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किसानों का महापर्व आखातीज आज, करीब 2 हजार साल पुराना खिचड़े का इतिहास, आखा धान का खिचड़ा इस प्रकार पकाएंगे

Akshaya Tritiya : आखातीज पर्व शहर व ग्रामीण क्षेत्र में आखा धान का खिचड़ा बनाया जाएगा। इस पर्व पर खीचड़ें की परंपरा का वैज्ञानिक महत्व भी है। जिससे पर्व मनाने के साथ ही शरीर को कई फायदे पहुंचते है। खिचड़े का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना माना गया है। उस समय भारत मुगलों के अधीन था, जिसकी वजह से उप महाद्वीप में खिचड़ा का महत्व प्राथमिकता से बढ़ा था।

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किसानों का महापर्व आखातीज आज, करीब 2 हजार साल पुराना खिचड़े का इतिहास, आखा धान का खिचड़ा इस प्रकार पकाएंगे

Rajasthan Akshaya Tritiya :  आखा धान को पकाए जाने के कारण खिचड़े और आखातीज का संबन्ध बताया गया है। इसका मतलब है कोरे नए धान का सेवन करना। यानी इससे पहले रबी की फसल निकाली जाती है। नई फसल को बिना पीसे सीधा ही सेवन करने से शरीर को अनेकों लाभ होते है। गर्मी में खिचड़ा शरीर को लाभ पहुंचाता है।

गेहूं को पानी में भिगोकर फिर पकाया जाता है खिचड़ा

गेहूं को पानी में भिगोया जाता है। उसके बाद सुखाने के लिए पानी निकाल लेते है तथा उखळ में कूटा जाता है। उखळ में लकड़ी से कुटा जाने के कारण गेंहू के दाने पर दबाव भी अधिक नहीं पड़ता है और छिलका अलग हो जाता है। फिर फटका लगाया जाता है। उबलते हुए पानी में डालने के बाद उसके हिलाते रहते है तथा गेंहू डालते रहते है। वहीं, थोड़ा सा नमक मिलाया जाता है ताकि खिचड़ें का स्वाद बन सके। घी के साथ में खाया जाता है। खिचड़ा ही एक ऐसा पकवान है जिसके साथ घी अधिक हो तो भी कोई परेशानी नहीं होती है। हालांकि ये मेहनत और परिश्रम करने वाले लोग ही पचा सकते है।

ईमली के पानी का भी होता है साथ में सेवन

खिचड़े के साथ ईमली के पानी का भी सेवन किया जाता है। इसके पीछे कारण लू से बचाव करना बताया जा रहा है। शहर के सावो की गली निवासी जगदीश प्रसाद सोनी ने बताते है कि खिचड़ा बनाने की परंपरा आखातीज पर युगों से चली आ रही है। खिचड़े का सेवन शरीर की मजबूती के लिए किया जाता है। वहीं, ईमली के पानी से लू नहीं लगती है।