Mustard Seed : सरसों की टॉप वैरायटी कर देगी मौज, सरकार दे रही तगड़ी सब्सिडी
Mustard Seeds :देश में कुछ खरीफ सीजन में बोई गई फसलों की कटाई शुरू हो गई है। इन फसलों की कटाई करते ही किसान आगामी रबी सीजन की तिलहन फसल सरसों की बुवाई करेंगे। किसान अक्टूबर महीना सरसों की बिजाई के लिए बेहतर माना गया है। इसके लिए सरकार किसानों को सब्सिडी पर सरसों का बीज प्रदान कर रही है। सरकार द्वारा दिए जाने वाला यह बीज बेहतर उपज देने में सक्षम है।
Subsidy On Top Variety Of Mustard Seeds : देश में किसानों को खरीफ फसलों की कटाई का काम शुरू करने वाले है, वही कुछ की कटाई शुरू हो गई है। जिसके बाद किसान रबी फसलों की बुवाई की तैयारी में जुट जाएंगे। इस दौरान किसानों द्वारा गेहूं, जौ, चना और सरसों समेत कई तरह की फसलों की बुवाई की जाएगी। इस बीच रबी सीजन में तिलहन फसल सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी खबर है।
सरसों भारत की प्रमुख तिलहनी फसल है और यह देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। किसान सरसों की अगेती बुवाई करने के लिए विभिन्न किस्मों के उन्नत एवं प्रमाणित बीज की तलाश में लगे हुए हैं, उन्हें सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर, भरतपुर संस्थान द्वारा विकसित किए गए रेपसीड- सरसों की उन्नत किस्मों के बीज उचित और अनुदानित दामों में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इच्छुक किसान यहां संपर्क कर अपनी जरूरतों के मुताबिक बीज की खरीदी कर सकते हैं।
पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर होगा चयन
सरसों उत्पादन और क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश में प्रथम स्थान रखता है। भारत में सरसों के कुल उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी 46.06 प्रतिशत है। राजस्थान में सरसों की खेती किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है, जिसको देखते हुए सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर भरतपुर में 13 सितंबर से 28 सितंबर 2024 तक बीज पखवाड़े का आयोजन किया जा रहा है। इसमें किसानों को विभिन्न सरसों के उन्नत बीज अनुदान पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। किसानों को उन्नत किस्म के यह बीज “पहले आओ पहले पाओ” के आधार पर दिए जा रहे हैं।
सरसों की टॉप वैरायटी, गिरिराज
गिरिराज DRMRIJ-31 सरसों फसल की एक उन्नत और प्रमाणित किस्म है। सरसों की इस वैरायटी को वर्ष 2013-14 में अधिसूचित किया गया था। इसे दिल्ली, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कुछ अलग-अलग हिस्सों के लिए अनुशंसित किया गया है। इस सरसों किस्म में तेल की मात्रा 39-42.6 प्रतिशत तक की होती है। इसकी पैदावार क्षमता 23-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की है।
DRMR 150-35 वैरायटी
यह भी सरसों की उन्नत किस्म है। सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर, भरतपुर (ICAR-DRMR) संस्थान द्वारा सरसों की इस किस्म को वर्ष 2020 में स्पॉन्सर किया गया था। इस किस्म को बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, छत्तीसगढ़ और मणिपुर के वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेती करने के लिए अनुशंसित की गई है। इन राज्यों के किसान सरसों की इस किस्म की खेती धान की कटाई के पश्चात करते हैं। इस सरसों की पैदावार क्षमता 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसमें तेल की मात्रा 39.8 प्रतिशत तक होती है।
DRMR 1165-40 रुक्मणी
आईसीएआर-डीआरएमआर संस्थान भरतपुर द्वारा, सरसों की यह किस्म 2020 में अधिसूचित की गई थी। सरसों की यह किस्म राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और जम्मू कश्मीर के लिए अनुशंसित की गई है। इसकी उत्पादन क्षमता 22-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके बीजों में तेल की मात्रा 40 से 42.5 प्रतिशत तक होती है। यह सरसों किस्म 135-140 दिन में तैयार हो जाती है। सिंचित और असिंचित दोनों ही स्थितियों में सरसों की यह किस्म बेहतर पैदावार देती है।
डीआरएमआर2017-15, भारतीय सरसों राधिका
सरसों की इस किस्म की पहचान वर्ष 2021 में की गई थी। इसे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर और राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए स्पॉन्सर किया गया है। सिंचित स्थिति में देर से बुआई के लिए सरसों की यह किस्म बेहतर है। DRMR 2017-15 सरसों किस्म की औसत उत्पादन क्षमता 1788 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसके बीज में तेल की मात्रा 40.7 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 120 से 150 दिन की है। सरसों की इस किस्म में अल्टरनेरिया पत्ती झुलसा, सफेद जंग, तना सड़न, कोमल फफूंद और चूर्णी फफूंद और एफिड का प्रकोप भी कम है।
DRMRIC 16-38 बृजराज
यह किस्म दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर और राजस्थान के कुछ भाग के लिए अनुशंसित की गई है। सिंचित स्थितियों के तहत देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसके पौधे की ऊंचाई 188 से 197 सेमी और बीज आकार 2.9 से 5.0 g है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 120 से 149 दिन की है और इसमें तेल की मात्रा 37.6 से 40.9 प्रतिशत तक होती है। सरसों की डीआरएमआरआईसी 16-38 किस्म की उत्पादन क्षमता 1681 से 1801 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसमें अल्टरनेरिया पत्ती झुलसा, सफेद जंग, तना सड़न, कोमल फफूंद और चूर्णी फफूंद कम है और एफिड का प्रकोप भी कम है।