खरीफ से पहले किसानों ने लगाया मौत को गले, बीते तीन महीनों में 767 फार्मर्स ने की जीवन लीला समाप्त
आजादी के 75 साल बाद भी किसने की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा समय पर बारिश, फसलों का लगातार रहा उत्पादन और बढ़ रहे कर्ज ने किसानों को पीसकर रख दिया है।
The Chopal, Maharastra Farmers Sucide : भारत को आजाद हुए 75 साल से भी अधिक हो गए हैं, लेकिन आज भी किसानों की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई है। देश के राज्य महाराष्ट्र की बात की जाए तो खरीफ सीजन से पहले किसानों की आत्महत्या का सिलसिला शुरू हो गया है। महाराष्ट्र के अमरावती संभाग में यह घटनाएं सबसे अधिक हो रही है।
बारिश का लेट आना फसलों की घट रही उपज और किसानों पर बीमारी और कर्ज का दबाव लगातार बढ़ने की वजह से कमर टूट गयी है। आंकड़ों के अनुसार बताया जा रहा है पिछले तीन महीना में प्रदेश में करीबन 767 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। हाल ही में 17 जून को अकोला जिला के नीमकरदा मारकंडा गांव के 58 वर्षीय किसान देवानंद इंगले ने अपने खेत में पेड़ से फांसी लगाकर जीवन लीला समाप्त कर ली।
बीमार वाइफ और फसल का ख़राब होना
बताया जा रहा है कि देवानंद इंगले की पत्नी को कैंसर हो गया था। जिसकी वजह से उनको भारी कर्ज हो गया था और डेढ़ एकड़ जमीन सिर्फ आई का स्रोत थी। जिसमें लगातार उत्पादन घटता हुआ जा रहा है। इसी वजह से बचत कम होने और बैंक के ₹15000 के कर्ज और रिश्तेदारों के 20000 के कर्ज तले दबकर देवानंद ने अपने जीवन लीला खत्म कर ली।
देवानंद इंगले के जाने के बाद उनके घर में उनका बेटा विक्की और उनकी बहु रह गए हैं। उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ जमीन में घर चलाना काफी मुश्किल हो रहा था और जैसे-तैसे चल रहा था। लेकिन दवाई का खर्च और बढ़ रहे अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए मजदूरी करने जाते थे। लेकिन अब बैंक और साहूकार के वसूली का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था और पापा को यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
किस काम का मुहावजा
इससे पहले भी पास के गांव में फरवरी 2021 में ऐसी घटना देखने को मिली। जब किसान कर्ज के बोझ तले दब्कर खेत में पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि उन पर 80000 से ज्यादा का कर्ज था। सरकार द्वारा ₹100000 की मदद जरूर दी गई। लेकिन उनकी पत्नी का कहना है कि सरकार बार-बार कर्ज माफी की घोषणाएं करती है। लेकिन हकीकत कुछ और है।
वहीं पास के बुजुर्गों ने कहा कि इस बार सरकार और मौसम दोनों ने साथ छोड़ दिया। यहां ऐसा ही चलता है कभी सरकार साथ नहीं देती तो कभी मौसम साथ नहीं देता और इसका हरज़ाना किसानों को भूख ना पड़ता है। ऐसे मौसम में एक तो उत्पादन घट जाता है और ऊपर से मंडी में पहुंचने पर ढंग का भाव नहीं मिल पाता।
उनका कहना है कि अगर प्रशासन और सरकार समय पर किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान दे, तो उन्हें ऐसा खौफनाक कदम उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
