Property Rights : वसीयत ना होने पर होगी ये बड़ी दिक्कत, जानें क्यों है जरुरी

अगर किसी शख्स ने वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति उसकी इच्छानुसार ही बंटेंगी लेकिन अगर बिना वसीयत लिखे ही शख्स की मौत हो जाए तो जीवित रिश्तेदारों के सामने विकट समस्या खड़ी हो सकती है। उन्हें गैरजरूरी चिंता और तनाव, कानूनी झमेले, मुकदमेबाजी, कानूनी दांव-पेच वगैरह से जूझना पड़ सकता है।
 

The Chopal News : वसीयत या विल (Will) एक कानूनी दस्तावेज है जो बताता है कि कोई अपनी मौत के बाद अपनी संपत्ति को कैसे और किनमें बांटना चाहता है। वह वसीयत के जरिए किसी एक ही व्यक्ति को संपत्ति का अधिकार दे सकता है या फिर एक से अधिक लोगों को। अगर कोई शख्स चाहता है कि उसकी मौत के बाद उसकी संपत्ति कुछ चुनिंदा लोगों को ही मिले तो इसके लिए वसीयत जरूरी है। बिना वसीयत किए मौत की स्थिति में संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के तहत होगा। यह उत्तराधिकारियों के बीच तनाव, अदावत, मुकदमेबाजी समेत तमाम जटिलताओं से भरा हो सकता है। 'हक की बात' सीरीज में आइए जानते हैं वसीयत क्या है, क्यों जरूरी है, वसीयत के तहत किस तरह की संपत्ति का उत्तराधिकार किसी को सौंपा जा सकता है, क्या परिवार से बाहर के किसी शख्स के नाम वसीयत की जा सकती है, बिना वसीयत किए मौत की स्थिति में संपत्ति पर किसका हक होगा वगैरह। इसके अलावा वसीयत से जुड़े मामलों में कुछ बड़े अदालती फैसलों पर भी नजर डालते हैं।

वसीयत क्या है?

सबसे पहले जानते हैं कि वसीयत क्या है। वसीयत किसी शख्स को मौत के बाद अपनी विरासत सही हाथों में छोड़कर जाने की सहूलियत देता है। वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है जो बताता है कि किसी शख्स की मौत के बाद उसकी संपत्ति कैसे और किनमें बांटी जाए और अगर कोई नाबालिग बच्चा है तो उसकी देखभाल कैसे होगा। वैसे जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति मौत से पहले अपनी वसीयत लिखी ही हो। अगर किसी ने अपनी वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति का बंटवारा उसकी इच्छा के हिसाब से ही होगा। लेकिन अगर उसने वसीयत नहीं की हो तो संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के तहत होगा। अगर शख्स ईसाई, यहूदी या पारसी है तो भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। अगर शख्स हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध है तो हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। इसी तरह अगर वह मुस्लिम हो तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से उसकी संपत्ति का बंटवारा होगा।

वसीयत कैसे लिखी जाती है?

कोई भी स्वस्थ दिमाग का वयस्क वसीयत लिख सकता है। इसके लिए कानूनी और तकनीकी भाषा की जरूरत नहीं है। वह चाहे तो अपने ही शब्दों में वसीयत लिख सकता है। अगर वसीयतनामा में वसीयतकर्ता की मंशा साफ और स्पष्ट लग रही है तो व्याकरण की अशुद्धता भी मायने नहीं रखती। वसीयत लिखने से पहले व्यक्ति को अपनी संपत्तियों जैसे जमीन, अचल संपत्ति, बैंक जमा, शेयर, जीवन बीमा, सोना या अन्य निवेश वगैरह की लिस्ट बना लेनी चाहिए। उसके बाद उसे लाभार्थियों को तय करना चाहिए कि वह अपनी संपत्ति किसे या किन-किन लोगों को देना चाहता है। इसके बाद दो ऐसे गवाहों को चुनना चाहिए जो वसीयत में लाभार्थी न हों। इसके बाद निष्पादक नियुक्त करें।

वसीयत का मसौदा तैयार करने के लिए किसी वकील की सेवाएं भी ले सकते हैं। ए-4 साइज के पेपर पर वसीयत को हाथ से लिखें या टाइप करें। वसीयतनामे पर वसीयतकर्ता का और दो गवाहों के हस्ताक्षर होंगे। दस्तखत के वक्त दोनों गवाहों का शारीरिक रूप से एक साथ उपस्थित होना जरूरी है। जरूरत पड़ने पर गवाहों को अदालत में गवाही के लिए बुलाया जा सकता है। भारत में वसीयत का रजिस्टर्ड कराना जरूरी नहीं है लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन बेहतर होगा। वसीयत में लिखे गए हर शब्द को वसीयतकर्ता का ही शब्द माना जाता है। आप चाहे तो दूसरी, तीसरी या चौथी विल भी बना सकते हैं। लेकिन तब आपको पिछली सभी वसीयतों को रद्द कर देना चाहिए। अलग-अलग समय के वसीयत में जो सबसे हालिया हो, वह मान्य होगी।

कौन लिख सकता है वसीयत, क्यों लिखना ठीक है

अब समझते हैं कि वसीयत कौन लिख सकता है। कोई भी व्यक्ति जो बालिग हो, स्वस्थ दिमाग का हो तो वह अपना वसीयत लिख सकता है। बहरा और गूंगा शख्स भी लिखित में या साइन लैंग्वेज के हाव-भाव के जरिए अपनी सहमति दिखाकर वसीयत लिख सकता है। वसीयत को लेकर भारतीयों में उतनी जागरूकता नहीं है जितनी होनी चाहिए। अगर किसी शख्स ने वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति उसकी इच्छानुसार ही बंटेंगी लेकिन अगर बिना वसीयत लिखे ही शख्स की मौत हो जाए तो जीवित रिश्तेदारों के सामने विकट समस्या खड़ी हो सकती है। उन्हें गैरजरूरी चिंता और तनाव, कानूनी झमेले, मुकदमेबाजी, कानूनी दांव-पेच वगैरह से जूझना पड़ सकता है।

इन सबमें समय भी लगेगा और पैसे भी खर्च होंगे। इसलिए अच्छी तरह लिखी गई वसीयत वारिसों के बीच किसी भी तरह के टकराव की आशंका को खत्म करती है। बैंक जमाओं को लेकर बहुत से लोगों में ये भ्रम भी होता है कि उन्होंने नॉमिनी का नाम तो डाला ही है। जबकि नॉमिनी का मतलब उत्तराधिकारी नहीं होता। नॉमिनी किसी संपत्ति का अंतिम लाभार्थी नहीं होता वह सिर्फ संपत्ति का ट्रस्टी या केयरटेकर होता है। यानी व्यक्ति की मौत के बाद नॉमिनी उसकी बैंक जमाओं या निवेश का मालिक नहीं बल्कि केयरटेकर होता है। इसलिए भी वसीयत लिखना समझदारी की बात है।

किस तरह की संपत्ति के लिए लिख सकते हैं वसीयत

अब सवाल उठता है कि कोई शख्स किस तरह की संपत्ति का वसीयत लिख सकता है। इसका जवाब है- सारी संपत्ति जिस पर उसका मालिकाना हक है। यानी वह सिर्फ अपनी संपत्ति को ही वसीयत के जरिए हस्तांतरित कर सकता है। स्वअर्जित संपत्तियों के लिए वसीयत लिखी जा सकती है। अगर वसीयतकर्ता ने अपनी कमाई से कोई संपत्ति खरीदी है या उसे कोई संपत्ति उपहार में मिली हो या किसी वसीयत के जरिए मिली हो तो वह इन संपत्तियों के लिए वसीयत लिख सकता है।

कोई शख्स पैतृक संपत्ति के बंटवारे के बाद मिली अपने हिस्से की संपत्ति के लिए भी वसीयत लिख सकता है। लेकिन अगर किसी संपत्ति पर वसीयतकर्ता का अधिकार नहीं है और उसने वसीयत में उसका भी जिक्र किया है तो ऐसी संपत्ति पर वसीयत अमान्य होगी। इसी तरह अगर किसी शख्स ने वसीयत के जरिए जिस व्यक्ति को अपनी संपत्ति देना चाहता है, उसी की मौत हो जाए तो वसीयत अमान्य हो जाती है। इसलिए वसीयत में कोशिश करनी चाहिए कि संपत्ति के उत्तराधिकारी में एक से ज्यादा का नाम दें। उसे ऐसे लिखा जा सकता है- मेरे गुजर जाने के बाद संपत्ति फलां के नाम की जाय और यदि फलां भी न रहे तो संपत्ति अमुक व्यक्ति को दी जाए।

मुस्लिम शख्स अपनी कुल संपत्ति के एक तिहाई से ज्यादा का नहीं कर सकता वसीयत

वसीयत को लेकर इस्लामिक कानून में एक बहुत ही सख्त नियम है। इस नियम के हिसाब से कोई मुस्लिम शख्स अपनी कुल संपत्ति का अधिक से अधिक एक तिहाई के लिए ही किसी के पक्ष में वसीयत लिख सकता है। अगर वह अपनी संपत्ति के एक तिहाई से ज्यादा के लिए वसीयत लिखना चाहता है तो उसे अपने सभी कानूनी उत्तराधिकारियों की सहमति लेनी होगी।

क्या किसी के भी नाम वसीयत की जा सकती है या रिश्तेदार होना जरूरी

क्या कोई शख्स अपनी स्वअर्जित संपत्ति का किसी अजनबी के पक्ष में वसीयत कर सकता है? इसका जवाब है- हां। अप्रैल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सरोजा अम्माल बनाम दीनदयालन व अन्य के मामले में ये महत्वपूर्ण फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वसीयत वैध तरीके से की गई है तो यह मायने नहीं रखता कि महिला मृत व्यक्ति की पत्नी है या नहीं। कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि कोई शख्स स्वअर्जित संपत्ति को जिसे चाहे उसे दे सकता है, भले ही वह अजनबी ही क्यों न हो। हिंदू उत्तराधिकार कानून में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि कोई शख्स अपनी संपत्ति का किसके पक्ष में वसीयत करे।

बिना वसीयत लिखे शख्स की मौत तो स्वअर्जित संपत्ति पर भतीजे नहीं, बेटी का हक

सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी 2022 को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकार की व्यवस्था की। जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने स्पष्ट किया कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। दरअसल, इस मामले में बिना वसीयत लिखे ही शख्स की मौत हुई थी।

मृत शख्स का कोई बेटा नहीं था। उसकी इकलौती बेटी थी। उसकी मौत के बाद उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी (उत्तराधिकार के आधार पर) के साथ-साथ भतीजों (उत्तरजीविता के आधार पर) ने भी दावा किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बेटी को संपत्ति का हकदार बताया। कोर्ट का यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर आया है जो हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं को संपत्ति अधिकारों से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों की मुकाबले वरीयता होगी।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि हिंदू पुरुष ने वसीयत नहीं बनाई हो और उसकी मृत्यु हो जाए तो उसे विरासत में प्राप्त संपत्ति और खुद की अर्जित संपत्ति, दोनों में उसके बेटों और बेटियों को बराबर का हक होगा। कोर्ट ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मिताक्षरा कानून में सहभागिता और उत्तरजीविता की अवधारणा के तहत हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा सिर्फ पुत्रों में होगा और अगर पुत्र नहीं हो तो संयुक्त परिवार के पुरुषों के बीच होगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि उसका यह आदेश उन बेटियों के लिए भी लागू होगा जिनके पिता की मृत्यु 1956 से पहले हो गई है। दरअसल, 1956 में ही हिंदू पर्सनल लॉ के तहत हिंदू उत्तराधिकार कानून बना था जिसके तहत हिंदू परिवारों में संपत्तियों के बंटवारे का कानूनी ढंग-ढांचा तैयार हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से 1956 से पहले संपत्ति के बंटवारे को लेकर उन विवादों को हवा मिल सकती है जिनमें पिता की संपत्ति में बेटियों को हिस्सेदारी नहीं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में एक और स्थिति स्पष्ट की है। बेंच ने अपने 51 पन्नों के आदेश में इस सवाल का भी जवाब दिया कि अगर पिता बिना वसीयतनामे के मर जाएं तो संपत्ति की उत्तराधिकारी बेटी अपने आप हो जाएगी या फिर उत्तरजीविता की अवधारणा के तहत उसके चचेरे भाई को यह अधिकार प्राप्त होगा।

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