UP Chakbandi: उत्तर प्रदेश का यह गांव आज भी हैं चकबंदी प्रक्रिया से बाहर, करे रहे किसान अभी भी इंतजार
 

राजस्व विभाग की लापरवाही की वजह से कसेंदा गांव की कंप्यूटराइज्ड खतौनी इंटरनेट पर उपलब्ध भी नहीं है। इससे खतौनी नहीं निकल पाती है। बता दे की खेतों से जुड़े काम भी नहीं हो पा रहे हैं।
 

The Chopal - राजस्व विभाग की लापरवाही की वजह से कसेंदा गांव की कंप्यूटराइज्ड खतौनी इंटरनेट पर उपलब्ध भी नहीं है। इससे खतौनी नहीं निकल पाती है। बता दे की खेतों से जुड़े काम भी नहीं हो पा रहे हैं। आपको बता दे की गांव के चकबंदी में जाने के बाद से ऑनलाइन खतौनी अब निकलना बंद भी हो गया है।गांव की खतौनी 2 साल पहले चकबंदी से बाहर होने के बाद भी इंटरनेट पर अपलोड नहीं की गई। किसान इससे पीड़ित है। दो वर्ष बीत गए और अधिकारी आश्वासन दे रहे हैं।

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काश्तकारों ने प्रतिरोध किया

लगभग 5 साल पहले, चायल तहसील के कसेंदा गांव को चकबंदी प्रक्रिया में शामिल किया गया था। काश्तकार छेदीलाल, शंकरलाल, सुरेंद्र सिंह और भोला सिंह के अनुसार चकबंदी प्रक्रिया की धारा नौ के दौरान राजस्व विभाग पर चक काटने में मनमानी करने का आरोप यह लगाते हुए काश्तकारों ने विरोध प्रकट भी किया।

बाद में गांव में दो बार SDM और चकबंदी सहायक अधिकारी ने बैठक करके काश्तकारों को समझाने की कोशिश भी की। इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। गांव को इससे पूरी तरह से बचाया गया और चकबंदी प्रक्रिया से बाहर भी कर दिया गया।

दो साल पहले चकबंदी से बाहर कर दिया गया

काश्तकारों का कहना है कि गांव, जो करीब दो साल पहले चकबंदी से बाहर हो गया था, अभी तक नेट पर नहीं है। लेखपाल ने खतौनी को अभी तक इंटरनेट पर नहीं डाला है। इससे छोटे किसानों और काश्तकारों को जमीन की वरासत, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और अन्य सरकारी जमीन योजनाओं को खरीदने और बेचने में बाधा पहुँचती है।

काश्तकारों का यह कहते हैं की कंप्यूटरीकृत खतौनी नहीं निकलने से किसान बीमा, फसल बीमा और खेती की प्राकृतिक आपदाओं से मिलने वाले लाभों से भी वंचित रह रहे हैं। काश्तकार ऊधोश्याम, रामबली और छेदी ने कहा कि प्रयागराज-कौशांबी बौद्ध स्थल मार्ग फोर लेन हो रहा है। जमीन अधिग्रहीत होनी चाहिए। इसके लिए विभाग खतौनी दे रहा है।

खतौनी के बिना जमीन की रजिस्ट्री और मुआवजा संभव नहीं हैं। किसानों और काश्तकारों में इन समस्याओं को लेकर गुस्सा है।

खतौनी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है। जो चलते-चलते कंप्यूटराइज्ड खतौनी नहीं देता है। किसानों को इससे क्रेडिट कार्ड नहीं मिल पा रहे हैं। 

विजय सिंह ने कहा कि गांव दो साल पहले चकबंदी से बाहर हो गया है, लेकिन अभी तक कंप्यूटरीकृत खतौनी नहीं मिली है। खतौनी नहीं हो सकती, निकलने से वरासत नहीं हो सकती। इससे सरकारी कार्यक्रमों का भी लाभ नहीं मिल रहा है।