क्या काला नमक चावल जीआई टैग नहीं मिले इलाके में लगा सकते हैं, जानिए क्या होता है जीआई टैग
The Chopal : नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र के 11 जिलों में होने वाला काला नमक चावल हो या फिर बागपत सहित यूपी के इन जिलों में पैदा होने वाला कड़कनाथ मुर्गा हो। इन इलाकों में इनका होना उनकी खासियत होती है. इसी कारण से इनका जीआई टैग किया जाता है। क्या होता है जीआई टैग का नियम, दूसरे इलाकों में कैसे उगा सकते है?
भौगोलिक संकेत जीआई टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न होता है जिसका इस्तेमाल विशेष उत्पादों के लिए किया जाता है. जो उत्पादों को नकल से बचाता है। एक बार पंजीकरण किए गए जीआई टैग की वैलिडिटी 10 साल तक होती है. जीआई टैग वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा जारी किया जाता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में काला नमक चावल सिर्फ 11 जिलों में मिलता है: बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, बलरामपुर, गोंडा, गोरखपुर, श्रावस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया और बहराइच। जो सिर्फ जलवायु और मिट्टी में होता है। इसे भगवान बुद्ध का उपहार मानते हैं। चावल की सुगंध दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
इसी तरह, मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में रहने वाले कड़कनाथ मुर्गों को सबसे अच्छे मानते हैं। इस मुर्गे में और भी कुछ है। इस मुर्गे के खून, चोंच, मांस, अंडा और शरीर पूरी तरह से काले होते हैं। इसका स्वाद और गुण सामान्य मुर्गे से कई गुना अधिक हैं। वहीं, रटौल आम भी अलग तरह से जाना जाता है। बागपत जिले के रटौल गांव में अपनी खास सुगंध और स्वाद के कारण आम काफी लोकप्रिय है। यह प्रश्न उठता है कि जीआई टैग के बाद ये उत्पाद देश भर में कैसे उपलब्ध होते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई-पूसा) के जेनेटिक विभाग के प्रभारी डा. गोपाल कृष् णन ने बताया कि जीआई टैगेड उत्पाद को उसी नाम से संबंधित क्षेत्र में ही बनाया जा सकता है। यद्यपि एक ही गुण या ध्वनि का उत्पाद दूसरे स्थान पर बनाया जाए, फिर भी वह एक अलग नाम से रजिस्टर किया जाएगा। पूसा ने कई बीज बनाए हैं, जो समान स्वाद और गुणों के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यह अलग है कि बोलचाल में वही नाम लेकिन रजिस्टर नहीं हो सकता। लेकिन उन् होंने यह भी बताया कि दूसरी जगह उगाए गए उत्पादों में जलवायु और मिट्टी का प्रभाव होता है। इससे गुणवत्ता कम हो सकती है।
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