Uttarakhand के इस इलाके में अनोखा रीति-रिवाज दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लाती है बारात

History of Jaunsar : देश के अलग-अलग राज्यों में शादी विवाह की रीति रिवाज अगल होती है। इसी तरह एक राज्य ऐसा है जहां पर बारात दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लेकर जाती है। अक्सर इस राज्य को छोड़कर यह रिवाज और किसी राज्य में नहीं है। हर एक राज्य में बारात दूल्हे द्वारा है लाई जाती है। परंतु इस राज्य की रिवाज हैरान कर देने वाली है, यहां बारात दूल्हे के घर पर दुल्हन लेकर पहुंचती है।

 

Uttarakhand News : पहाड़ों की संस्कृति व रीति रिवाज देश के बाकी हिस्सों से काफी अलग है। इन्हीं में शामिल उत्तराखंड राज्य है। जहां की संस्कृति अन्य राज्यों से अलग है। जो इस राज्य को अलग पहचान दिलाती है। उत्तराखंड के जोनासर बाबर इलाके की संस्कृति और रीति रिवाज बाकी राज्यों के इलाकों से काफी अलग है।

देहरादून शहर से करीबन 103 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा का इलाका चकराता ब्लॉक के आसपास जोनासर बाबर कहलाता है। यह इलाका महाभारत काल से जुड़ी कहानी बयां करता है। यहां पर रहने वाले लोग खुद को पांडवों के वंशज बताते हैं। यहां पर पांडवों के जीवन से जुड़े पहलू और संस्कृति और रीति रिवाज देखने को मिलते हैं।

सबसे अलग है यहां के रीति रिवाज

ऊपर का हिमाच्छादित भाग ‘बावर’ और नीचे का भाग ‘जौनसार’ कहा जाता है। जौनसार क्षेत्र के लोग पांडवों को अपना वंशज मानते हैं और इन्हें पाशि कहा जाता है। जबकि बावर इलाके के लोग खुद को दुर्योधन का वंशज मानते हैं जिन्हें षाठी कहा जाता है। लोकल 18 को जानकारी देते हुए चकराता ब्लॉक के निवासी राजेंद्र सिंह बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के चकराता ब्लॉक, उत्तरकाशी जिले और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में जौनसारी संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं। जौनसार क्षेत्र के लोग महासू देवता की पूजा करते हैं। जैंता, रासो, तांदी और हारुल आदि यहां के परंपरागत लोकनृत्य हैं जो दिवाली और विवाह आदि समारोह में किये जाते हैं। यहां के लोग थलका या लोहिया पहनते हैं। यहां तलवारों से जंगबाजी खेली जाती है।

पांडवो की तरह ही एक पत्नी के बहुपति राजेंद्र बिष्ट ने बताया कि उनके यहां पांडवों की पूजा की जाती है। उन्होंने सुना है कि पांडवों की तरह यहां बहुपति और बहुविवाह प्रथा रही है। पांच पांडवों की तरह एक से अधिक पति वाली महिला को पंचाली कहा जाता था। यहां भी पांडवों की तरह ही कई भाइयों की एक पत्नी हुआ करती थी। हलांकि उन्होंने कहा कि आज समाज में काफी बदलाव आया है और अब यह प्रथा खत्म हो चली है लेकिन आज भी पुराने बुजुर्गों में इस प्रथा की निशानियां जीवित हैं।

किमावणा पर्व में जश्न के लिए जड़ियों से बनती है मदिरा

जौनसार बावर के कंडमान में स्थित लोहारी, जाड़ी, सीजला जैसे क्षेत्रों में किमावणा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके जश्न के लिए जंगल से एक जड़ी लायी जाती है जिसका नाम कीम है। इसे लाकर घर के आंगन में कूटकर मदिरा बनाई जाती है। इस दौरान लोकगीत भी गाए जाते हैं। अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है और उनकी दावत भी की जाती है। इस प्रकार ये त्योहार मनाते हैं।

दूल्हा नहीं बारात लाती हैं दुल्हन

जौनसार बावर के हाटी समुदाय की अनोखी परंपरा है। इसमें दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन बारात लाती है। केंद्रीय हाटी कमिटी के सदस्य डॉक्टर रमेश सिंगटा ने बताया कि उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र और हिमाचल के सिरमौर के गिरीपार इलाके में एक जैसी परंपपराएं खान-पान और रहन सहन है। यह दोनों इलाके एक दूसरे के नजदीक भी हैं इसलिए यहां शादियां हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि जनवरी 2023 में चकराता और हिमाचल प्रदेश के दूल्हा- दुल्हन की शादी की बहुत चर्चा हुई थी क्योंकि लड़की उत्तराखंड के चकराता से हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में बारात लेकर गई थी। इसे जाजड़ा परंपरा कहा जाता है।