El Nino की गर्मी से केले की फसल में हो सकता है नुकसान, करें ये उपाय
The Chopal : फलों की बागवानी में केला देश के किसानों में रचा-बसा है, क्योंकि इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है. यह सहज उपलब्ध भी होता है. इसकी खेती के लिए 30-40 डिग्री वाले क्षेत्र ज्यादा सही माने जाते हैं, लेकिन इस साल अलनीनो की वजह से तापमान अप्रैल में ही 40 से ऊपर जाने लगा है. भारतीय मौसम विभाग द्वारा मई जून में और तेज गर्मी पड़ने की आशंका व्यक्त की गई है. गर्मी के मौसम में अर्थात अप्रैल-मई-जून के महीनों में तेज गर्म हवा से पौधों को बचाने के लिए खेतों में खड़ी केले की फसल का सही इंतजाम रखना जरूरी है. तेज गर्म हवा केले के लिए बहुत ही नुकसानदायक होती है. गर्म हवा के थपेड़ों से पौधों में नमी की भारी कमी हो जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा आती है और पौधे मुरझा कर सूखने लगते हैं. इसलिए इस मौसम में केले के बागों का ख़ास प्रबंधन बहुत ज़रूरी है. कृषि वैज्ञानिक भी गर्मियों में केले के ख़ास प्रबंधन की सुझाव दे रहे हैं.
अप्रैल-मई की गर्मी से केले पर आफत
कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के हेड और फल-सब्जी फसलों के विशेषज्ञ डॉ. बी. पी. शाही का कहना है कि अगर अप्रैल-मई में तापमान बढ़ता है और गर्म हवाएं चलती हैं, तो केले के पौधे सूख सकते हैं. केले के पौधे बहुत नरम होते हैं. ये ज्यादा गर्मी को सहन नहीं कर पाते हैं और सूख जाते हैं. अगर प्रबंधन नहीं किया जाता है तो 25-30 फीसदी नुकसान हो सकता है. उन्होंने बताया कि कई बार तो 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली गर्म हवाएं पौधों को सीधे गिरा भी देती हैं. केले के पौधे सूखने ना पाएं, इसके लिए जरूरी है कि केले के बाग में नमी को बनाए रखें. केले को लू के थपेड़ों से बचाने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में नेट लगाना चाहिए. इसके लिए बगीचे के किनारे पर ग्रीन शेड नेट का इस्तेमाल किया जाता है. वायु अवरोधक पेड़ जैसे गजराज घास या ढेंचा लगाने से वातावरण ठंडा रहेगा, जो गर्म हवाओं को रोकने में मददगार होते हैं और बगीचे में नमी बनी रहती है.
लू से कैसे मिले निजात?
केले के बंच को ज्यादा खतरा होता है. डॉ. शाही ने बताया कि अगर पौधों में केले का बंच, यानी फलों का गुच्छा,अप्रैल-मई महीने में निकल आए तो समस्या बढ़ जाती है. इसलिए कोशिश ऐसे प्रबंधन की करें ताकि बंच निकलने की अवस्था थोड़ा आगे-पीछे हो. फिर भी अगर केले के गुच्छे निकल आए हैं, तो शुष्क हवाओं से बचाने के लिए इन्हें ढंकें. नहीं तो गर्म हवा के कारण केले के बंच काले पड़ जाते हैं. इसके लिए केले की सूखी पत्तियों से केले के बंच को ढंक देना सस्ता उपाय है. वैसे आप बेहद पतले पॉली बैग, यानी स्केटिंग बैग से भी इसे पूरी तरह कवर कर सकते हैं. इससे केले का बंच लू के थपेड़ों से बच जाएगा. दूसरा, इन गुच्छों को ढंकने से केले का फल कीट और पक्षियों से सुरक्षित रहता है. साथ ही, इससे फलों के तैयार होने या पकने में भी कम समय लगता है. इस व्यवस्था में भी खर्च कोई ज्यादा नहीं होता.
नुकसान से बचने के लिए इंतजाम
विशेषज्ञ बीपी शाही ने बताया कि केले की खेती में सबसे अहम है सिंचाई प्रबंधन. गर्मी के दिनों में पानी का वाष्पीकरण बहुत तेज गति से होता है और अल नीनो के कारण तापमान बढ़ता है, जिससे समस्या और बढ़ जाती है. ऐसे में किसान केले के पौधों के थालों में केले की सूखी पत्तियां या फसल अवशेष का मल्चिंग करें. इससे पौधे में नमी ज्यादा देर तक बनी रहती है. केले के पौधों के बेहतर विकास और नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करना बेहद ज़रूरी है. इसलिए समय-समय पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इससे पैदावार को प्रभावित होने से बचाने के लिए किसानों को सप्ताह में कम से कम एक बार सिचाई करनी चाहिए.
ऐसे बढ़ाएं फलों की क्वालिटी
विशेषज्ञ बीपी शाही ने बताया कि जब पौधों में फलों के गुच्छे निकलते हैं, तो उनका भार उस तरफ़ बढ़ जाता है. इसमें अगर तेज़ हवा चले तो पौधों के गिरने की आशंका बढ़ जाती है. डॉ शाही ने सुझाव दिया कि इसलिए स्टेकिंग ज़रूरी है. यानी पौधों को बांस-बल्लियों का सहारा देना अच्छा होता है. लेकिन इन सबके बीच पौधों के पोषण का भी उचित ध्यान रखना पड़ता है. जैसे गर्मियों में पानी की ज़रूरत काफी बढ़ जाती है. ऐसे में ड्रिप से पानी दें, फर्टिलाइज़ेशन करें तो ज्यादा बेहतर होता है. प्रति पौधे पानी की निश्चित मात्रा अवश्य दें. खाद, फर्टिलाइज़र की सामान्य अनुशंसित खुराक के अलावा, ये तय कर लें कि पोटाश की मात्रा 400 ग्राम से कम ना हो. इन तरीक़ों का पालन करके आप अपने केले के बगीचे का प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे गर्मियों में होने वाले नुक़सान से बचा जा सकता है. साथ ही फलों की क्वालिटी और क्वाटिंटी दोनों में बढ़ोत्तरी होगी. विपरीत मौसम का कोई बुरा प्रभाव भी आपकी फ़सल पर नहीं होगा.