Edible Oil: तेल-तिलहनों में आज क्या रहीं कीमतें? विदेशों में लगातार तेजी जारी
Edible Oil Update : शुक्रवार के दिन ज्यादातर खाद्य तेल-तिलहन के दाम तेजी के साथ बंद हुए, क्योंकि देश में त्योहारी मांग और विदेशी बाजारों में खाद्य तेल-तिलहन के बाजार में तेजी आई है। मूंगफली तेल-तिलहन की कीमतें ज्यादा होने के कारण इसका कारोबार भी कम हुआ है। बाजार में तेजी के चलते पामोलीन और बिनौला तेल, सरसों और सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और बिनौला तेल में भी तेजी आई है। मलेशियाई बाजार 1.1 प्रतिशत की तेजी से चल रहा है, जबकि शिकागो बाजार 3.5 प्रतिशत की तेजी से चल रहा है।
आ सकती है मुश्किल
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर खाद्य तेलों की कीमतें विदेशी बाजार में लगातार तेज होती हैं तो भारतीय बाजार पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। अगर इसी तेज गति से देशी तेल-तिलहन उद्योग की बुरी हालत होती है, तो इस हालत से बाहर निकलना आसान नहीं होगा। ऐसे में अगर विदेशी बाजार की खाद्य कीमतों में तेजी आती है तो भारत में खाद्य तेल, तेल-खल और डी-आयल्ड केक (डीओसी) की लगातार बढ़ रही मांग भी कम होने अनुमान है।
तेल उद्योग में होता था, लाभ
सूत्रों ने बताया कि 1992 और 1993 में देश का तेल उद्योग से लोग लाभ उठा रहे थे। जिससे खाद्य तेल, डीओसी और खल के निर्यात से देश को लगभग 3,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा की कमाई हुई थी। लेकिन खाद्य तेलों की मंहगाई ने बाद में ऐसी व्यवस्था बनाई कि देश आज लाखों करोड़ रुपये खाद्य तेलों के आयात पर खर्च करता है।
देशी तेल मिलों में हो रहा, घाटा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, विदेशी बाजार के सत्र 2022 में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ने पर सूरजमुखी तेल का मूल्य 2,500 डॉलर प्रति टन था, जबकि सोयाबीन और पामोलीन का मूल्य 2,200 और 2,250 डॉलर प्रति टन हो गया था। उस समय देश में मूंगफली तेल की सूरजमुखी तेल के मुकाबले 170 रुपये प्रति लीटर से कम दाम पर बिक्री होती थी। उस समय सभी पेराई मिलें पूरी तरह से काम करती थीं। बाजार में सारा तेल खत्म हो गया था और कोई स्टॉक नहीं बचा था। लेकिन पिछले कुछ समय से देशी तेल मिलें नहीं चल रही हैं और अगर कुछ मिलें चल भी रही हैं तो इनमें घाटा बहुत ज्यादातर हो रहा है।
सरकार को देना होगा, ध्यान
सूत्रों ने बताया कि आयातित तेलों के थोक मूल्य कम हो गए हैं, जिससे तेल-तिलहन बाजार परेशान हो गया है। मगर इसके कारण खुदरा बिक्री पर यही तेल महंगा हुआ है। इसकी तरफ कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। सरकार को इस बात को समझते हुए खुदरा दरों को कम करने के लिए सख्त कार्रवाई करनी होगी।
तेल संगठनों को रखनी होगी, बात
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर देश के तेल संगठनों को जोर देना होगा। इसके अलावा, उन्हें वायदा कारोबार के दुष्प्रभावों को लेकर सरकार से बात करनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि बिनौला खल का वायदा भाव हाजिर भाव से इतना नीचे क्यों चल रहा है और इसका कपास उत्पादन पर क्या प्रभाव हो रहा है। हाजिर कीमत वायदा भाव से प्रभावित होती है, और वायदा भाव नीचे होने से कपास किसानों का आत्मविश्वास गिरता जा रहा है।