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Check Bounce: चेक बाउंस होने पर किनती होती हैं सजा, जुर्माना या फिर होगी जेल

Check Bounce : दैनिक रूप से चेक बाउंस के मामले सामने आते हैं और अदालतों में इस तरह के मामले बढ़ने लगे हैं। इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में अभियुक्त को राजीनामा नहीं करने पर सजा दी जाती है। इसलिए, इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान हैं?

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Check Bounce: चेक बाउंस होने पर किनती होती हैं सजा, जुर्माना या फिर होगी जेल 

The Chopal: जब आप किसी को चेक देकर पैसे का भुगतान करते हैं, तो बैंक आपके खाते में पर्याप्त धन नहीं है। उदाहरण के लिए, आपने 10 हजार रुपये का चेक दिया, लेकिन आपके खाते में यह पैसा नहीं है। इस स्थिति में चेक गायब हो जाता है, या चेक बाउंस। भारतीय कानून में चेक बाउंस को वित्तीय अपराध माना जाता है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। यह मामला 1881 के निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 में दर्ज है।

दैनिक रूप से चेक बाउंस के मामले सामने आते हैं और अदालतों में इस तरह के मामले बढ़ने लगे हैं। इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में अभियुक्त को राजीनामा नहीं करने पर सजा दी जाती है। चेक बाउंस के बहुत कम केसों में अभियुक्त बरी किए जाते हैं। इसलिए, इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान हैं?

निगोशिएबल इंस्ट्रमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत कार्यवाही

लाइव लॉ रिपोर्ट के मुताबिक, चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम दो वर्ष की सजा की अनुमति है। हालाँकि, अदालत अक्सर छह महीने से एक वर्ष तक की सजा सुनाती है। इसके अलावा, प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत अभियुक्त को परिवादी को प्रतिकर देने का आदेश भी दिया गया है। पीड़ित को उचित क्षतिपूर्ति देने के लिए प्रतिकर चेक की रकम दोगुनी हो सकती है।

जमानती अपराध

चेक बाउंस एक जमानती अपराध है जिसकी सजा सात वर्ष से कम होती है। चेक बाउंस के मामलों में अंतिम निर्णय तक आरोपी जेल में नहीं रहेगा। अंतिम निर्णय तक अभियुक्त को जेल से बचने का अधिकार है। वह सजा को रोकने की मांग कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत, अभियुक्त ट्रायल कोर्ट (accused trial court) इसके लिए गुहार लगा सकता है। इस प्रक्रिया से वह अपने केस को जेल से बाहर कर सकता है।

चूंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के तहत सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।

चेक बाउंस के मामलों में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 139 में 2019 में अंतरिम प्रतिकर के प्रावधान जोड़े गए, जिसमें अभियुक्त को पहली बार अदालत में उपस्थित होने पर परिवादी को चेक राशि का 20 प्रतिशत देने का निर्देश दिया गया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने इसे बदलकर अपील के समय अंतरिम प्रतिकर प्रदान करने का प्रावधान लागू किया। यदि अभियुक्त की अपील स्वीकार हो जाती है, तो उसे समझौते के तहत दी गई राशि वापस मिल जाती है। यह विवरण चेक बाउंस के मामलों में न्यायाधीशों के लिए महत्वपूर्ण है।