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UP Metro : इस वजह से अटका लखनऊ मेट्रो के विस्तार का काम, 7 नए रूटों पर आगे नहीं बढ़ा कार्य

UP Metro : यूपी की राजधानी लखनऊ के लिए 'लाइफलाइन' के तौर पर शुरू की गई लखनऊ मेट्रो पिछले पांच साल से जहां की तहां अटकी हुई है। मेट्रो का विस्तार न हो पाने व कई अन्य कारणों से मेट्रो का घाटा बढ़ता जा रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक आपको बता दें सात नए रूटों पर आगे काम नहीं बढ़ा है।
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UP Metro: Due to this reason the work of expansion of Lucknow Metro got stuck

UP News : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लिए 'लाइफलाइन' के तौर पर शुरू की गई लखनऊ मेट्रो पिछले पांच साल से जहां की तहां अटकी हुई है। मेट्रो का विस्तार न हो पाने व कई अन्य कारणों से मेट्रो का घाटा बढ़ता जा रहा है और शहर में सुगम यातायात की समस्या दिनोंदिन जटिल होती जा रही है। मेट्रो विस्तार में जहां वित्तीय प्रबंधन रोड़ा बना है, वहीं सपा सरकार द्वारा डीपीआर को मंजूरी देने में हुई चूक को भी एक वजह बताया जा रहा है।

माना जा रहा है कि अगर कानपुर की तरह लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना के भी दोनों कॉरिडोर को एक साथ मंजूरी दे दी गई होती तो पहले कॉरिडोर (रेड लाइन ) का काम समाप्त होने के साथ ही दूसरे कॉरिडोर (ब्लू लाइन) का भी काम शुरू हो गया होता। ऐसा करके मेट्रो सेवा को जहां घाटे से उबारा जा सकता था, वहीं शहर के घनी आबादी वाले लोगों को भी इस सेवा का लाभ मिलता।

बता दें कि छह साल पहले सितंबर 2017 को जब पहली बार लखनऊ मेट्रो ने यात्रियों के संग रफ्तार पकड़ी थी, तब लखनऊ वासियों में यह उम्मीद जगी थी कि इसका दायरा शहर के अन्य हिस्सों में भी बढ़ेगा। पर, उच्च स्तर पर हुई कई बैठकों के बाद भी चारबाग से बसंतकुंज तक प्रस्तावित मेट्रो के पूरब-पश्चिम कॉरिडोर पर खर्च होने वाले बजट की गुत्थी नहीं सुलझ सकी है। करीब 11.98 किमी. लंबे 12 स्टेशन वाले दूसरे चरण की परियोजना पर काम शुरू होना तो दूर, डीपीआर तक को मंजूरी नहीं दी जा सकी है। राज्य स्तर पर हो रही लेटलतीफी का नतीजा है कि दूसरे चरण का काम शुरू नहीं होने से पूरे शहर को मेट्रो से जोड़ने के लिए प्रस्तावित सात अन्य रूटों के लिए भी होमवर्क शुरू नहीं हो पा रहा है।

सूत्रों के अनुसार मेट्रो के विस्तार में सबसे बड़ी अड़चन परियोजना पर आने वाला खर्च और मेट्रो से होने वाली आय में भारी अंतर है। सूत्रों का यह भी कहना है कि यूपीएमआरसी के लिए विश्व बैंक के लोन की किस्तें चुका पाना भी मुश्किल हो गया है। पहले से ही कोरोना के चलते मेट्रो की हालात और खस्ता हो गई थी, जिससे घाटा और ज्यादा बढ़ गया। मेट्रो पर सैकड़ों करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ गया है। लखनऊ में मेट्रो के घाटे में पहुंचने का बड़ा कारण रूट का विस्तार नहीं होना है। विशेषज्ञों का मानना है कि नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर पर 23 किलोमीटर की दूरी में मेट्रो का संचालन किया जा रहा है, लेकिन इस रूट पर बड़ी संख्या में यात्री नहीं मिल रहे हैं। वहीं, अगर दूसरे चरण का काम भी पूरा हो जाए और चारबाग से बसंतकुंज के बीच मेट्रो दौड़ने लगे तो इस रूट पर बड़ी संख्या में यात्री मिल सकते हैं।

इसलिए कानपुर, आगरा मेट्रो की रफ्तार तेज-

उप्र मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (यूपीएमआरसी) के उच्च तकनीकी अधिकारी के मुताबिक 2014 में तत्कालीन सरकार के एक अव्यावहारिक फैसले की वजह से लखनऊ में मेट्रो की रफ्तार थमी हुई है। पहले चरण के साथ ही दूसरे चरण की डीपीआर भी मंजूर करा ली जानी चाहिए थी। ऐसा नहीं होने की वजह से पहले चरण के 22 स्टेशनों के बीच मेट्रो का संचालन शुरू होने के बावजूद दूसरे चरण का डीपीआर अब तक मंजूर नहीं हो पाया है। देखा जाए तो इस लिहाज आगरा मेट्रो परियोजना की प्रगति की रफ्तार भी लखनऊ से आगे है। वहां पर पहले चरण का काम अंतिम चरण में है और दूसरे चरण के प्रारंभिक कार्य शुरू हो चुके हैं। इसी तरह लखनऊ मेट्रो परियोजना से करीब पांच साल बाद फरवरी 2019 में शुरू हुए कानपुर मेट्रो परियोजना के दूसरे चरण का काम भी शुरू हो चुका है और अगले साल इसे पूरा करने का लक्ष्य है।

यह भी बड़ी वजह: जानकारों की नजर में पहले चरण में शुरू की गई लखनऊ मेट्रो का बढ़ता घाटा और दूसरे चरण के निर्माण की बढ़ती लागत भी परियोजना के विस्तार को रोकने की एक बड़ी वजह है। इसके चलते पहले चरण का काम पांच वर्ष पहले पूरा होने के बाद भी लखनऊ मेट्रो के दूसरे चरण का काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है। जबकि यूपीएमआरसी ने दूसरे चरण की परियोजना की डीपीआर एक साल पहले ही शासन को भेज दी थी। परियोजना की बढ़ी लागत के आधार पर बजट की फाइल अभी तक शासन स्तर पर ही लटकी है। लागत को लेकर वित्त विभाग का सहमत न होना मुख्य कारण बताया जा रहा है।

आगे नहीं बढ़ा इन 7 नए रूटों का काम (लंबाई 92.30 किमी.)-

- जानकीपुरम से मुंशी पुलिया (6.5 किमी.)
- आईआईएम से राजाजीपुरम (21.5 किमी.)
- चारबाग से पीजीआई (11 किमी.)
- इंदिरानगर से इकाना स्टेडियम (8.7 किमी.)
- इकाना स्टेडियम से सीसीएस हवाई अड्डा (19.6 किमी.)
- सचिवालय से चक गंजरिया सिटी (12 किमी.)
- आईआईएम से अमौसी (13 किमी.)

एक साल में बढ़ी 475 करोड़ से अधिक लागत-

सूत्रों के मुताबिक यूपीएमआरसी ने दूसरे चरण का डीपीआर तैयार करके पिछले साल 9 सितंबर को ही आवास विभाग को भेज दिया था। इसमें परियोजना की बढ़ी लागत 4264 करोड़ प्रस्तावित की गई थी। जबकि 2017 में यह 3789 करोड़ थी। छह साल में लागत में 475.286 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो गई है, इसलिए वित्त विभाग के स्तर पर इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है। इस वजह से ब्ल्यू लाइन (पूरब-पश्चिम कॉरिडोर) का काम शुरू नहीं हो पा रहा है।

जमीन न मिलने से भी विस्तार अटका-
सीजी सिटी में एलडीए से जमीन नहीं मिलने और दूसरी लाइन शुरू नहीं हो पाने से लखनऊ मेट्रो का रेवेन्यू मॉडल फेल हो गया है। सीजी सिटी में करीब 150 एकड़ जमीन मिलनी थी, पर पांच साल में ऐसा नहीं हो सका है। घाटे में चल रही मेट्रो अब यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) की किस्तें तक नहीं चुका पा रही है।

329 करोड़ तक पहुंच चुका है घाटा-

यूपीएमआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक पहले चरण के रूट पर मेट्रो का घाटा 329 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। एयरपोर्ट से मुंशीपुलिया के करीब 23 किमी. लंबे रूट पर प्रतिदिन एक लाख से अधिक यात्री मिलने का आकलन किया गया था, लेकिन संख्या 70 हजार तक ही पहुंच पाई है।

इन वजहों से भी नहीं बढ़ रही यात्रियों की संख्या-

- पहले चरण के रूट का घनी आबादी से न जुड़ना।
- मेट्रो की आय का जरिया सिर्फ यात्रियों को बनाना।
- स्टेशन और मेट्रो में विज्ञापन डिस्प्ले की व्यवस्था न होना।
- मेट्रो स्टेशन आदि के पास वाहनों के लिए सुरक्षित पार्किंग की व्यवस्था नहीं होना।

खर्च की तुलना में कम है आय-

- यूपीएमआरसी को वर्ष 2017-2018 में यात्री आय सिर्फ 4.35 फीसदी थी, जो वर्ष 2018-2019 में बढ़कर 10.80 फीसदी और 2019-2020 में आय का ग्राफ 54.73 फीसदी तक पहुंच गया था। इससे कुछ हद तक मेट्रो रेल कॉरपोरेशन की वित्तीय स्थिति कुछ सुधरी ही थी कि इसी बीच कोविड की लहर आ गई और मेट्रो के पहिये थम गए। इसका नतीजा ये हुआ कि 2020-21 में आय का आंकड़ा 15.94 पर आ गया। 2022-23 में मेट्रो में यात्रियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जिसका फायदा आय पर भी दिख रहा है। हालांकि मेट्रो के संचालन पर हो रहे खर्च और आय में अभी भारी अंतर बना हुआ है।

विज्ञापन मद से कम ही रही आय-

स्टेशनों पर विज्ञापन, स्टेशन व संबंधित व्यावसायिक संपत्तियों के किराये, पार्किंग व अन्य मदों से आय होने लगी। मेट्रो की कमाई स्टाॅलों व अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों से बहुत ज्यादा नहीं बढ़ सकी। यही नहीं जो शासन स्तर से लविप्रा की ओर से जमीन दिए जाने का मसौदा था, आज तक वह भी पूरा नहीं हो सका। ऐसे में लखनऊ मेट्रो अपनी आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा मजबूत नहीं कर सकी।

महज दो साल में कानपुर में दौड़ने लगी मेट्रो-

दोनों कॉरिडोर की डीपीआर एक साथ मंजूर होने की वजह से लखनऊ की तुलना में कानपुर में मेट्रो का तेज गति से पूरा किया गया। 15 नवंबर 2019 को मेट्रो परियोजना का शुभारंभ हुआ था और 28 दिसंबर 2021 को इसका उद्घाटन हो गया था। इस प्रकार महज दो वर्ष के भीतर ही कानपुर में मेट्रो का संचालन शुरू हो गया। यही नहीं इसके साथ ही दूसरे कॉरिडोर का काफी काम हो चुका है और तीसरे चरण के लिए भी नापजोख शुरू हो चुकी है। इससे इस परियोजना पर लागत कम आई। माना जा रहा है कि अगले साल दूसरे कॉरिडोर पर भी मेट्रो का संचालन शुरू कर दिया जाएगा। ऐसे में कानपुर मेट्रो परियोजना को घाटे से बचाया जा सकता है।

डीपीआर का हो रहा है परीक्षण, जल्द शुरू होगा कामः गोकर्ण-

अपर मुख्य सचिव आवास नितिन रमेश गोकर्ण का कहना है कि ये सही है कि दूसरे रूट पर काम शुरू होने में विलंब हो रहा है। यूपीएमआरसी ने चारबाग-वसंतकुंज रूट का डीपीआर शासन को उपलब्ध करा दिया है। इस परियोजना पर आने वाले खर्च को लेकर वित्त विभाग के साथ चर्चा भी हो रही है। साथ ही डीपीआर का तकनीकी परीक्षण कराया जा रहा है। बजट और डीपीआर का परीक्षण करने के बाद जल्द ही इस रूट पर का काम शुरू कराया जाएगा ।

विस्तार से बढ़ेगी राइडरशिपः कुमार केशव-

यूपीएमआरसी के एमडी रहे कुमार केशव का कहना है कि आने वाले 5 वर्षों में लखनऊ की जनसंख्या 45 लाख से अधिक हो जाएगी। उस समय तक मेट्रो के 2 कॉरिडोर तैयार हो गए तो लाखों लोगों को जहां सुगम सफर की सुविधा मुहैया हो सकेगी, वहीं राजधानी की घनी आबादी वाले क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मेट्रो रेल सेवा से जोड़ा सकेगा। ऐसा करने से मेट्रो की राइडरशिप के साथ ही आय बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

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