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काला सोना की खेती में खिल उठे फूल, किसानों को इस बार बंपर पैदावार का अनुमान

राजस्थान का काला सोना कहलाने वाली अफीम की फसल इन दिनों अपने पूरे यौवन पर चढ़ी हुई है. मौसम अनुकूल होने के चलते इन दिनों काश्तकारों के चेहरे भी खिले हुए हैं. ऐसे में किसान अपनी फसल को बचाने में भी दिन-रात लगे हुए हैं.
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काला सोना की खेती में खिल उठे फूल, किसानों को इस बार बंपर पैदावार का अनुमान

The Chopal : राजस्थान का काला सोना कहलाने वाली अफीम की फसल इन दिनों अपने पूरे यौवन पर चढ़ी हुई है. मौसम अनुकूल होने के चलते इन दिनों काश्तकारों के चेहरे भी खिले हुए हैं. ऐसे में किसान अपनी फसल को बचाने में भी दिन-रात लगे हुए हैं. दरअसल, मेवाड़ क्षेत्र में अफीम की खेती बहुतायत मात्रा में की जाती है और इन दिनों अफीम की खेती पर फूल आना और डोडे खिलना शुरू हो गए हैं, जिससे किसानों के चेहरे की भी चमक बढ़ गई है.

इस बार बंपर पैदावार होने की उम्मीद

कपासन गांव के काश्तकार किशन लाल ने बताया कि अभी अफीम की फसल के लिए मौसम पूरी तरीके से अनुकूल है. ऐसा मौसम बना रहा तो इस बार अफीम का अच्छा उत्पादन होगा. इस साल जिले में बारिश भी बहुत अच्छी हुई है. इस कारण किसानों के सामने सिंचाई को लेकर भी कोई समस्या नहीं हुई. अफीम की फसल को देखते हुए किसान काफी खुश है और आने वाले समय में अच्छी फसल होने की उम्मीद भी लगा रहे हैं. आपको बता दें कि मेवाड़ क्षेत्र में काले सोने की पैदावार ज्यादा की जाती है और सरकार द्वारा लाइसेंस जारी करने के बाद ही अफीम की खेती की जाती है.

सरकार के द्वारा दिया जाता है खेती के लिए लाइसेंस

आपको बता दें कि मेवाड़ क्षेत्र में अफीम की खेती को काला सोना माना जाता है. क्योंकि अफीम की खेती से किसानों को बहुत अधिक लाभ होता है और अफीम का प्रयोग आमतौर पर दवाइयों के लिए किया जाता है. सरकारी तरीके से इस खेती से किसानों को अत्यधिक लाभ मिलता है. इसी वजह से इसे काला सोना कहा जाता है.

जंगली जानवरों से किसान बचा रहे काले सोने की फसल

जैसे-जैसे मेवाड़ अंचल में अफीम की मादकता घुलती जा रही है. वैसे ही इन दिनों किसानों की चिंता बढ़ने लगी है. क्योंकि डोडे और फूल खिलने के बाद सबसे बड़ी समस्या होती है जंगली जानवर. इन दिनों अफीम की फसल में फूल खिल रहे हैं और फूलों को नुकसान नहीं पहुंचे ऐसे में पक्षियों से फसल की अधिक चौकीदारी करना पड़ रही है. सक्षम अफीम काश्तकार तो पूरे खेतों को जाल से ढके हुए हैं. लेकिन आर्थिक कमी के चलते कुछ किसानों के सामने यह एक बड़ी समस्या आ रही है.

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