Stubble Burning : गेहूं कटान के बाद भूल जाएंगे पराली जलाना, बस लगाएं ये आसान सा दिमाग़
The Chopal (Stubble Burning News) : खेतों में तैयार गेहूं की फसल लगभग 80 प्रतिशत कटाई हो चुकी है। इसके अलावा, किसानों ने सफाई करने के बहाने नरवाई या पराली में आग लगा दी है। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होगा, बल्कि जमीन की उर्वरता भी प्रभावित होगी। कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों से इसका उपयोग करने का तरीका खोजा है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए उन तक पहुंचने का एकमात्र उपाय यह है।
रबी सीजन में जिले में तीन लाख हेक्टेयर में गेहूं, पच्चीस हजार हेक्टेयर में चना और पच्चीस हेक्टेयर में सरसों की फसल पक चुकी हैं, जो खेतों से खेतों, गोदामों और मंडियों में पहुंचने लगी हैं। खेतों में सिर्फ नरवाई और पराली शेष है, जो किसान कचरा मानकर जलाने के लिए उत्सुक हैं। नरवाई जलाने की भी खबरें आ रही हैं।
नरवाई या भूसा जलाने से हुआ नुकसान
खेत में फसलों के अवशेषों (जैसे भूसा या नरवाई) को जलाना खरपतवारों और कीटों को मार डालता है। मृदा में कार्बनिक पदार्थ, कार्बन नत्रजन गंधक और अन्य विभित्र पोषक तत्वों की कमी होती है। एरोसॉल वायु में प्रदूषित होता है। एक टन नरवाई जलाने से 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, ऐसा अनुमान है। इसके अलावा, आसपास खड़े व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन, नाक और गले में दर्द होता है।
गेहूं का भूसा, मवेशियों का चारा
गेहूं का भूसा देखा जाए तो फसल के दाने से डेढ़ गुना अधिक होता है। यानी एक हेक्टेयर में चालिस क्विंटल गेहूं उत्पादन होने पर पचास क्विंटल भूसा होगा। प्रति हेक्टेयर इस भूसे से ३० किलो नत्रजन, ३६ किलो स्फुर और ९० किलो पोटाश मिलेगा। मवेशियों को इस भूसे को खिलाया जा सकता है। इसे जमीन में ही मिलाकर आने वाली फसल की खाद भी बनाया जा सकता है।
हार्वेस्टर के उपयोग से अधिक लगती है, आग
कृषि अधिकारियों ने बताया कि छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, चौरई, चांद और आसपास के क्षेत्रों में गेहूं की फसल काटने में हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे खेतों में लंबी डंठल की नरवाई रहने से किसान खेतों में आग लगा रहे हैं। तामिया, जुन्नारदेव, बिछुआ और जहां जैसे अन्य क्षेत्रों में हाथ से फसल कटाई की जाती है, वहां नरवाई की कोई समस्या नहीं है।
उनका दावा है।
गेहूं की फसल लेने के बाद खेतों में नरवाई जलाने की समस्या को दूर करने के लिए जिले में बोरलॉग संस्थान जबलपुर के वैज्ञानिकों ने जीरो टिलेज प्रणाली को विकसित किया है। इसमें ट्रैक्टर की मदद से नरवाई को खेतों में मिलाया जाता है। फिर वहीं मूंग की बोआई होती है। इससे नरवाई की समस्या दूर होती है और नई फसल मिलती है - जितेंद्र कुमार सिंह, कृषि उपसंचालक
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