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प्रदेश के इस जिले में धान की खेती करती है मानसून पर निर्भर, लहलहा रही हैं धान की फसलें

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले का बहरागोड़ा प्रखंड कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस प्रखंड को "धान का कटोरा" कहा जाता है। मौसमी धान की खेती में यह प्रखंड पूरे राज्य में प्रमुख माना जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र में मौसमी धान से भरपूर हरियाली का साजा सजा हुआ है। पूर्वोत्तर में, मौसमी धान की अच्छी खेती की जाती है।

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प्रदेश के इस जिले में धान की खेती करती है मानसून पर निर्भर, लहलहा रही हैं धान की फसलें

The Chopal: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले का बहरागोड़ा किसानों के लिए महत्वपूर्ण धान का कटोरा है। उत्तम धान की खेती के लिए यह इलाका प्रसिद्ध है। मेहनती किसानों ने सरकारी सहायता और अपनी स्वयंसिंचाई की अच्छी प्रणाली का उपयोग किया है। इसके परिणामस्वरूप, अब पूरे खेतों में हरियाली है। मानसूनी वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है धान की सिंचाई के लिए। पिछले चार-पांच वर्षों में, इस क्षेत्र में मौसमी धान की खेती में वृद्धि हुई है। पिछले कुछ वर्षों में, बहरागोड़ा प्रखंड में मौसमी धान की खेती में वृद्धि हुई है। आजकल विभिन्न गांवों में सैकड़ों एकड़ में मौसमी धान के पौधे फलते हैं। किसानों ने कहा कि पिछले दिनों की वर्षा ने गरमा की फसल के लिए अमृत की तरह काम किया है।

मौसमी धान की खेती में बहरागोड़ा प्रखंड में अव्वलता है

इस वर्ष झारखंड में, बहरागोड़ा और बरसोल में मौसमी धान की खेती का लक्ष्य कृषि पदाधिकारी समीरण मजूमदार के अनुसार 18062 हेक्टेयर था। अब तक, 1304.64 हेक्टेयर में बोना गया है। सूखा की स्थिति सही नहीं है। बहरागोड़ा प्रखंड कृषि में झारखंड में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस प्रखंड को "धान का कटोरा" कहा जाता है। मौसमी धान की खेती में यह प्रखंड पूरे राज्य में प्रमुख माना जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र में मौसमी धान से भरपूर हरियाली की चादर बिछी हुई है। खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में, बड़ी स्थानीयता के साथ मौसमी धान की खेती की जाती है।

मानसूनी बारिश पर निर्भर नहीं है किसान

पिछले कुछ वर्षों में, मौसमी धान की खेती में वृद्धि हुई है। अबकी दिनों, विभिन्न गांवों में सैकड़ों एकड़ में मौसमी धान के पौधे फलते हैं। पिछले दिनों, बारिश ने बड़े पैमाने पर मौसमी धान की खेती के लिए अमृत साबित हुई है। बिजली की व्यवस्था होने के बाद, किसानों ने अपने खेतों में निजी स्तर पर सिंचाई की व्यवस्था की है। बिजली की व्यवस्था होने से, मौसमी धान की खेती करने में किसानों को आसानी हो रही है। किसानों को अब मौसम के लिए निर्भरता नहीं है, चाहे वो मानसून हो या सरकार की लचर सिंचाई व्यवस्था।

कुछ वर्ष पहले, सिंचाई की अभाव में जो खेत परती रह जाते थे और किसान बेकार बैठे रहते थे, अब वो खेतों में मौसमी धान के पौधे लगा रहे हैं। यह निजी स्तर पर सिंचाई की अच्छी तरह से व्यवस्था का परिणाम है, जिसके कारण खेतों में हरियाली फैली हुई है। किसानों ने कहा कि सरकार की सहायता बिना उनकी स्वयंसिंचाई व्यवस्था के काम नहीं आ सकती।

किसानों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसमी धान की खेती में बड़ी वृद्धि हुई है और उन्होंने अच्छे तरीके से खेती की है। मौसमी धान की खेती की लागत कम होती है और उससे अच्छा मुनाफा मिलता है। किसानों का कहना है कि वे अब मौसम की अनिश्चितता के बावजूद भी मौसमी धान की खेती में ज्यादा विश्वास रखते हैं।

कृषि मंत्री के अनुसार, इस वर्ष बहरागोड़ा प्रखंड में कुल 17575 हेक्टेयर में मौसमी धान की खेती होने की आशंका है। अब तक, 1177.95 हेक्टेयर में बोना गया है। बिजली की व्यवस्था के कारण, किसान अब अपने खेतों में सिंचाई की अच्छी व्यवस्था कर सकते हैं।

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कृषि मंत्री ने कहा कि मौसमी धान की खेती में इस वर्ष कुल 16962 हेक्टेयर में खेती होने की आशंका है, जिनमें से 1140.15 हेक्टेयर में बोना गया है।

इस वर्ष, बहरागोड़ा और बरसोल क्षेत्र में मौसमी धान की खेती की जाएगी। बिजली की व्यवस्था की वजह से, किसान खेतों में सिंचाई की अच्छी व्यवस्था कर सकते हैं। किसानों ने कहा कि उन्हें सरकारी सहायता और अपनी स्वयंसिंचाई की अच्छी प्रणाली का उपयोग करने का बहुत फायदा हो रहा है। बिजली की व्यवस्था की वजह से, मौसमी धान की खेती करने में किसानों को आसानी हो रही है।

कृषि मंत्री के अनुसार, इस वर्ष बहरागोड़ा प्रखंड में कुल 17575 हेक्टेयर में मौसमी धान की खेती होने की आशंका है। अब तक, 1177.95 हेक्टेयर में बोना गया है। किसानों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसमी धान की खेती में वृद्धि हुई है और उन्होंने अच्छे तरीके से खेती की है। वे सिंचाई की अच्छी व्यवस्था के साथ काम कर रहे हैं और उन्हें उनके पौधों के लिए उचित देखभाल मिल रही है।

कृषि मंत्री ने कहा कि मौसमी धान की खेती में इस वर्ष कुल 16962 हेक्टेयर में खेती होने की आशंका है, जिनमें से 1140.15 हेक्टेयर में बोना गया है। किसानों का कहना है कि उन्हें सरकारी सहायता और अपनी स्वयंसिंचाई की अच्छी प्रणाली का उपयोग करने का बहुत फायदा हो रहा है।

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