The Chopal

Supreme Court ने सुनाया जमीन अधिग्रहण को लेकर अहम फैसला, आम जनता को मिलेगी बड़ी राहत

Supreme Court Decision : भूमि अधिग्रहण के बारे में अक्सर बहस होती रहती है। जबकि कानून में भू अधिग्रहण (land acquisition provision) का विरोध होता है, कहीं-कहीं औने-पौने मूल्य पर जमीन अधिग्रहण की चर्चा होती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने भू अधिग्रहण मामले में बड़ा फैसला सुनाया है, जो आम लोगों को काफी राहत दे सकेगा। आइये इस निर्णय के बारे में अधिक जानें।

   Follow Us On   follow Us on
Supreme Court ने सुनाया जमीन अधिग्रहण को लेकर अहम फैसला, आम जनता को मिलेगी बड़ी राहत

land acquisition: सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिससे आम नागरिकों और किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। निजी भूमि का अधिग्रहण करने पर भू मालिकों को मुआवजा दिया जाता है। इन्हीं मुआवजों को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। यह भी देखने में आता है कि सरकार भू अधिग्रहण (मुआवजा राशि के लिए भू अधिग्रहण) तो कर लेती है लेकिन मुआवजा राशि को छोड़ देती है। भू मालिकों को इससे कठिनाई होती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने भू अधिग्रहण के मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया है, जो लोगों को बहुत राहत दी है। 

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की निर्णय को चुनौती दी

सर्वोच्च न्यायालय ने बेंगलुरु-मैसुरु इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण के मामले में यह निर्णय दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले यह मामला देखा था। नवंबर 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 

सुप्रीम कोर्ट का अनुच्छेद-300-ए कहता है कि कानूनी अधिकार (सुप्रीम कोर्ट की फैसला) के बिना किसी को अपनी संपत्ति से बेदखल करना सही नहीं है; इस प्रावधान के अनुसार ऐसा कतई नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी जमीन को अधिग्रहण करने पर भू मालिकों को उस जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता, जब तक कि उचित मुआवजा नहीं दिया जाए।

संवैधानिक अधिकारों में शामिल है

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकारों में शामिल है। यह पुष्टि करते हुए दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकारों (fundamental rights) में नहीं है क्योंकि यह संविधान का 44वां संशोधन अधिनियम, 1978, मानव अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत हर समय संवैधानिक अधिकार (constitutional rights) में है।

दो दशकों से न्यायालय के चक्कर काटते रहे हैं

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्णय दिया कि नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं के पास जमीन नहीं थी। जनवरी 2003 में, कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड यानी (KIADB) ने इस बारे में सूचना दी कि परियोजना के लिए जमीन उपलब्ध कराई गई है। इसके बाद, भू-स्वामी दो दशकों से न्यायालय के चक्कर काटते रहे हैं। 

अपीलकर्ताओं को एक तो मुआवजा नहीं दिया गया था और दूसरे, उनकी अपनी संपत्ति से भी छीन लिया गया था। इसका अर्थ है कि KIADB अधिकारियों का व्यवहार गलत था, जिससे भू मालिकों को इतने साल तक उनके अधिकारों के अनुसार मुआवजा नहीं मिला। 

नोटिस के बाद प्राप्त ज्ञान

न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि इस अवमानना पर कार्रवाई की गई और 22 अप्रैल, 2019 को विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी, यानी SLAO, ने अधिग्रहीत भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए जागे। 2011 में प्रचलित मूल्यों का निर्माण किया गया था। इसके बाद ही मुआवजा का भुगतान किया गया था।

इस दर पर मुआवजा नहीं मिल सकता

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि 2003 के हिसाब से अपीलकर्ताओं को बाजार मूल्य पर मुआवजा देना उचित नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 300-ए का मजाक भी है और उसका उल्लंघन भी है। इस मामले में, अदालत ने अनुच्छेद-142 के तहत SLAO को 22 अप्रैल, 2019 को प्रचलित बाजार रेट के आधार पर मुआवजा देने का आदेश दिया सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पक्षकारों की सुनवाई के बाद एसएलएओ को दो महीने में ही नए सिरे से मुआवजा देने का आदेश दिया है। यदि पक्षकार इससे संतुष्ट नहीं होंगे, तो उन्हें चुनौती देने का अधिकार होगा।

News Hub