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इनकम टैक्स पेयर्स के लिए खुशी वाली खबर, CBDT से मिली बड़ी राहत

Income Tax Rule : 4 नवंबर को, CBDT ने एक सर्कुलर (circular) में अधिकारियों को इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 220(2) के तहत चुकाए गए या देय ब्याज को कम करने या माफ करने के लिए मॉनेटरी लिमिट निर्धारित करने का आदेश दिया। इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) के सेक्शन 119(1) के तहत यह आदेश जारी किया गया था।
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इनकम टैक्स पेयर्स के लिए खुशी वाली खबर, CBDT से मिली बड़ी राहत

Income Tax : टैक्स भरने वालों को बहुत जल्द राहत की खबर मिलने वाली है। टैक्स डिमांड नोटिस पर ब्याज के मामले में टैक्स अधिकारियों को छूट दी गई है. यह छूट सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (Central Board of Direct Taxes) ने दी है। कुछ शर्तों के अधीन टैक्स पर लगने वाले ब्याज को कम या माफ कर सकते हैं।

4 नवंबर को, CBDT ने एक सर्कुलर (circular) में अधिकारियों को इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 220(2) के तहत चुकाए गए या देय ब्याज को कम करने या माफ करने के लिए मॉनेटरी लिमिट निर्धारित करने का आदेश दिया। इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) के सेक्शन 119(1) के तहत यह आदेश जारी किया गया था।

कितना लगता था ब्याज?

I-T अधिनियम के सेक्शन 220(2) के मुताबिक, यदि टैक्सपेयर सेक्शन 156 के तहत डिमांड नोटिस में दर्ज टैक्स का भुगतान नहीं करते हैं, तो उन्हें हर महीने 1 प्रतिशत की साधारण ब्याज दर से ब्याज देना होगा। वहीं, सेक्शन 220(2A) के तहत प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर, चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर रैंक के अधिकारी ब्याज की राशि को कम करने या माफ करने का अधिकार रखते हैं।

अधिकारी कर सकेंगे, ब्याज माफ

  • CBDT ने सर्कुलर में ब्याज की रकम (interest amount) की सीमा बताई, जो इन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में होगी।
  • प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक के देय ब्याज को माफ करने या कम करने का निर्णय ले सकते हैं।
  • चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी 50 लाख रुपये से डेढ़ करोड़ रुपये तक देय ब्याज का निर्णय ले सकते हैं।
  • 50 लाख रुपये से अधिक देय ब्याज होने पर प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर रैंक के अधिकारी इसे कम करने या माफ करने का फैसला कर सकते हैं।

इन शर्तों के मुताबिक रखना होगा, ध्यान

सर्कुलर में कहा गया है कि विशेष परिस्थितियों में सेक्शन 220(2A) के तहत अधिकारी निर्णय ले सकते हैं, जैसे जब ब्याज की राशि का भुगतान करना कठिन हो या भविष्य में भुगतान में समस्या होने की संभावना हो।

दूसरी स्थिति तब होती है जब कोई चलते ब्याज (Interest) नहीं चुका सका क्योंकि वह इसका नियंत्रण नहीं था। तीसरी स्थिति यह है कि टैक्सपेयर ने अधिकारियों से किसी भी बकाया रकम की रिकवरी या असेसमेंट की जांच में मदद की हो।