UP में गोबर और गोमूत्र का अनोखा प्रयोग, इस किसान की दुगनी हो गई आमदनी

The Chopal (UP Agriculture) : वर्तमान में उत्तर प्रदेश में अधिकांश किसान प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपना रहे हैं। मेरठ के खरखोदा ब्लॉक के खासपुर गांव के 60 वर्षीय बुजुर्ग किसान प्रेमचंद शर्मा पिछले कई सालों से प्राकृतिक आधारित खेती कर रहे हैं। जो अब उनकी फसलों का दोगुना उत्पादन करता है। वहीं विभिन्न खादों पर खर्च हुआ पैसा भी बच गया है।
किसान प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि वह देसी गायों का गोबर और गोमूत्र उपयोग करते हैं। उनका कहना था कि जब गाय का गोमूत्र लगभग 15 लीटर हो जाता है, तो हम उसे 200 लीटर के ड्रम में डाल देते हैं। फिर हम उसे दो किलो गुड और दो किलो बेसन मिलाकर छोड़ देते हैं। प्रेमचंद शर्मा ने कहा कि 8 से 10 दिन बाद पूरा गोमूत्र उस गोबर पर डाल देते हैं। वह बताते हैं कि इस प्रक्रिया से गोबर बेहतर खाद बनता है। उस गोबर के खाद को फिर अपने खेत में डालते हैं। प्रेमचंद ने गोबर और गोमूत्र के लिए आठ देसी गायों को पाल रखा है।
प्राकृतिक रूप से गेंहू, गन्ना और सरसों की खेती
40 बीघा में प्राकृतिक तकनीक से गेंहू, गन्ना और सरसों की खेती करने वाले किसान प्रेमचंद ने कहा कि ऐसा करने के लिए मेहनत जरूर करनी पड़ती है। लेकिन जो मेहनत का परिणाम है। वह बहुत खुश हैं क्योंकि वह विभिन्न प्रकार के अनाज उगाते हैं। फसल काटने से पहले ही उनके पास उसकी डिमांड आने लगती है। देश भर से लोग उनसे संपर्क करते हैं। उसने बताया कि पहले वह सिर्फ दो बीघा की खेती करते थे, जो घर चलाना भी मुश्किल था, लेकिन अब गौ-आधारित खेती करते हैं। आज वह 40 बीघा में इस तरह की खेती कर रहा है। जिससे उनकी आय दोगुनी हो गई।
इस प्रकार फसल पर स्प्रे करें
नीम के पेड़ बहुत फायदेमंद हैं। प्रेमचंद भी इस नीम के पेड़ का बहुत उपयोग करते हैं। वह एक ड्रम में पानी डालकर नीम के पत्ते, निमोली, लहसुन, प्याज और हरी मिर्च को अच्छे से मिला लेती है। फिर खेतों में पानी डाल देते हैं। जिससे खड़ी फसल में किसी भी प्रकार के कीड़े नहीं लगते। इसके अलावा, वह एक ड्रम में छाज या मट्ठा इकट्ठा करते हैं। तांबे के छल्ले डाल दें। उसे छानकर फसल पर छिड़कें। जिससे किसी भी तरह के कीड़े नहीं लगते। वहीं फसलों का उच्च उत्पादन होता है।
प्रेमचंद को जिले के किसानों ने मास्टर की उपाधि दी
मेरठ के खरखोदा ब्लॉक निवासी प्रेमचंद शर्मा की प्राकृतिक खेती को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र उन्हें विभिन्न जनपदों में कार्यशालाओं के लिए भी आमंत्रित करता है। जिसमें वह हर दिन जनपद में प्राकृतिक खेती के बारे में किसानों को जागरूक करता दिखाई देता है। उनको किसानों ने भी मास्टर की उपाधि दी। वह कहते हैं कि अगर सभी किसान इसी तरह खेती करें तो किसानों को किसी दूसरे पर निर्भर नहीं होना चाहिए। बल्कि वह स्वयं बहुत धनवान होगा। जो दूसरों को प्रेरणा दे सकें।
प्राकृतिक और जैविक खेती में अंतर
जैविक खेती में बाहरी उर्वरक और खाद (जैसे कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर की खाद) का उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक खेती में मृदा को रासायनिक या जैविक खाद नहीं मिलता। वास्तव में, मृदा और पौधे दोनों बाहरी उर्वरक नहीं लेते।
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