UP में "काले सोने" की खेती से बन गया अमीर, लाखों की इनकम से हुई मौज

The Chopal : केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक किसानों को उद्यानिकी खेती की तरफ बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए जागरूक करने का काम कर रही है. ऐसे में किसान भी धीरे धीरे इस खेती को अपना रहे हैं. रायबरेली के किसान भी अपनी परंपरागत खेती छोड़ उद्यानिक खेती करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं.
आज हम आपको ऐसे किसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ऐसी फसल की खेती कर रहे हैं जिसका नाम सुनकर आप चौंक जाएंगे. यह किसान काले सोने यानी कि अफीम की खेती कर अपनी तकदीर बदल रहा है. इसमें वह कम लागत में अधिक मुनाफा भी कमा रहे है.
ऐसे होती है अफीम की खेती
रायबरेली जनपद के बेड़ारु गांव के प्रगतिशील किसान सतीश कुमार वर्मा बताते हैं कि वह बीते 35 वर्षों से काले सोने की खेती कर रहे हैं. उनके मुताबिक अफीम की खेती के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है. क्योंकि इसका प्रयोग अधिकतर दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है. इसीलिए सरकार से लाइसेंस मिलने के बाद ही आप इसकी खेती कर सकते हैं. वह बताते हैं कि वर्तमान समय में वह 10 बिस्वा जमीन में इसकी खेती कर रहे हैं. जिसमे 30 से 40 हजार रुपए की लागत आती है तो वही लागत के मुकाबले साल में डेढ़ से पौने दो लाख रुपए तक का आसानी से मुनाफा भी हो जाता है.
खेती के लिए लाइसेंस
इसकी खेती करने के लिए सरकार से आपको लाइसेंस लेना पड़ता है. लाइसेंस की अगर बात की जाए तो यह वित्त मंत्रालय की ओर से जारी होता है. हालांकि आवेदन सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट पर करना होता है. इसके बाद विभाग द्वारा आपको लाइसेंस उपलब्ध कराया जाता है.
महज 6 माह में तैयार हो जाती है फसल
वह बताते हैं कि गेहूं की फसल की तरह ही नवंबर माह में इसकी बुवाई की जाती है और अप्रैल माह में यह फसल तैयार हो जाती है. अफीम की बुवाई करते ही पौधों में 95 से 115 दिन में फूल आने लगते हैं. धीरे-धीरे यह फूल झड़ जाते हैं और 15 से 20 दिन में पौधे में डोडे आने शुरू हो जाते हैं.
सरकार करती है इसकी खरीद
रायबरेली के किसान सतीश कुमार वर्मा बताते हैं कि फसल तैयार होने के बाद सरकार द्वारा इसके डोडे को सरकारी दाम 200 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदारी की जाती है. तो वहीं इसके दाने को वह बाजार में 1000 से 1400 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री कर देते हैं. जिससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा मिल जाता है.
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