The Chopal

बिना मजदूर, पानी और खाद..., बंजर जमीन पर भी धाकड़ आमदनी, प्रति एकड़ 4 लाख इनकम

Bussiness Idea : एक बार बेर का बाग लगा दिया तो समझो 20 साल के लिए कमाई ही कमाई होगी. इसका बाग सबसे कम मेहनत मांगता है और ऐसी जगहों पर भी खूब फलता है, जहां पर बारिश कम होती है. सिंचाई की कमी में भी इसका पेड़ खूब फल देता है. जानिए इस बाग को लगाने की पूरी प्रक्रिया, लागत और कमाई.
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बिना मजदूर, पानी और खाद..., बंजर जमीन पर भी धाकड़ आमदनी, प्रति एकड़ 4 लाख इनकम

The Chopal (Ber Farming) : फल खरीदने के लिए आजकल बाजार में बहुत सारे बेर मिलेंगे। छोटे, गोल, रसीले और पूरी तरह से मीठे होते हैं। बेर 50 से 100 रुपये प्रति किलो मिलता है। बेर को पहले गरीबों का फ्रूट कहा जाता था, लेकिन आज अमीर भी बेर के दीवाने हैं। यही कारण है कि आज से कुछ वर्ष पहले बेर की मांग बहुत अधिक नहीं थी। लेकिन लोगों को पता चला है कि बेर में विटामिन सी, ए और बी कॉम्पलेक्स, साथ ही प्रोटीन और मिनरल भी होते हैं, इसलिए यह लोकप्रिय हो गया है। लेकिन आज हम बेर की खेती के बारे में बता रहे हैं, न कि इसके न्यूट्रिएंट्स। वास्तव में, बेर की खेती बागवानी से आती है। पेड़ लगाने के बाद 20-30 साल तक आराम से पैसा कमाया जा सकता है। आज हम आपको बताएंगे कि एक एकड़ के बाग से कितनी कमाई हो सकती है।

यदि आप या आपके परिवार में किसान हैं और आपके पास जमीन है, तो गेहूं और धान जैसे ट्रेडिशनल फसलों को छोड़कर कुछ और खेती करने पर विचार करना चाहिए। पुरानी या ट्रेडिशनल फसलों की पैदावार काफी हद तक मौसम और फिर कड़ी मेहनत पर निर्भर करती है, लेकिन बागवानी में न तो कड़ी मेहनत है और मौसम को पहले से ध्यान में रखकर ही खेती की जाती है। बेर के बाग अक्सर ऐसी जगहों पर लगाए जाते हैं जहां बारिश कम होती है। बेर की अच्छी फसल बंजर भूमि या सूखे क्षेत्रों में होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि बेर अच्छी बारिश वाले स्थानों पर नहीं खेला जा सकता। विभिन्न किस्में अच्छी फल देती हैं, खासकर अच्छी सिंचाई वाले क्षेत्रों में।

वर्तमान में, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में बेर की अधिकांश खेती होती है। इसके बाग लगाने की दर पिछले कुछ समय से बढ़ी है, क्योंकि खेती और रखरखाव में कम लागत है।

कब और कैसे बेर का पौधा लगाएं

बेर का पौधा आमतौर पर मानसून की शुरुआत में लगाया जाता है। जनवरी से मार्च के मध्य तक, जिन क्षेत्रों में अच्छे सिंचाई उपकरण उपलब्ध हैं, इन्हें भी लगाया जा सकता है। स्थान पूरी तरह सूखा नहीं होना चाहिए और पानी बार-बार ठहरना नहीं चाहिए। बाग लगाते समय इसे भी ध्यान में रखना चाहिए। इस बीच, आपको बता दें कि बेर को अंग्रेजी में JUJUBE fruit (जुजुबे फ्रूट) कहते हैं।

बेर की खेती से पहले जमीन की सही जुताई होनी चाहिए। जमीन को समतल करने के लिए पाटा चलाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भूमि खरपतवार से मुक्त हो।

नेशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड (NHB) की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पौधों को 6 मीटर की दूरी पर रोपा जाना चाहिए, जबकि अच्छी सिंचाई वाले क्षेत्रों में 8 मीटर की दूरी पर रोपा जा सकता है। जनवरी से मार्च के बीच का समय सबसे अच्छा है।

पौधारोपण से पहले 60x60x60 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदकर 50 ग्राम हेप्टाक्लोर डस्ट को दो टोकरी में मिलाकर भर देना चाहिए। हेप्टाक्लोर दीमक को डस्ट से बचाएगा। इस गड्ढे में पौधे लगाए जाएंगे।

कहाँ पूरा विवरण मिलेगा?

क्योंकि बाग लगाना बहुत बड़ा काम है। इसलिए आपको आसपास स्थित कृषि विश्वविद्यालय जाना चाहिए। इन स्थानों से आप भी पूरी तकनीकी जानकारी मिलेगी। नेशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड के अनुसार, हरियाणा की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी और कर्नाटक की यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज से जानकारी ले सकते हैं।

एक एकड़ में कितना लाभ होता है?

एक एकड़ में बेर के लगभग 200 पौधे लगाए जाते हैं। एक सीजन में एक पेड़ लगभग 150 किलोग्राम फल देता है। इसका अर्थ है कि एक एकड़ के बाग से 30 टन बेर प्रति सीजन उत्पादित होते हैं। 50 से 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेर आम तौर पर बाजार में मिलते हैं। लेकिन किसान इस दर पर नहीं बेचता। किसान से बेर प्रति किलोग्राम लगभग 15 से 30 रुपये में खरीदा जाता है। हम मानते हैं कि 30 टन बेर की कीमत 30,000 किलोग्राम x 15 रुपये प्रति किलो = 4,50,000 रुपये. यह बात यदि 15 रुपये प्रति किलो भी खरीदा जाए।

एक एकड़ का उत्पादन लगभग साढ़े चार लाख रुपये में बिकेगा। यह बढ़ भी सकता है अगर प्रेम और प्यार मिल जाए। Experts estimate annual maintenance cost between 50,000 and 70,000 rupees। मतलब, एक एकड़ की शुद्ध बचत कम से कम 3 लाख आठ सौ रुपये होगी। एक पौधा 70-80 kg बेर देता है जहां कम बारिश होती है और अच्छी सिंचाई व्यवस्था नहीं है। मतलब, ऐसी जमीन पर लगभग 2 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है, जहां सामान्य फसल नहीं हो सकती।

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