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काली सरसों की टॉप 5 किस्में जो देगी बम्पर उत्पादन

तिलहनी फसलों में सबसे अधिक किसान सरसों की खेती करते हैं। सरसों कई राज्यों में खेती की जाती है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और असम इन राज्यों में से हैं। जानिए विस्तार से....
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Top 5 varieties of black mustard which will give bumper production

The Chopal : तिलहनी फसलों में सबसे अधिक किसान सरसों की खेती करते हैं। सरसों कई राज्यों में खेती की जाती है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और असम इन राज्यों में से हैं। बुवाई के लिए सरसों की कई किस्में अच्छी हैं। लेकिन किसान को सरसों की बुवाई करते समय ऐसी किस्मों का चुनाव करना चाहिए जो अधिक तेल उत्पादन और अधिक पैदावार देते हैं।

बहुत सी सरसों की किस्में हैं जिनसे अधिक तेल मिल सकता है। भारत में दो प्रकार की सरसों की खेती की जाती है: काली और पीली। काली सरसों में अधिक तेल होता है, इसलिए अधिकांश किसान उसकी खेती करते हैं. धार्मिक क्रियाओं में पीली सरसों का उपयोग किया जाता है। 15 सितंबर सरसों की बुवाई का सही समय है। 

45S46 पायनियर सीड्स संकर सरसों की किस्म है। इसमें ४२ प्रतिशत तक तेल मिल सकता है। 125 से 130 दिन की अवधि में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। विशेष रूप से, सरसों की यह किस्म तना गलन रोग से बचती है। इस किस्म का सरस औसतन 11 से 13 क्विंटल प्रति एकड़ दे सकता है। 10 अक्टूबर से 10 नवंबर तक इस किस्म की बुवाई की जाती है।

सरसों की पायनियर 45S46 किस्म की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 800 ग्राम से 1 किलो बीज की आवश्यकता होती है।

10- 15 किस्म सरसों की स्टार एग्रीसीड्स की एक संकर किस्म है। यह किस्म किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है। इस किस्म से ४० से ४२ प्रतिशत तेल मिल सकता है। 125 से 130 दिन की अवधि में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की सरसों की फली 6 से 7 सेमी लंबी होती है। इसकी फली में दान अधिक होते हैं। मुख्य बात यह है कि सरसों की स्टार दस से पंद्रह किस्म के पाले को सहन करता है। यह दो सिंचाई में तैयार होने से पानी बचता है। इस किस्म का औसत उत्पादन प्रति एकड़ बारह से तेरह क्विंटल हो सकता है।

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10 से 15 किस्म की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 700 से 800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

MJ1 सरसों की धान्या टाटा इंडिया लिमिटेड सीड्स की संकर किस्म है। 110-115 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। दानें भूरे होते हैं। इसमें चालिस प्रतिशत तक तेल है। इस किस्म की सरसों से औसतन 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन मिल सकता है। नवंबर में इस किस्म को बोया जा सकता है।

MJ1 किस्म की सरसों की धान्या की बुवाई के लिए प्रति एकड़ एक किलो बीज की आवश्यकता होती है।

सरसों की क्रिस्टल प्रोएग्रो 5222 किस्म एक संकर किस्म है जो अधिक उत्पादन देती है। 125 से 130 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। यह मध्यम लंबाई की किस्म है, जिसमें 41-42 प्रतिशत तेल हो सकता है। इस किस्म से 10–12 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन मिल सकता है।

सरसों की क्रिस्टल प्रोएग्रो 5222 किस्म की बुवाई के लिए एक किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।

सरसों की अडवांटा 414 किस्म सरसों की संकर किस्म भी है। इस किस्म के सरसों के पौधे के मजबूत तने की वजह से आंधी-बारिश में सरसों की फसल जल्दी नहीं आडी जाती है। इस किस्म से 42 प्रतिशत तेल मिल सकता है। खास बात यह है कि यह प्रजाति पाले को सहन करती है। इस किस्म से औसत 11 से 13 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन हो सकता है।

बुवाई के लिए बीज की मात्रा: सरसों की अडवांटा 414 किस्म की बुवाई के लिए 900 से 1 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।

15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक सरसों की बुवाई करने का सही समय है। किसानों को इसकी बुवाई सितंबर से ही शुरू कर देनी चाहिए। सरसों की बुवाई सीड ड्रिल, सरिता या देशी हल से करनी चाहिए। सरसों के बीजों को हमेशा कतार में रखना चाहिए, जिसमें कतार से कतार 30 सेमी और पौधे से पौधे 10 से 12 सेमी की दूरी होनी चाहिए। वहीं बीज को दो से तीन सेमी से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए क्योंकि इससे बीज के अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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