High Court : क्या बच्चे मां बाप से मांग सकते हैं मेंटेनेंस? जानें अदालत से जो बताया

High Court : हाल ही में हाईकोर्ट ने मेंटेनेंस से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक नाबालिग बच्चा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी मां से भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है, लेकिन... आइए नीचे खबर में जानते है कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से।
 

Maintenance Section 125: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने मेंटेनेंस से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक नाबालिग बच्चा (Minor Child)सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी मां से भी भरण-पोषण (Maintenance) का दावा कर सकता है, बशर्ते मां के पास पर्याप्त साधन हों.

अदालत ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125 मेंटेनेंस के बारे में बताया गया है। इसके तहत ‘व्यक्ति’ शब्द में पुरुष और महिला दोनों शामिल होंगे.

अदालत ने आगे कहा,

“धारा 125 के तहत एक नाबालिग बच्चा वैध हो या नाजायज, ऐसे नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण करने के लिए माता-पिता को उत्तरदायी ठहराया जाएगा.”

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 (1) ये स्पष्ट करती है कि नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी हमेशा “किसी भी व्यक्ति” की होती है, अगर उसके पास पर्याप्त साधन हैं.

इसमें कहा गया है कि ‘व्यक्ति’ शब्द न केवल पुरुष बल्कि महिला जेंडर को भी दर्शाता है.

जस्टिस पंकज पुरोहित ने कहा कि महिलाओं की शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव आया है. 21वीं सदी में, अब ज्यादातर महिलाएं अच्छी तरह से शिक्षित हैं और लाभकारी रोजगार में हैं.

कोर्ट ने साफ किया कि सीआरपीसी की धारा 125 (1) के तहत ‘व्यक्ति’ में माता और पिता दोनों शामिल हैं.

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणी. फैमिली कोर्ट ने एक सरकारी शिक्षिका मां को अपने नाबालिग बेटे को 2,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था. बता दें, बेटा अपने पिता के साथ रह रहा है.

नाबालिग के माता-पिता का विवाह 2006 में खत्म कर दिया गया था. फैमिली कोर्ट को बताया गया था कि बच्चे के पिता की वित्तीय स्थिति खराब हो गई है और उनके पास बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पालन-पोषण या भोजन उपलब्ध कराने का कोई साधन नहीं है.

मां ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. उनके वकील ने तर्क दिया कि नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण का कर्तव्य केवल पिता पर है, मां पर नहीं.

जस्टिस पुरोहित ने मां के तर्क को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा कि जिन जजमेंट का आपने जिक्र किया है वो 1959 और 1977 में पारित हुए थे. तब से महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के मार्च 2013 के आदेश के खिलाफ मां की चुनौती को खारिज कर दिया.

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