इस फल ने अनपढ़ किसान को बना दिया करोड़पति, सालाना कमा रहा है 24 लाख 

एक समय था जब शेखावाटी के लोगों ने अंजीर के नाम को सिर्फ किताबों में पढ़ा था। इस क्षेत्र में यह फल उपलब्ध नहीं होता था, लेकिन अब शेखावाटी के खेतों में अंजीर की फसल फलों की मदमात लेने लगी है।

 

The Chopal: खेती एक जुआ की तरह होती है। इसलिए, यह अनिश्चितता का धनी खेल है, जहां बेमौसम बारिश, ओला या पाला किसान की मेहनत पर कब पानी फेर दे, यह कहना मुश्किल होता है। लेकिन एक अनपढ़ किसान ने इस चुनौती का सामना किया है और इसे सफलतापूर्वक पार किया है। उसने अपनी फसल के लिए एक कंपनी के साथ 10 साल का समझौता किया है। इस समझौते के अनुसार, कंपनी हर साल किसान को 24 लाख रुपये दे रही है।

अंजीर एक शहतूत के परिवार का एक सदस्य है और इसकी कई वैरायटी होती है। इसमें सिमराना, कालीमिरना, कडोटा, काबुल, मार्सेलस और वाइट सैन पेट्रो जैसी कुछ विशेष वैरायटीज़ होती हैं। अंजीर महंगे फलों की सूची में शामिल है। यह इसलिए है क्योंकि इसे ताजे खाने के साथ ही सूखाकर साल भर इसका सेवन किया जा सकता है।

एक समय था जब शेखावाटी के लोगों ने अंजीर के नाम को सिर्फ किताबों में पढ़ा था। इस क्षेत्र में यह फल उपलब्ध नहीं होता था, लेकिन अब शेखावाटी के खेतों में अंजीर की फसल फलों की मदमात लेने लगी है।

जिले में कई स्थानों पर किसानों ने अंजीर के पौधे लगाए हैं और इन पौधों से अंजीर की उत्पादन होती है। इन पौधों को सुखाया जाता है और फिर इन्हें पैक करके निर्यात किया जाता है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की कई कंपनियां इस क्षेत्र के किसानों के साथ समझौता कर रही हैं, और ताराचंद लांबा इनमें से एक हैं।

ताराचंद लांबा ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक उदाहरण स्थापित किया है। यह सीकर जिले के मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर रामजीपुरा नामक छोटे से गांव में रहते हैं। वह अंजीर की खेती करके सालाना 24 लाख की कमाई कर रहे हैं। चाहे सर्दी हो या गर्मी, या कुदरती मार, उनकी फसल चाहे कम या ज्यादा उत्पादन करे, उन्हें हर साल 24 लाख की चेक मिलती है।

ऐसे में, उन्हें खुशी होती है कि वे बिना चिंता किए अंजीर की खेती कर रहे हैं। रामजीपुरा के अलावा, सीकर में गोकुलुपरखेती का एक और नाम जुआ होता है। यह वजह है कि इसमें बेमौसम बारिश, ओला या पाला जैसे प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण कब पानी फेर दिया जाएगा, यह कहा नहीं जा सकता। एक अनपढ़ किसान ने इस समस्या का हल निकाल लिया है। उन्होंने अपनी फसल के लिए एक कंपनी के साथ 10 साल का समझौता कर लिया है। यह कंपनी हर साल किसान को 24 लाख रुपए दे रही है।
ताराचंद की अंजीर की खेती से पहले परंपरागत खेती से सालाना कमाई 5 लाख रुपए थी। ताराचंद ने बताया कि अंजीर का पौधा एक साल बाद ही फल देने लगता है और 2 साल में यह फसल किसान की पूरी लागत लौटा देती है। अंजीर के 1000 पौधों से सालाना कमाई 5 से 6 लाख रुपए हो सकती है। ताराचंद ने अपनी पहली फसल में ही 24 लाख की आय की थी।

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ताराचंद ने बताया कि उन्होंने पहले मूंग, ग्वार और सरसों की खेती की थी, लेकिन इसमें उनकी कमाई बहुत कम थी, लगभग 4 से 5 लाख रुपए। इस खेती में सालाना खर्च लगभग 2 लाख रुपए थे।

ताराचंद ने बताया कि उन्होंने बेंगलुरु जाकर 2019 में 7000 पौधे खरीदे थे, जो कीमत में 400 रुपए की थे। उन्होंने दिसंबर के दूसरे सप्ताह में पौधों की रोपाई की थी। ताराचंद ने अपनी खेत को समतल किया और गोबर की खाद डाली। उन्होंने पौधों की देखभाल के बारे में भी बताया और कहा कि फसल पकने के बाद उसे कंपनी खुद ही ले जाती है।

अंजीर के फल 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं और अगस्त में तुड़ाई होती है। एक पौधे से 8 से 10 किलो फल प्राप्त होते हैं। अंजीर से विभिन्न उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जैसे कि जैम, अचार, चटनी, चॉकलेट और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स।

ताराचंद ने बताया कि अंजीर की खेती से पहले ही उन्हें कंपनी के साथ एक 10 साल का कॉन्ट्रैक्ट है, जिसके अनुसार कंपनी हर साल 24 लाख रुपए देती है, चाहे फसल की पैदावार कम हो या ज्यादा। ताराचंद ने बताया कि उन्हें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने से पहले उन्हें चिंता होती थी कि फसल के बाद उसे बेचने में कितनी परेशानी होगी, लेकिन अब कंपनी खुद ही फलों को खेत से ले जाती है।

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