Railways : भारत की सबसे पुरानी ट्रेन, 157 साल पहले हुई थी शुरू, आपने कभी इसमें किया है सफर

Indian Railways : ट्रेन से सफर तो आपने भी किया ही होगा। लेकिन क्या आप भारत की सबसे पुरानी ट्रेन के बारे में जानते है। क्या आपने कभी इस ट्रेन में सफर किया है...अगर आपका जवाब नहीं है तो चलिए आइए जानते है इस खबर में इस ट्रेन के बारे में विस्तार से।
 

The Chopal, Railways : भारतीय रेलवे की इस सबसे पुरानी ट्रेन (Indian Railways Oldest Train) का नाम कालका मेल (Kalka Mail) है. इस ट्रेन को अंग्रेजों ने 1 जनवरी 1866 को शुरू किया था. इस साल जनवरी में यह ट्रेन अपने संचालन के 157 साल पूरे कर चुकी है. रेलवे के रिकॉर्ड के मुताबिक यह ट्रेन शुरू में ईस्ट इंडियन रेलवे मेल (East Indian Railway Mail) के नाम से पटरियों पर दौड़नी शुरू हुई थी.

यह ट्रेन पश्चिम बंगाल के हावड़ा को हरियाणा के पंचकूला जिले के कालका से जोड़ती है. हालांकि भारतीय रेल मंत्रालय जनवरी 2021 को कालका मेल ट्रेन का नाम बदलकर नेताजी एक्सप्रेस (Netaji Express) कर चुका है. यानी कि इस ट्रेन का नाम अब बदल चुका है. 

इस वजह से अंग्रेजों ने किया निर्माण-

इस ट्रेन (Kalka Mail) को शुरू करने के पीछे की एक खास वजह थी. असल में भारत पर कब्जा जमा चुके अंग्रेजों ने उस वक्त अपनी राजधानी कोलकाता को बना रखा था लेकिन वहां की गर्मी उन्हें परेशान करती थी. इससे बचने के लिए उन्होंने शिमला को अपनी ग्रीष्मकालीनी राजधानी बनाया. कोलकाता से शिमला तक जाने के लिए उन्होंने यह ट्रेन  शुरू की. यह स्टेशन शिमला तक जाने वाली लाइन का प्रारंभिक स्टेशन भी है. 

भारतीयों को नहीं मिलता था प्रवेश-

इस ट्रेन (Kalka Mail) को 2 हिस्सों में शुरू किया गया था. शुरुआत में यह ट्रेन हावड़ा से दिल्ली के बीच में चलाई गई. इसके बाद वर्ष 1891 में दिल्ली से कालका तक रेल लाइन का निर्माण करके इसे आगे बढ़ा दिया गया. चूंकि यह ट्रेन अंग्रेज अधिकारियों को कोलकाता से शिमला तक पहुंचाने के लिए शुरू की गई थी, इसलिए इसमें भारतीयों को प्रवेश नहीं दिया जाता था. 

तीन बार बदला ट्रेन का नाम-

कालका मेल ट्रेन (Kalka Mail) का मूल नाम ईस्ट इंडिया रेलवे मेल (East Indian Railway Mail) था. इसका संचालन ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी की ओर से किया जाता था. इस ट्रेन के जरिए वायसराय समेत तमाम अंग्रेज अधिकारी गर्मियों में अपनी राजधानी कोलकाता से शिमला में शिफ्ट कर लेते थे. वही सर्दी शुरू होते ही इसी ट्रेन के जरिए वायसराय वापस कोलकाता पहुंच जाते थे. इस ट्रेन का नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Express) से भी गहरा नाता रहा है. कहते हैं कि 18 फरवरी 1941 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर इसी ट्रेन के जरिए गायब हो गए थे.

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