Cotton Price Down: इस वजह से गिरें कपास के भाव, किसानों को हो रहा प्रति एकड़ इतना नुकसान

   Follow Us On   follow Us on
मुनाफे की जगह घाटा, गुजरात के कपास उत्पादक परेशान, कपास के किसान परेशान, कपास की कीमतों में बड़ी गिरावट, कपास की कीमतों में कमी, Extend MSP to cotton, Cotton sabarkantha, Cotton Farmers in Distress, cotton farmers, Cotton Farmer in Gujarat,                                 Ahmedabad News, Ahmedabad News in Hindi, Latest Ahmedabad News, Ahmedabad Headlines, अहमदाबाद Samachar

Cotton Price down: बीते एक माह में गुजरात राज्य में कपास के दाम 2500 रुपये प्रति 20 किलोग्राम से गिरकर 30 दिसंबर को 1600 रुपये तक गिर गई। और अब राज्य के किसान शिकायत कर रहें है। कि दिसंबर और मार्च के महीनों में जब उन्हें पैसे की जरूरत होती है, तो कीमतें आमतौर पर गिर जाती हैं। और जिसके चलते किसानों को कपास की फसल का लागत मूल्य भी नही मिल पाता है। दूसरी और व्यापारियों और जानकारों का कहना है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मंदी है, कोई बड़े खरीदार नहीं है, जिससे सूत और कपड़ा बनाने वाली इकाइयां 50 % क्षमता पर काम कर रही हैं।

साबरकांठा जिले के एक किसान राजू पटेल ने गुरुवार को जिला कलेक्टर को एक पत्र लिखकर अपने कपास को जलाने की अनुमति भी मांगी, क्योंकि वह कपास की उत्पादन लागत भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं। एक उदाहरण का हवाला देते हुए, पटेल ने कहा कि कपास की तुड़ाई के लिए उन्हें 20 किलोग्राम के लिए 180 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। किसानों के अनुसार, उन्हें 20 किलो के लिए कम से कम 2100 रुपए मिलने चाहिए ताकि खर्च पूरा हो सके और थोड़ा मुनाफा भी हो सके।

फायदे की जगह पर किसानों को घाटा

केंद्र सरकार ने मानसून से पहले 20 किलो के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में 1276 रुपये तक की घोषणा की थी। सरकार का मानना है कि इस कीमत पर किसानों को प्रति 20 किलो पर 600 रुपये तक का मुनाफा हासिल होगा। एक पत्रकार ने इसकी गणना को लेकर सवाल भी किया। उनके अनुसार, सरकार उत्पादन लागत वृद्धि की गणना नहीं कर रही है, चाहे वह बीज हो, खाद हो, कीटनाशक हो, डीजल की कीमत हो, ट्रैक्टर की कीमत हो या लीज रेंट हो, मजदूरों का शुल्क लगभग दोगुना तक अब हो गया है। सरकार कभी भी श्रम शुल्क, भूमि उर्वरता और परिवार की रहने की लागत की गणना भी नहीं करती है। यदि MSP की गणना करते समय इन सभी को शामिल किया जाता है, तो यह किसानों को खर्चे को पूरा करने और थोड़ा मुनाफा कमाने या कमोडिटी एक्सचेंज बाजार में फ्यूचर ऑप्शन ट्रेडिंग की अनुमति देने में भी मदद कर सकता है।

फिलहाल सूती धागे की मांग कम

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव रिंकू पंड्या का कहना है कि कपास के विकल्प व्यापार की अनुमति देना बिल्कुल भी अच्छा विचार भी नहीं है, क्योंकि जिस क्षण अनुमति दी जाती है, बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों को सीधे बाजार में उतारना शुरू कर देंगी, घरेलू बाजार में गड़बड़ी पैदा होगी। पांड्या ने कहा, कपास की कीमतों में गिरावट का कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कपास की कम मांग भी है, यहां तक कि सूती धागे की मांग भी कुछ कम है। सूती धागे और कपड़ा निर्माण इकाइयां स्थापित क्षमता के 50 % पर काम कर रही हैं। ऐसे में किसान सूत निमार्ताओं से खरीदारी की उम्मीद भी कैसे कर सकते हैं। पांड्या का कहना है कि केवल चीन, बांग्लादेश और पश्चिमी देशों से खरीदारी से ही घरेलू स्तर पर स्थिति भी बदल सकती है। कपास की मांग फिर से बढ़ भी सकती है और कीमत भी, जिससे किसानों को भी कुछ राहत मिलेगी, लेकिन तब तक, किसानों को 1600 रुपये से ही खुश होना पड़ेगा।

Also Read: Gold Silver Ka Taja Bhav: सोना-चांदी के बढ़े रेटों से ख़रीदारों में चिंता, जानिए आज की कीमतें