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Property News: पिता की संपत्ति से क्या बेटी को किया जा सकता है बेदखल, हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

Daughter's Property Rights : पिता की संपत्ति में हक की बात आती है तो कई लोगों ने बेटों को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में आज भी बेटियों को पिता की संपत्ति में अपने अधिकार को लेकर संघर्ष करते देखा जा सकता है (property me beti ka hak)। हाईकोर्ट में लगभग 44 वर्ष तक चले एक ऐसे ही प्रोपर्टी विवाद (property dispute) में महत्वपूर्ण निर्णय आया है। हम इस खबर में हाईकोर्ट के इस विशिष्ट निर्णय को जानेंगे।

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Property News: पिता की संपत्ति से क्या बेटी को किया जा सकता है बेदखल, हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

The Chopal : पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के हक को लेकर बहुत सारे विवाद हैं। ऐसे विवादों में अक्सर देखा जाता है कि बेटों को संपत्ति के बंटवारे में प्राथमिकता दी जाती है और बेटी को अक्सर पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी से वंचित कर दिया जाता है। पिता की संपत्ति उसे बेदखल तक की कोशिश भी की जाती है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या बेटी को कानूनी रूप से पिता की संपत्ति से बाहर निकाला जा सकता है? आप हाईकोर्ट के फैसले को जानकर इस सवाल का जवाब पाएंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि बेटी का पिता की संपत्ति में कितना हक है और उसे उस संपत्ति से बाहर निकाला जा सकता है या नहीं. यह निर्णय हाई कोर्ट के अधिकारों पर निर्णय है।

हाईकोर्ट ने कहा

जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने पिता की संपत्ति में बेटी के हक से जुड़े 44 वर्ष पुराने मामले में कहा कि याचिकाकर्ता मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। वे इस्लामिक नियमों को भी मानते हैं। यह कहा जाता है कि बेटी को संपत्ति में हक देने की परंपरा चली गई है, इसलिए उसे हक से वंचित कर दिया जाता है। हाईकोर्ट ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि कुरान में पिता की संपत्ति में पहले महिला और फिर पुरुष को उत्तराधिकारी या वारिस माना जाता है।

ये महत्वपूर्ण टिप्पणी हाईकोर्ट ने की

हाईकोर्ट ने कहा कि कुरान में पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार (pita ki property me beti ka hak) को बदला या अनदेखा नहीं किया जा सकता। ऐसे में, पिता की संपत्ति में बेटी के हक के मामलों में कुछ करना या उसे रोकना उसके अधिकार को छीनने के बराबर है। परंपरा का बहाना बनाकर बेटी का पिता की संपत्ति में अधिकार छीनने का कोई उपाय नहीं है। 

4 दशक से अधिक कानूनी लड़ाई

मुनव्वर नामक व्यक्ति की बेटी ने करीब 44 साल पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपना अधिकार मांगा था। इस मामले में निर्णय आने में चार दशक से अधिक का समय बीत गया। उनकी बेटी मुख्ती ने अपने पिता की संपत्ति में से एक तिहाई हिस्से पर हक मांगा।

मामला समाप्त होने से पहले मुख्ती का निधन हो गया। उसके बच्चों ने फिर से हिस्सेदारी का हक जताया और कोर्ट में मामला रखा। यह मामला 18 साल पहले, 1996 में, कोर्ट की डिवीजन बेंच में पुष्टि हुआ था। 

इसके बावजूद राजस्व अधिकारियों और सेंटलमेंट कमिश्नर ने उस फैसले को दरकिनार कर दिया तथा बच्चों की मां यानी मुख्ती को प्रोपर्टी की विरासत (inheritance of property) में शामिल नहीं माना। मुख्ती के बच्चों ने फिर हाईकोर्ट की शरण ली। बाद में हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। 

हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया

हाई कोर्ट ने इस मामले में संबंधित राजस्व अधिकारियों द्वारा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश का पालन नहीं करने को गलत ठहराया। साथ ही, डिवीजन बेंच ने कहा कि मुख्ती महिला के बच्चों को जायदाद में जितनी भी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, हर समय दी जाएगी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इस आदेश को जल्द से जल्द तीन महीने में लागू करने का भी आदेश दिया। 

जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने इस्लामिक कानून के अनुसार यह फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी बेटी को उसके पिता की संपत्ति में हक देने से मना नहीं किया जा सकता।