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भारत का सबसे बड़ा जमींदार, नहीं करता खेती, देशभर के हर राज्य में फैली 17 हजार एकड़ जमीन का मालिक

Biggest Landowner in India- देश के लगभग हर राज्य में कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया की संपत्ति है। यह गोवा से नॉर्थ ईस्ट तक फैला हुआ है।  जमीन पर 51 मंत्रालयों और 116 सरकारी सेक्टर कंपनी काम करती हैं। वहीं, कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया को देश भर में 17.29 करोड़ एकड़ या 7 करोड़ हेक्टेयर जमीन है। 

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भारत का सबसे बड़ा जमींदार, नहीं करता खेती, देशभर के हर राज्य में फैली 17 हजार एकड़ जमीन का मालिक

Biggest Landowner : भारत में बहुत से लोग सरकार के बाद वक् फ बोर्ड के पास सबसे अधिक जमीन है। लेकिन, उनका यह विचार गलत है। कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया को भारत में सबसे अधिक जमीन है, सरकार के बाद नहीं। भारत सरकार के पास फरवरी 2021 तक लगभग 15,531 स्क्वायर किलोमीटर जमीन है, सरकारी जमीन सूचना प्रणाली की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के अनुसार। जमीन पर 51 मंत्रालयों और 116 सरकारी सेक्टर कंपनी काम करती हैं। वहीं, कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया को देश भर में 17.29 करोड़ एकड़ या 7 करोड़ हेक्टेयर जमीन है। इन जगहों पर स्कूल, कॉलेज और चर्च हैं। इनकी कुल लागत लगभग दो हजार करोड़ रुपये है।

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देश के लगभग हर राज्य में कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया की संपत्ति है। यह गोवा से नॉर्थ ईस्ट तक फैला हुआ है। कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया, या सीबीसीआई, कैथोलिक चर्च की सरकारी संस्था है। यह इसाई धर्म का सबसे बड़ा गुरू पोप फ्रांसिस के अधीन है। 2012 तक, कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया ने देश में 2457 हॉस्पिटल डिस्पेंसरी, 240 मेडिकल या नर्सिंग कॉलेज, 28 सामान्य कॉलेज, 5 इंजीनियरिंग कॉलेज, 3765 सैकेंडरी स्कूल, 7319 प्राइमरी स्कूल और 3187 नर्सरी स्कूल स्थापित किए थे।

इतनी जमीन कहाँ से आती है?

दरअसल, 1947 से पहले, अंग्रेजी हुकुमत ने कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया को बहुत सी जमीन दी थी। तब के ब्रिटिश शासन ने 1927 में भारतीय चर्च अधिनियम बनाया। इस कानून ने चर्चों को जमीन लीज पर नाममात्र की दर पर दी। कैथोलिक चर्च को भारत भर में जमीन दी गई। चर्च की जमीन भी विवाद में है। अब भी अक्सर चर्च द्वारा जमीन के लिए जानें की बातें उठती रहती हैं।

1965 में लीज रद्द करने का सर्कुलर जारी हुआ

1965 में भारत सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा लीज पर दी गई किसी भी जमीन को मान्यता नहीं दी जाएगी। इस सर्कुलर के कार्यान्वयन में देरी के कारण अभी तक इन जमीनों की वैधता पर बहस नहीं हुई है।

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