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Property Ownership: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ रजिस्ट्री से नहीं मिलेगा प्रॉपर्टी का मालिकाना हक, खरीददार रहें सतर्क

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब सिर्फ रजिस्ट्री से प्रॉपर्टी का मालिकाना हक साबित नहीं होगा। जानिए कौन-कौन से दस्तावेज़ जरूरी हैं और इससे रियल एस्टेट व घर खरीदने वालों पर क्या असर पड़ेगा। खरीदने से पहले जरूर पढ़ें यह ज़रूरी जानकारी।
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Property Ownership: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ रजिस्ट्री से नहीं मिलेगा प्रॉपर्टी का मालिकाना हक, खरीददार रहें सतर्क

Property Ownership Rule: अगर आप नया घर खरीदने का प्लान बना रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि सिर्फ रजिस्ट्री होने से कोई व्यक्ति प्रॉपर्टी का मालिक नहीं माना जाएगा। इस फैसले का असर रियल एस्टेट सेक्टर और घर खरीदने वालों – दोनों पर पड़ेगा।
अब प्रॉपर्टी खरीदना और बेचना पहले से ज्यादा लंबी, सख्त और महंगी प्रक्रिया बन सकती है, क्योंकि अब सिर्फ रजिस्ट्री होना काफी नहीं होगा। प्रॉपर्टी पर पूरा मालिकाना हक साबित करना जरूरी होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

ये फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना केस में आया है। इस केस में 1982 में हैदराबाद की एक को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी ने एक जमीन बिना रजिस्ट्री वाले एग्रीमेंट से खरीदी थी। 2006 में असिस्टेंट रजिस्ट्रार ने उसे वैध तो माना, लेकिन रजिस्ट्री नहीं हुई। इसके बाद वो जमीन कई लोगों को बेच दी गई, जिनमें महनूर फातिमा भी शामिल थीं। उन्होंने जमीन पर कब्जे का दावा करते हुए कोर्ट में केस दायर किया।

क्या रजिस्ट्री होने का मतलब मालिक होना है?

नहीं। कोर्ट ने साफ कहा है कि सिर्फ रजिस्ट्री से कोई व्यक्ति प्रॉपर्टी का कानूनी मालिक नहीं बन जाता। रजिस्ट्री सिर्फ एक लेन-देन का रिकॉर्ड है। अगर जिससे आपने जमीन खरीदी, वो खुद मालिक नहीं था, तो आपकी रजिस्ट्री भी मालिकाना हक नहीं देती।

प्रॉपर्टी का मालिकाना हक साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज़

प्रॉपर्टी का मालिकाना हक साबित करने के लिए कई जरूरी दस्तावेज़ होते हैं। इनमें सबसे अहम होते हैं सेल डीड और टाइटल डीड, जो यह दिखाते हैं कि प्रॉपर्टी का कानूनी मालिक कौन है। इसके अलावा, एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट यह बताता है कि उस प्रॉपर्टी पर कोई कर्ज़ या कानूनी अड़चन तो नहीं है। म्युटेशन सर्टिफिकेट की जरूरत नाम ट्रांसफर के लिए होती है, जिससे सरकारी रिकॉर्ड में नया मालिक दर्ज हो सके। साथ ही, प्रॉपर्टी टैक्स की रसीदें, पजेशन लेटर और एलॉटमेंट लेटर भी मालिकाना हक को मजबूत करने वाले दस्तावेज़ हैं। अगर प्रॉपर्टी किसी को विरासत में मिली है, तो सक्सेशन सर्टिफिकेट या वसीयत (Will) का होना जरूरी होता है। ये सभी दस्तावेज मिलकर यह साबित करते हैं कि आप उस संपत्ति के असली और कानूनी मालिक हैं।

रजिस्ट्री का क्या मतलब है?

रजिस्ट्री का मतलब होता है किसी प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कराना। इसका फायदा ये होता है कि भविष्य में अगर कोई कानूनी विवाद हो जाए, तो रजिस्ट्री एक अहम सबूत बनती है। इससे सरकार को प्रॉपर्टी टैक्स वसूलने में भी आसानी होती है और फर्जी दावे रोके जा सकते हैं। अगर कभी प्रॉपर्टी से जुड़े कागज़ खो जाएं या खराब हो जाएं, तो उनकी कॉपी रजिस्ट्री ऑफिस से दोबारा ली जा सकती है।

इस फैसले का असर प्रॉपर्टी खरीदने वालों और रियल एस्टेट पर क्या होगा?

अब जो लोग घर या जमीन खरीदना चाहते हैं, उन्हें पहले से ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। सिर्फ रजिस्ट्री हो जाना अब काफी नहीं है। यह भी देखना जरूरी होगा कि प्रॉपर्टी का टाइटल साफ है या नहीं, उस पर कोई कोर्ट केस, लोन या किसी और का दावा तो नहीं है। रियल एस्टेट एजेंट्स और बिल्डरों को भी अब पूरी ओनरशिप की जांच अच्छे से करनी होगी और कानूनी दस्तावेज़ों को ठीक से परखना होगा। इससे कागजी काम ज़्यादा हो सकता है, खर्च भी बढ़ सकता है और डील पूरी होने में पहले से ज्यादा वक्त लग सकता है।

कुल मिलाकर अब प्रॉपर्टी खरीदने के मामले में सिर्फ उसकी कीमत और लोकेशन देखकर फैसला लेना सही नहीं होगा। खरीदारों को अब सेल डीड, टाइटल क्लेरिटी, टैक्स की रसीदें और पुराने मालिक से जुड़े सभी ज़रूरी दस्तावेज़ ध्यान से देखने होंगे। कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले किसी एक्सपर्ट से उसका कानूनी जांच   करवाना ही समझदारी होगी, ताकि बाद में कोई परेशानी न हो।

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