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Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से नील के किसानों की चमकी किस्मत

Gandhi Jayanti: भारत में नील की खेती अब किसानों को पैसे दे रही है, ठीक उसी तरह से जैसे अंग्रेजों ने किसानों को मार डाला था। आज भारत के कई राज्यों में नील खेती की जाती है।

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महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से नील के किसानों की चमकी किस्मत 

Gandhi Jayanti: नील की खेती अब भारत के किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत कर रही है, ठीक उसी तरह से जैसे अंग्रेजों ने किसानों का खून चूस लिया था। आज, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड में नील की खेती की जाती है। लखनऊ के तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एएमए हर्बल फैक्ट्री में बाराबंकी में उत्पादित नील का उपयोग डेनिम के लिए बायो डाई बनाने में किया जाता है। 

बायो इंडिगो की जगह सिंथेटिक इंडिगो का प्रयोग

ग्रेटर नोएडा में एक इंटरनेशनल ट्रेड फेयर शो के दौरान एएमए हर्बल नामक एक कंपनी के स्टॉल से यह जानकारी मिली। “हमने लागत को कम करने और मुनाफे में सुधार के उद्देश्य से लखनऊ के बाहरी इलाके में नील की खेती शुरू की थी,” कंपनी के को-फाउंडर व सीईओ यावर अली शाह बताते हैं। अब इसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।

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नील की खेती केवल किसानों को नहीं बल्कि बायो इंडिगो का उपयोग करके 10 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है. सिंथेटिक इंडिगो की जगह बायो इंडिगो का उपयोग करने से कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है। लाइफ साइकल एनालिसिस (LCA) रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की है। नील की खेती ने कपड़ा उद्योग को प्रदूषण के बढ़ते स्तर की समस्या से निपटने का सबसे अच्छा उपाय प्रस्तुत किया है।「 

AMA Herbs के वाइस प्रेसिडेंट और सस्टेनेबल बिजनेस अपॉर्चुनिटीज हम्ज़ा ज़ैदी ने कहा, "बाराबंकी और आसपास के इलाके में किसान परंपरागत तरीके से मेंथा की खेती करते आए हैं, जिसकी लागत अधिक पड़ती है, जबकि नील या इंडिगो की खेती से उन्हें पहले से लगभग 30 फीसदी अधिक का लाभ प्राप्त हुआ, जो उनके लिए काफी उत्साहवर्धक नील की खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशकों का कोई उपयोग नहीं किया जाता है। 

नील खेती का इतिहास क्या है?

बंगाल में 1777 में नील की खेती शुरू की गई थी। यूरोप में नील की मांग बढ़ने से अंग्रेजों को फायदा हुआ। भारत में अंग्रेजों ने नील की खेती मनमाने ढंग से की। महात्मा गांधी ने नील की खेती करने वाले किसानों को अंग्रेजों के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह से एकजुट करके आंदोलन का आधार रखा था। यहां सदियों से नील की खेती की जाती है। अंग्रेजों ने किसानों पर तीन कठोर नियम लागू करके नील की खेती की। नील की खेती नहीं करने वाले किसानों को बेरहमी से पिटाई की सजा भी भुगतनी पड़ी। नील के किसानों ने अंग्रेजों की क्रूरता से परेशान होकर एक आंदोलन शुरू किया और महात्मा गांधी को नेतृत्व करने के लिए निमंत्रण दिया।

नील किसानों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी। नील की खेती के लिए ही भारतीय किसानों को अंग्रेजों और जमींदारों ने पीटा था। किसानों को बाजार मूल्य का सिर्फ २-३ प्रतिशत मिलता था। 1833 में किसानों पर एक अधिनियम लागू हुआ, जिससे नील क्रांति हुई। बंगाल के किसानों ने 1859–60 में उत्पीड़न को समाप्त करने की पहली कोशिश की।

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