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Cotton Farming : कपास की बिजाई पर किसानों को सलाह, रखें इन बातों का ख्याल

Agriclture : आगामी अप्रैल में फिर से नरमा-कपास की बिजाई शुरू होगी। इस नकदी फसल को गुलाबी सुंडी से बचाने को लेकर विभागीय टीम अभी से किसानों को जागरूक करने में जुट गई है। 

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Cotton Farming : कपास की बिजाई पर किसानों को सलाह, रखें इन बातों का ख्याल

The Chopal, Agriclture : आगामी अप्रैल में फिर से नरमा-कपास की बिजाई शुरू होगी। इस नकदी फसल को गुलाबी सुंडी से बचाने को लेकर विभागीय टीम अभी से किसानों को जागरूक करने में जुट गई है। ताकि बिजाई के वक्त ही आवश्यक सावधानियां बरतकर फसल को सुरक्षित बनाया जा सके। आगामी खरीफ सीजन में करीब दो लाख हेक्टैयर में इसकी बिजाई का अनुमान है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार कपास भारत की प्रमुख रेशे वाली फसल है। विश्व में भारत का कपास उत्पादन क्षेत्र में प्रथम स्थान है। देश में करीब 133.41 लाख हेक्टैयर तथा राजस्थान में 6.72 लाख हेक्टैयर में कपास की खेती की जाती है।

राजस्थान में कपास खेती में हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर जिले का प्रमुख स्थान है। करीब एक दशक से अच्छा उत्पादन लेने के बाद बीटी नमरें में अब गुलाबी सुंडी का प्रकोप नजर आने लगा है। इससे किसान परेशान हो रहे हैं। गत बरस तो हनुमानगढ़ जिले में करीब 70 प्रतिशत तक सुंडी से फसल नुकसान की पुष्टि हो चुकी है। ऐसे में कृषि विभाग की टीम गांवों में जाकर अब किसानों को बिजाई के समय ही सभी तरह की सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। जिससे सुंडी के प्रकोप को कम किया जा सके।

पौधे से पौधे की दूरी का रखें ध्यान

बिजाई के समय ही किसान यदि अपने खेतों के आसपास नरमे की बनसटियों को हटा दें तो काफी हद तक सुंडी के फैलाव को रोका जा सकता है। खेतों के आसपास पड़ी बनसटियों को मिट्टी में दबाने की सलाह किसानों को दी गई है। इसके अलावा खेतों के आसपास पड़ी नरमे की लकड़ी को वर्ष में दो-तीन बार झाड़ने की सलाह भी दी। ताकि अधिक मात्रा में सुंडी नहीं पनप सके। बीटी कपास में गुलाबी सुंडी नियंत्रण के लिए कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी होता है।

मिट्टी व पानी को जांचें

कपास की बिजाई से पहले किसानों को चाहिए कि वह अपने खेत की मिट्टी व पानी की जांच करवाएं। कपास के अनुकूल रिपोर्ट आने के बाद ही बिजाई करें। कृषि विभाग के सहायक निदेशक बीआर बाकोलिया के अनुसार विभाग की सलाह मानकर खेती करने पर निश्चित ही नुकसान के स्तर को कम किया जा सकता है।

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