोल्ट का व्यापार होता है। फिर भी, आसपास के जिलों से लोग पुराने लोहे के सामान खरीदने इस बाजार में आते हैं।

घंटाघर के पास निवास करने वाले मुन्ना मजदूर बताते हैं कि पहले घंटाघर के आसपास एक अमरूद का बाग था। जमींदार ने अपनी आय को बढ़ाने के लिए बाग के एक हिस्से में दुकानें खोलकर किराए पर दे दी थीं। धीरे-धीरे, इन दुकानदारों ने खुद दुकानें खरीदीं और यहां अपना कारोबार शुरू किया। 

तीन दशक पहले तक यहां के सभी दुकानें खपरैल थीं। चौक रौशन हो गया, परंतु गुदड़ी बाजार की दुकानों में अभी भी लालटेन जलती हैं। बदलते समय के साथ, दुकानों में परिवर्तन हो रहा है, लेकिन बाजार का पुराना चरित्र अभी भी सम्मिलित है।

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