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Supreme Court Decision : निजी और सरकारी ज़मीन पर जिसका इतने साल से होगा कब्ज़ा, वही होगा उसका मालिक

Supreme Court Decision : जब कोई संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है, तो उसे वापस लेना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारे कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति संपत्ति पर इतने सालों तक कब्ज़ा करता रहता है, तो वह संपत्ति का मालिक बन जाता है, क्या ये नियम सरकारी और निजी प्रॉपर्टी पर लागू होता है, आइये इसके बारे में डिटेल से जानते है।
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Supreme Court Decision : निजी और सरकारी ज़मीन पर जिसका इतने साल से होगा कब्ज़ा, वही होगा उसका मालिक

The Chopal (New Delhi) : घर का किराया एक स्थायी आय है। लोग इसलिए संपत्ति में निवेश करते हैं। घर खरीदते हैं, दुकान खरीदते हैं, जमीन खरीदते हैं। खरीदने के बाद किराए पर चढ़ा दें। मालिक अक्सर किराए पर दिए गए अपने संपत्ति की देखभाल नहीं करते। यात्रा करते हैं। या देश में रहते हुए केवल अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। किराया ही उनके बैंक खाते में हर महीने आता है। लेकिन किराए पर देते समय और किराए पर चढ़ाने के बाद भी मालिक को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो संपत्ति बर्बाद हो सकती है।हमारे देश में संपत्ति को लेकर कुछ कानून हैं, जिसमें किराएदार 12 साल तक संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकता है। किंतु इसकी कुछ शर्तें हैं। इसका कोई हल नहीं है। लेकिन आपकी संपत्ति विवाद में होगी।

किराएदार कब्जे का दावा कब कर सकता है?

विरोधी कब्जा का कानून अग्रेजों ने बनाया है। अंग्रेजी में adverse possession है। किराएदार 12 साल तक रहने के बाद संपत्ति पर कब्जे का दावा कर सकता है। लेकिन इसके कुछ नियम हैं। जैसे, मकान मालिक ने 12 साल की अवधि में कभी उस कब्जे को वापस नहीं लिया होगा। यानी संपत्ति पर किराएदार का निरंतर नियंत्रण हो। कोई ब्रेक न हो. किराएदार बिजली, पानी और संपत्ति के बिल को सबूत के तौर पर पेश कर सकता है।

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के विवाद में ऐतिहासिक निर्णय दिया है: बारह वर्ष तक जमीन पर रहने वाला व्यक्ति अब जमीन का मालिक होगा।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अगर कोई 12 साल तक उस जमीन पर कोई मालिकाना हक नहीं दिखाता, तो वह जमीन का मालिक होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला निजी जमीन से जुड़ा है. ये निर्णय सरकारी जमीन पर लागू नहीं होंगे।

2014 में कोर्ट ने अपना निर्णय पलट दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सेल एग्रीमेंट या अटॉर्नी की शक्ति से मालिकाना हक नहीं मिलेगा, इसलिए ये कागजात होने चाहिए।

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन को लेकर अपने ही निर्णय को पलट दिया। 2014 में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने फैसला पलट दिया कि किराएदार 12 साल से अधिक समय तक किसी जमीन पर रहता है अगर कोई दावा नहीं करता है। आपको बता दें कि 2014 में कोर्ट ने कहा कि प्रतिकूल अधिग्रहण वाले व्यक्ति जमीन पर अधिग्रहण का दावा नहीं कर सकते। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर जमीन मालिक कब्जाधारी से जमीन वापस लेना चाहता है तो कब्जाधारी को जमीन वापस करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के कब्जे से जुड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय कानून किसी व्यक्ति को 12 साल तक किसी जमीन पर अपना हक जताने का अधिकार देता है. विवादित जमीन पर 12 साल के भीतर कोई व्यक्ति मुकदमा दायर कर सकता है और अदालत से उसे वापस पा सकता है। बता दें कि 1963 के लिमिटेशन एक्ट के तहत निजी संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा करने का समय बारह वर्ष है, जबकि सरकारी संपत्ति पर ये सीमा तीस वर्ष है। जबरन कब्जे की शिकायत 12 साल के अंदर करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 12 साल तक जमीन पर कब्जा बरकरार रहने और मालिक की ओर से कोई आपत्ति नहीं होने की स्थिति में जमीन कब्जा करने वाले व्यक्ति की होगी। जब कब्जेदार को अपनी संपत्ति से जबरन निकाला जाता है, तो वह बारह साल के भीतर मुकदमा दायर कर सकता है और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है। सिर्फ अटॉर्नी की शक्ति या वसीयत से आप किसी संपत्ति के मालिक नहीं बन सकते।

जैसे कि आप अपना घर किराए पर देते समय सिर्फ ग्यारह महीने का रेंट एग्रीमेंट बनाएं। हालाँकि ग्यारह महीने बाद रिन्यू कर सकते हैं। इससे लाभ होगा कि ब्रेक होगा। ब्रेक आने से किराएदार कब्जा नहीं कर पाएगा।

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