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UP News : उत्तर प्रदेश के खूनी नेशनल हाईवे, पिछले 6 वर्ष 3300 की मौत

Highway Accident: उत्तर प्रदेश की सड़कों में कानपुर और प्रयागराज के बाद आगरा की सड़कें सबसे ज्यादा खतरनाक भी है। आगरा में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 550 से अधिक लोग मारे जाते हैं। शनिवार को भी एक दुर्घटना में छह लोग मारे गए।
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UP News: Bloody National Highway of Uttar Pradesh, 3300 deaths in last 6 years

Accident on National Highway: उत्तर प्रदेश की सड़कों में कानपुर और प्रयागराज के बाद आगरा सबसे खतरनाक है। आगरा नेशनल हाईवे पर दुर्घटनाओं के आंकड़े भयानक हैं। बीते छह वर्षों में यहां सात बड़े हादसे हुए हैं। इनमें से 28 लोग मौके पर मर गए। जबकि ३३०० लोगों ने अलग-अलग दुर्घटनाओं में मर गए। यानी, हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 550 से अधिक लोग मारे जाते हैं। 2023 में नवंबर तक, 480 लोगों ने हाईवे पर अलग-अलग हादसों में मर गए। 2022 में भी 550 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर गए। जबकि हादसों में 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।

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6 लेन नेशनल हाईवे पर खूनी दाग

राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाले हर हादसे से आसपास के लोग भी दहशत में हैं। स् थानीय लोगों ने बताया कि पुलिस की सुरक्षा मासिकी अभी दो दिन पहले समाप्त हुई है। हाल ही में पुलिस ने यातायात के प्रति लोगों को जागरूक करने का दावा किया, लेकिन वास्तविकता कुछ अलग है। इसका एक उदाहरण शनिवार को नेशनल हाईवे-19 पर हुआ दर्दनाक हादसा है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्रवर्तन आलोक कुमार ने बताया कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में ऑटो चलाने का नियम है, लेकिन नेशनल हाईवे पर ऐसा नहीं हो सकता है। यही कारण है कि पुलिस ने अतिरिक्त सवारियां लेकर जा रहे ऑटो को रोका क्यों नहीं?

लखनऊ से पूछताछ के बाद पुलिस अफसर जागते हैं

अपनी पहचान छिपाते हुए स्थानीय लोगों ने बताया कि क्षेत्र में कितनी भी बड़ी घटना हो, अगर आला अधिकारी इसका पता नहीं लगाते, तो ऐसा नहीं होता। तब तक स्थानीय पुलिस की प्रतिष्ठा को धक्का नहीं लगेगा। शनिवार को हाईवे पर हुए हादसे का भी जिम्मेदार जिला पुलिस है। पुलिस सड़क हादसों को हल्के में लेती है। दैनिक रूप से इसके चौराहों पर अतिक्रमण होता है, जिससे लोग जाम से दो चार होते हैं। पुलिस को इसकी जानकारी नहीं है। पुलिस अधिकारियों की टोकाटाकी के बाद कार्रवाई करती है। अभियान शुरू होता है और फिर थम जाता है।

राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना पर सोशल मीडिया पर उठ रहे प्रश्न

दशकों से नेशनल हाइवे पर खूनी हाइवे का दाग लगा हुआ है। सिक्स लेन बनने के बाद भी स्थिति ऐसी ही है। योजना पर भी प्रश्न उठने लगे हैं। शहर के बुद्धिमान लोगों का कहना है कि ट्रैफिक कम होता तो यह स्थिति नहीं होती। यह दूसरे शहरों में भी देखा गया है। जवाहर पुल और भगवान टॉकीज फ्लाईओवर कानपुर की सबसे पुरानी इमारतों में से हैं। जब खंदारी, सुल्तानगंज की पुलिया और वाटर वर्क्स फ्लाईओवर पहले मंजूर हुए, तो दुर्घटनाएं कम नहीं हुईं। आईएसबीटी पर दो दिन में ग्यारह लोगों की मौत होने पर फ्लाईओवर बनाया गया।

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सब्जी मंडी में दुर्घटना हुई तो अंडर पास बनाया गया। गुरु के ताल पर अंडरपास अब मान्यता प्राप्त है। सोशल मीडिया पर एक डॉक्टर ने कहा कि कामयानी कट को तुरंत खोलना चाहिए। एक कारोबारी ने लिखा कि अगर योजना बनाई गई होती तो भारी वाहन शहर में नहीं दिखाई देते। पूरा वाहन ऊपर से गुजरता। Stevens Road पर चलने का कोई नियम नहीं है।

ये हैं प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग दुर्घटनाओं के कारण

रॉन्ग साइड: पुलिस प्रशासन को राष्ट्रीय राजमार्ग पर गलत दिशा में वाहन चलाने की नई चुनौती मिल गई है। प्रदेश में गलत दिशा में वाहन चलाने से होने वाली मौतों में आगरा तीसरे स्थान पर है। आगरा में हर साल 364 लोगों की जान हाईवे पर जाती है, एक आंकड़ा बताता है। कानपुर इस मामले में सबसे आगे है। यहां प्रति वर्ष औसतन 496 लोग मारे जाते हैं।

ड्रिंक और ड्राइव: प्रदेश में शराब पीकर वाहन चलाने से होने वाली मौतों में आगरा चौथे स्थान पर है। यहां हर साल पीने और ड्राइव करने से 174 लोग मर जाते हैं।  प्रयागराज में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। यहां हर साल 443 मौतें होती हैं। कानपुर में 369, मेरठ में 311, लखनऊ में 168 और वाराणसी में 168 मौतें हो जाती हैं।