Indian Currency : किनकी परमिशन से होती है नोटों की छपाई, ये है शुरू से लेकर अंत तक का प्रोसेस

सरकार और आरबीआई कई मानकों को ध्यान में रखते हुए नोट छपाई का फैसला करते हैं. इसमें जीडीपी, विकास दर व राजकोषीय घाटे आदि को देखा जाता है. इसी के आधार पर कितने भी नोटों की छपाई की जा सकती है. 1956 में एक मिनिमम रिजर्व सिस्टम की शुरुआत की गई. इसके तहत आरबीआई को नोट छापने के लिए अपने पास हमेशा 200 करोड़ रुपये का रिजर्व रखना होगा.
 

The Chopal ( नई दिल्ली ) देश में किस साल कितने नोट छापे जाएंगे, इसका  (Currency Printing in India) अंतिम फैसला एक तरह से भारत सरकार का ही होता है. हालांकि, सरकार भी इसे लेकर वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों से चर्चा करती है. अनुमति लेने का प्रोसेस 2 चरणों में होता है. पहले चरण में आरबीआई केंद्र सरकार को नोट छपाई के लिए अर्जी भेजता है. इसके बाद सरकार इस पर आरबीआई के ही वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों के एक बोर्ड के साथ चर्चा करती है. इसके बाद आरबीआई को नोट छापने की मंजूरी दे दी जाती है. इस तरह नोट छपाई की अनुमति के लिए सरकार, बोर्ड और आरबीआई मिलकर काम करते हैं.

इस मामले में जाहिर तौर पर सरकार के पास अधिक अधिकार हैं. सरकार (Currency Printing in India) ही तय करती है कि एक साल में कितने रुपये के कितने नोट छापे जाने हैं. इसका डिजाइन और सुरक्षा मानक भी सरकार द्वारा ही तय किए जाते हैं. वहीं, रिजर्व बैंक के पास 10,000 रुपये तक के नोट छापने के अधिकार है. इससे बड़े की नोट की छपाई के लिए आरबीआई को सरकार की अनुमति लेनी होती है.

कितने नोटों की छपाई

सरकार और आरबीआई कई मानकों को ध्यान में रखते हुए नोट छपाई का फैसला करते हैं. इसमें जीडीपी, विकास दर व राजकोषीय घाटे आदि को देखा जाता है. इसी के आधार पर कितने भी नोटों की छपाई की जा सकती है. 1956 में एक मिनिमम रिजर्व सिस्टम की शुरुआत की गई. इसके तहत आरबीआई को नोट छापने के लिए अपने पास हमेशा 200 करोड़ रुपये का रिजर्व रखना होगा.

इस रिजर्व में 115 करोड़ रुपये का सोना और 85 करोड़ रुपये की फॉरेन करेंसी होनी चाहिए. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसी भी परिस्थिति में आरबीआई को डिफॉल्टर नहीं घोषित किया जाए. आरबीआई के गवर्नर धारक को नोट के मूल्य के बराबर की रकम अदा करने का वचन देते हैं. उसी वचन को समर्थन के लिए यह रिजर्व रखा जाता है.

छपाई से नष्ट होने तक का सफर

भारत में नासिक, देवास, मैसूर (Currency Printing in India) और सालबनी में नोटों की छपाई होती है. इसके बाद ये नोट बैंकों को बांटे जाते हैं. बैंक इन नोटों को अलग-अलग माध्यम से (कैश काउंटर, एटीएम) आम लोगों तक पहुंचाता है. इसके बाद ये नोट कई सालों तक सर्कुलेशन में रहते हैं. लोगों के हाथों में इधर-उधर जाने के बाद नोट घिसते व फटते हैं. लोग इन नोटों को एक बार फिर बैंकों में ले जाकर जमा कर देते हैं. ये बैंक वापस आरबीआई के पास पहुंचते हैं. अब आरबीआई नोटों की स्थिति को देखकर तय करता है कि उन्हें रीइश्यू करना है या नष्ट कर देना है. इस तरह एक नोट का जीवनकाल खत्म होता है.

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