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Supreme Court: क्या सास-ससुर बहू को घर से निकाल सकते हैं या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Supreme Court Decision:  राष्ट्रीय कानून महिलाओं को विभिन्न स्तर पर सशक्त बनाने के लिए बहुत से अधिकार देता है। इसके अलावा, महिलाओं को समय के साथ होने वाले सामाजिक बदलावों को देखते हुए भी नए अधिकार दिए जाते हैं, ताकि वे समाज में भेदभाव या अन्य बाधाओं से बच सकें। आज देश में बहुत सी महिलाएं अपने अधिकारों की मांग कर रही हैं। दूसरी ओर, आज भी देश में कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें संविधान में दिए गए अधिकारों के बारे में पता नहीं है या बिल्कुल नहीं पता है। आज हम सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में बता रहे हैं। 

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Supreme Court: क्या सास-ससुर बहू को घर से निकाल सकते हैं या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

The Chopal, Supreme Court Decision:  देश की सर्वोच्च न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट, ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। सास-ससुर की संपत्ति में बहू के अधिकार को लेकर हाल ही में कोर्ट में एक केस सामने आया है। न्यायालय ने कहा कि बहू को अपने सास-ससुर के घर रहने का पूरा अधिकार है; उन्हें ससुराल से या उनकी संपत्ति से बाहर नहीं निकाला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि महिलाओं को हर तरह की हिंसा का शिकार होना पड़ता है और देश में घरेलू हिंसा जैसे अपराध बड़े पैमाने पर हो रहे हैं।

2006 का निर्णय तीन जजो बेंच ने पलटा—

युवक बत्रा मामले में न्यायाधीश अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दो जजों की पीठ के फैसले को पलट दिया है। 2005 के घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने वाले कानून (daughters-in-law rights in in-law property) को 'मील का पत्थर' करार देते हुए न्यायाधीश ने कहा कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला का पति के माता-पिता की साझा संपत्ति और रिहायशी घर पर पूरा अधिकार है।

ससुराल की साझा संपत्ति और पैतृक संपत्ति पर बहू का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि बहू को अपने ससुराल की साझा और पैतृक संपत्ति में रहने का कानूनी अधिकार होगा। इसके अलावा, पत्नी को पति के धन से बनाया गया घर पर ही अधिकार होता है। 2006 में एसआर बत्रा और अन्य बनाम तरुण बत्रा मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने नया ऐतिहासिक निर्णय दिया है।

संशोधन के पहले हिंदू परिवार में शादी के बाद बेटी को कोई अधिकार नहीं था। संशोधन के बाद, बेटी भी पिता के एचयूएफ में हकदार मानी जाती है, चाहे वह विवाहित हो या नहीं। उसे कर्ता भी बनाया जा सकता है, जो उस संपत्ति का प्रमुख है। संशोधन के बाद, वह मायके में अपने बेटे के बराबर का हिस्सेदार है। फिर भी ससुराल में उसका यह अधिकार बहुत सीमित है।

महिलाओं को महत्वपूर्ण राहत

2006 में तरुण बत्रा मामले में दो जजों की पीठ ने निर्णय दिया था कि बहू अपने पति के सास-ससुर या माता-पिता की संपत्ति में नहीं रह सकती है। उस समय कोर्ट ने कहा कि पत्नी का (property right) अधिकार सिर्फ अपने पति की संपत्ति पर होगा, न कि सास-ससुर की संपत्ति पर। अब तीन जजों की पीठ ने गुरुवार को इस मामले (property rights in-law property) पर फिर से सुनवाई करते हुए फैसला पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि बहू को पति की निजी संपत्ति में ही नहीं, बल्कि साझा घर में भी अधिकार है।