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Supreme Court के इस फैसले से बैंक हुए परेशान, ग्राहकों की हुई मौज

Supreme Court - सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी भी लोन खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित करने से पहले, उसके धारक को एक अतिरिक्त मौका दिया जाना चाहिए. इस निर्णय के अनुसार, लोन धारक को भी यह अधिकार है कि उसके खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित किए जाने से पहले...
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Banks were upset due to this decision of Supreme Court, customers were happy

The Chopal News : सरकारी न्यायिक संगठन सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जारी किया है कि बैंकिंग फ्रॉड के संबंध में एक नई दिशा चुनने का समय आ गया है. इस निर्णय से लोन लेने वाले लोगों के लिए कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन बैंकिंग इंडस्ट्री का दावा है कि इससे उनकी समस्याएं और बढ़ सकती हैं. बैंकिंग विशेषज्ञों के अनुसार, यह निर्णय कानूनी प्रक्रिया में विलम्ब और पेंच में वृद्धि कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी भी लोन खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित करने से पहले, उसके धारक को एक अतिरिक्त मौका दिया जाना चाहिए. इस निर्णय के अनुसार, लोन धारक को भी यह अधिकार है कि उसके खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित किए जाने से पहले, उसकी बात भी सुनी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 2016 में जारी किए गए रिजर्व बैंक के मास्टर सर्कुलर का पालन करने की आवश्यकता है.

इस निर्णय के पीछे की कहानी-

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जब किसी खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित किया जाता है, तो उस खाताधारक के साथ कई प्रकार के सिविक और जुर्माने की कार्रवाईयाँ भी हो सकती हैं. उसे 'ब्लैकलिस्ट' में डाल दिया जाता है और भविष्य में उसे किसी भी तरह का लोन नहीं मिलेगा. इसलिए, इस पहल से पहले आरबीआई के मास्टर सर्कुलर का पालन करते हुए इस तरह के खाताधारक की बात भी सुनी जानी चाहिए. आरबीआई ने 2016 में जारी किए गए मास्टर सर्कुलर में इस बारे में कहा था कि कर्ज चुकाने में असफल खाताधारकों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्जधारक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले, उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए.

बैंकिंग सेक्टर की चिंता-

बैंकिंग सेक्टर के विशेषज्ञों का कहना है कि इस निर्णय का पहला प्रभाव यह हो सकता है कि बैंकों को ऐसे लोन धारकों के मामलों में लंबा समय तक प्रतीक्षा करना पड़ेगा. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष रजनीश कुमार ने कहा कि इस आदेश के बाद, बैंकों को और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. साथ ही फ्रॉड करने वाले खाताधारकों के खिलाफ त्वरित कदम उठाने में भी परेशानी आ सकती है.

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बैंकिंग विशेषज्ञ और एबीसीआई के पूर्व बैंकर नरेश मल्होत्रा का कहना है कि इससे बैंकों को कानूनी प्रक्रिया निपटाने के लिए अधिक खर्च आ सकता है. इसके अलावा, अब किसी खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित करने से पहले, बैंकों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिससे न केवल समय ज्‍यादा लगेगा, बल्कि बैंकों के खर्चों में भी वृद्धि होगी. फिच समूह के इंडिया रेटिंग्‍स के बैंकिंग विश्लेषक करन गुप्‍ता का कहना है कि अब बैंकों को पहले से ही विलफुल डिफॉल्टर बने खाताधारक के खिलाफ कोर्ट में नए तरीके से सबूत प्रस्‍तुत करना होगा. यह कठिनाइयों से भरपूर प्रक्रिया होगी।

विलफुल डिफॉल्टर्स की स्थिति अभी क्या है-

आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में बैंकों का ग्रॉस एनपीए (GNPA) 5 प्रतिशत के पास है, जो कि पिछले 7 सालों के निचले स्तर पर है. इसके साथ ही, नेट NPA 1.3 प्रतिशत के साथ 10 साल के निचले स्तर पर है. देश के शीर्ष 50 विलफुल डिफॉल्टर्स के पास वर्तमान में लगभग 92,570 करोड़ रुपये का कर्ज है. विलफुल डिफॉल्टर्स वह व्यक्तियां हैं, जो पैसे होने के बावजूद अपने कर्ज को चुकाने का इरादा नहीं रखते हैं।

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