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संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर Supreme Court ने सुनाया ये बड़ा फैसला, इन कागजात के बिना नहीं बन पाएंगे मालिक

वसीयत (वसीयतकर्ता की मृत्‍यु से पहले) और मुख्‍तारनामे को किसी भी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने वाले डॉक्‍यूमेंट या स्वामित्व दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है.
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संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर Supreme Court ने सुनाया ये बड़ा फैसला, इन कागजात के बिना नहीं बन पाएंगे मालिक

The Chopal ( New Delhi ) सर्वोच्च अदालत ने (Supreme Court) ने अब संपत्ति के मालिकाना हक के संबंध में इन दोनों ही दस्‍तावेजों की मान्‍यता पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि वसीयत (वसीयतकर्ता की मृत्‍यु से पहले) और मुख्‍तारनामे को किसी भी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने वाले डॉक्‍यूमेंट या स्वामित्व दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है.

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्‍तानामा धारक द्वारा किसी भी दस्तावेज का निष्पादन न करने से उक्त मुख्‍तारनामा बेकार हो जाता है. बेंच ने कहा, “जनरल पॉवर ऑफ अटार्नी और इस प्रकार निष्पादित वसीयत के संबंध में, किसी भी राज्य या हाईकोर्ट में प्रचलित प्रैक्टिस, यदि कोई है, जिनके तहत इन दस्तावेजों को स्वामित्व दस्तावेजों के रूप में पहचाना जाता है या किसी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने वाले कागजों के रूप में मान्‍यता दी जाती है, तो यह सांविधिक कानून (Statutory Law) का उल्लंघन है. इस प्रकार की कोई भी परंपरा कानून के उन विशिष्ट प्रावधानों पर अधिभावी (Override) नहीं हो सकती जिनके तहत स्वामित्व के दस्तावेज के निष्पादन (Execution) या स्‍थानांतरण (Transfer) या पंजीयन (Registration) की आवश्यकता होती है, ताकि 100 रुपये से ज्‍यादा कीमत वाली अचल संपत्ति में अधिकार और स्वामित्व प्रदान किया जा सके.”

वसीयत मृत्‍यु के बाद  ही प्रभावी

लाइवलॉ डॉट इन की एक रिपोर्ट के अनुसार, वसीयत के माध्यम से कोई स्वामित्व प्रदान किया जा सकता है या नहीं, इस मुद्दे पर खंडपीठ ने कहा कि वसीयत निष्पादक (Will Executor) की मृत्यु के बाद ही प्रभावी होती है. वसीयत में इसे बनाने वाले के जीवित रहते कोई बल नहीं होता. इस मामले में वसीयत करने वाला जीवित है, इसलिए बेंच ने कहा कि वसीयत प्रतिवादी को कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है. वसीयतनामे को किसी भी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने वाले दस्‍तावेज के रूप में मान्‍यता नहीं दी जा सकती.

पावर ऑफ अटॉर्नी का निष्‍पादन जरूरी

बेंच ने कहा कि मामले में अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को दी गई जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी अप्रासंगिक है. प्रतिवादी ने इस मुख्‍तारनामे का इस्‍तेमाल कर ने तो कोइ्र सेल डीड की और न ही कोई और ऐसी कार्रवाई की गई जो प्रतिवादी को संपत्ति का स्‍वामित्‍व प्रदान कर सके. किसी भी दस्तावेज का निष्पादन न करने के परिणामस्वरूप उक्त जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बेकार हो जाती है.

संपत्ति का हंस्‍तातरण रजिस्‍टर्ड डीड से ही

सुप्रीम कोर्ट पहले भी सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्रा लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, (2009) के केस का फैसला सुनाते हुए कह चुका है कि अचल संपत्ति को एक पंजीकृत हस्तांतरण विलेख (Registered Conveyance Deed) की सहायता से ही हस्‍तांतरित की जा सकती है. यह बिक्री समझौते (Sales Agreement), जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत के माध्यम से ने नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अब घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी मामले में भी सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्रा लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य और अन्य वाले मामले में दिए फैसले से सहमति जताई है.

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