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उत्तर प्रदेश की महिला शिक्षिका ने बदल डाली स्कूल की किस्मत, मिड्डे मील में मिलती हैं खुद की उगाई जैविक सब्जियां

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक सरकारी स्कूल ने मिड-डे मील में सब्जियों की आपूर्ति को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर उपाय अपनाया है। इस स्कूल ने अब मिड-डे मील के कार्यक्रम के हिस्से के रूप में छात्रों को स्वस्थ आहार प्रदान करने के लिए खुद ही सब्जियां उगाना शुरू किया है।
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Female teacher of Uttar Pradesh changed the fate of the school, provides organic vegetables grown by herself in the midday meal

The Chopal - उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक सरकारी स्कूल ने मिड-डे मील में सब्जियों की आपूर्ति को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर उपाय अपनाया है। इस स्कूल ने अब मिड-डे मील के कार्यक्रम के हिस्से के रूप में छात्रों को स्वस्थ आहार प्रदान करने के लिए खुद ही सब्जियां उगाना शुरू किया है। इस प्राथमिक स्कूल के प्रधानाध्यापिका अर्चना तिवारी ने इस पहल का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने विद्यालय में जैविक सब्जियां उगाने के साथ ही स्वच्छता में भी सुधार किया है, जिससे विद्यालय की तस्वीर बदल गई है।

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अर्चना तिवारी ने बताया कि उनकी तैनाती के समय, विद्यालय की दीवारें बहुत ही गंदी थीं, लेकिन उन्होंने खुद ही उन्हें सुंदर पेंटिंग्स से सजाया। उन्होंने इसके साथ ही स्कूल के छात्रों को स्वस्थ आहार प्रदान करने के लिए स्वयं ही सब्जियां उगाने का नया तरीका अपनाया। इस अनूठे कदम से, छात्रों को स्वस्थ और जैविक आहार की आपूर्ति हो रही है, जिससे उनके स्वास्थ्य और विकास में सुधार हो रहा है।

बच्चों को जैविक सब्जियां मिलनी चाहिए थीं - 

अर्चना तिवारी ने बताया कि मिड डे मील के लिए उनको बाजार से सब्जियां खरीदनी पड़ी, जो रासायनिक खादों से बनाई गई थीं। बाद में उन्होंने सोचा कि बच्चों को स्कूल में जैविक सब्जियां तैयार करना चाहिए. इसके बाद, उन्होंने स्कूल में ही सब्जियां उगाना शुरू कर दिया। इस सरकारी स्कूल में जैविक सब्जियों की खेती के लिए जगह कम थी, इसलिए उन्होंने बेलदार सब्जियों को उगाने का उपाय चुना, जिन्हें विद्यालय की छत और दीवारों पर लगा दिया।

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इस प्रकार, विद्यालय में ही उगाई गई सब्जियां मिड-डे मील में परोसी जा रही हैं, और इन सब्जियों को पूरी तरह से जैविक तरीके से उगाया जाता है। इसके अलावा, विद्यालय के प्रांगण में खेल का मैदान नहीं होने के बावजूद, छात्रों को खेलने की रुचि है, और उन्हें रोजाना स्पोर्ट्स एक्टिविटी कराई जाती है। यह पहल न केवल शिक्षा बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सकारात्मक परिवर्तन का उदाहरण है, और यह दिखाता है कि सरकारी स्कूल और शिक्षा संस्थानों में सामाजिक सुधार कैसे किए जा सकते हैं।