सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटा, सालों पुरानी विवादित जमीन को बनाया तालाब भूमि
गाजियाबाद में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को तालाब घोषित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए कहा कि निचली अथॉरिटीज ने लगातार एक समझौता किया था कि जमीन को तालाब माना जाना चाहिए। जानिए विस्तार से
The Chopal, Supreme Court : दशकों से चला आ रहा यह विवाद है कि क्या गाजियाबाद में एक जमीन को तालाब माना जाएगा या ऊसर जमीन। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए विवादित जमीन को तालाब बना दिया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के साक्ष्यों और तर्कों के साथ दिए गए निचली अथारिटी के निष्कर्षों को नकार देने और जमीन को ऊसर जमीन मानने के निर्णय को गलत ठहराया है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा कि निचली अथॉरिटीज ने लंबे समय से समझौता किया था कि जमीन को तालाब माना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने निचली अथॉरिटी के साक्ष्यों को फिर से देखा और बिना किसी साक्ष्य के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि उस जमीन को ऊसर जमीन माना जाना चाहिए था।
गाजियाबाद की जमीन पर विवाद बहुत पुराना है। 1970 में राजस्व रिकॉर्ड में विवादित जमीन तालाब के रूप में दर्ज की गई थी। 2003 में, खचेड़ू नामक व्यक्ति ने जमीन का दावा किया और कहा कि 1981-82 के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार उसके पास जमीन का पट्टा है।
वहीं, अजय कुमार ने खचेड़ू के दावे का विरोध करते हुए यूपी जमीदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में अर्जी दाखिल की। कहा कि कंसोलिडिएशन प्रक्रिया शुरू होने से पहले से ही विवादित जमीन तालाब है। वह जमीन ऊसर नहीं है और जलाशय है, इसलिए कांसोलिडेशन प्रक्रिया से बाहर रखा गया क्योंकि गांव वाले उसका पानी उपयोग करते थे।
2004 में गाजियाबाद के एडीशनल डिस्टि्रक मजिस्ट्रेट ने जमीन के पट्टे का दावा खारिज कर दिया। तहसीलदार की रिपोर्ट के अनुसार, पट्टे की कोई फाइल तहसील आफिस में नहीं है। पट्टा आवंटन का दावा 1981 में हुआ था, जबकि आवंटन रजिस्टर में 1978–79 दिखता है।
माना गया कि खतौनी में दी गई सूचना फर्जी है। राजस्व प्रविष्टि को ठीक किया गया और उस पट्टे को रद माना गया। खचेड़ू ने इस आदेश के खिलाफ कमिश्नर मेरठ में पुनर्विचार अपील की, जो खारिज हो गई।
बीच में, अजय सिंह ने गाजियाबाद में सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में वाद दाखिल किया, जिसमें उसने खचेड़ू की विवादित जमीन पर हस्तक्षेप करने पर स्थायी रोक लगाने की मांग की। 2005 में सिविल जज ने एकतरफा आदेश जारी किया, जिसमें गांव वालों के तालाब का पानी उपयोग करने में खचेड़ू द्वारा किसी भी प्रकार की बाधा डालने पर प्रतिबंध लगाया गया था।
खचेड़ू ने सभी आदेशों को चुनौती दी, लेकिन वे हार गए। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की. 2013 में, हाईकोर्ट ने निचली अथॉरिटी का आदेश खारिज कर दिया और जमीन को ऊसर जमीन घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटीज को विवादित जमीन को तालाब बनाने का आदेश बहाल कर दिया है।